धर्म, भाषा, संस्कृति और साहित्य के संरक्षण का अद्वितीय कार्य : दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य उद्घाटन राजेश जैन दद्दू

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धर्म, भाषा, संस्कृति और साहित्य के संरक्षण का अद्वितीय कार्य : दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य उद्घाटन
राजेश जैन दद्दू

इंदौर।
इंदौर शहर के लिए शनिवार का दिन विशेष और स्मरणीय बन गया। श्री दिगंबर जैन उदासीन आश्रम ट्रस्ट द्वारा संचालित कुंद-कुंद ज्ञानपीठ, इंदौर की दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज के पावन सानिध्य में संपन्न हुआ। धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू ने बताया कि कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि सांसद शंकर लालवानी, कार्यक्रम अध्यक्ष नई दिल्ली स्थित विद्याभूषण लोकमंगल न्यास के अध्यक्ष डॉ. जयकुमार उपाध्ये सहित अन्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन कर किया गया। इस अवसर पर वेदिका जैन की सांगीतिक प्रस्तुति से मंगलाचरण हुआ।
उद्घाटन सत्र में विशिष्ट अतिथियों के रूप में आईआईएमएस की पूर्व कुलगुरु प्रोफेसर रेणु जैन, बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय के कुलगुरु सुरेशकुमार जैन, दिल्ली के पूर्व कुल सचिव प्रोफेसर नलिन के शास्त्री, महर्षि पाणिनि विश्वविद्यालय के कुलगुरु शिवशंकर मिश्रा, प्रोफेसर संगीता मेहता तथा सह निदेशक राहुल सिंघई उपस्थित रहे। इस अवसर पर इंजीनियर अनिलकुमार जैन द्वारा रचित ग्रंथ का विमोचन अतिथियों के करकमलों से किया गया।

उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए सांसद शंकर लालवानी ने कहा कि कुंदकुंद ज्ञानपीठ धर्म, भाषा, संस्कृति और साहित्य के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उन्होंने कहा कि कासलीवाल परिवार की तीसरी पीढ़ी इस पुण्य कार्य में निरंतर संलग्न है, जो अत्यंत सराहनीय और प्रेरणादायक है।

इंजीनियर अनिलकुमार जैन ने अपने उद्बोधन में सिरि भूवलय ग्रंथ का विस्तृत परिचय प्रस्तुत किया। वहीं प्रोफेसर संगीता मेहता ने प्राकृत विद्या पर अत्यंत सारगर्भित प्रस्तुति देते हुए कहा कि यह संस्थान विशेष रूप से युवाओं के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

प्रोफेसर नलिन के शास्त्री ने प्राकृत भाषा और साहित्य के लिए किए जा रहे कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि प्राकृत स्वाभाविक रूप से जन-जन की भाषा रही है। अधिकांश प्राचीन ग्रंथ प्राकृत में ही रचे गए हैं, जिसमें बोली और भाषा के विकास में अहम योगदान दिया है।

कार्यक्रम को बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय के कुलगुरु सुरेशकुमार जैन ने भी संबोधित किया। वहीं कुलगुरु शिवशंकर मिश्रा ने कहा कि पूज्य साधु तीर्थ के समान होते हैं और उनकी उपस्थिति से पूरा वातावरण आध्यात्मिक हो जाता है। उन्होंने कहा कि धर्मों के विकास में जैन दर्शन का महनीय योगदान रहा है।
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि जिनवाणी के प्रचार-प्रसार हेतु सर्वप्रथम उसके महत्व को जन-जन तक पहुंचाना आवश्यक है। इसके लिए जब विद्वानों का ज्ञान, धनाढ्यों का सहयोग और साधु का सानिध्य—तीनों एकत्र हो जाते हैं, तब धर्म की प्रभावना निश्चित रूप से सिद्ध होती है।

प्राकृत वाङ्मय एवं सिरि भूवलय के परिप्रेक्ष्य में भारतीय ज्ञान परंपरा के विविध आयाम विषय पर आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में अतिथियों का सम्मान ट्रस्ट अध्यक्ष अमित कासलीवाल, आदित्य कासलीवाल एवं बाल ब्रह्मचारी अनिल भैया द्वारा किया गया। कार्यक्रम का सफल संचालन अरविंद जैन ने किया।

कार्यक्रम के प्रारंभ में अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज के पावन सानिध्य में अतिथियों द्वारा कुंद-कुंद ज्ञानपीठ परिसर में स्थापित मूर्तियों के चित्रों की प्रदर्शनी तथा दुर्लभ पांडुलिपियों के संग्रह का उद्घाटन किया गया। अतिथियों ने प्रदर्शनी एवं संग्रहालय की मुक्तकंठ से सराहना की।
इस अवसर पर अनेक विशिष्ट
समाज जन उपस्थित रहे
कार्यक्रम में मनोहर झांझरी,दिलीप पाटनी,विजय काला, रितेश पाटनी,डी.के.जैन डीएसपी, दिलीप मेहता,रेखा जैन,संजय पापड़ीवाल,नरेन्द्र जैन,मनीष जैन,नवनीत जैन,श्रेष्ठी जैन,कमलेश जैन,विनोद जैन,हितेश जैन,वर्णित जैन डॉ जैनेन्द्र जैन आदि समाजजन उपस्थित थे ।

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