मुरैना (मनोज जैन नायक) सांसारिक प्राणी धन कमाने में पूरी जिंदगी मेहनत करता है । धन का संचय मानव के लिए वरदान भी है और अभिशाप भी है । यदि आप अपने धन का उपयोग अच्छे कार्यों में करते हैं तब तो वो वरदान साबित होगा और यदि धन का उपयोग अनैतिक कार्यों में करते हो तो वो अभिशाप साबित होगा । इसीलिए पूर्वाचार्यों ने कहा है कि अपने धन का उपयोग परोपकार, मानव सेवा, जीवदया और धार्मिक अनुष्ठान आदि आदि सद कार्यों में लगाना चाहिए । इस असार संसार में आए हैं तो कुछ ऐसा करके जाएं कि जिससे लोग हमारे बाद भी हमें याद करें । धन भी हमें पुण्य कर्म के उदय से ही प्राप्त होता है । जरूर आपने पूर्व जन्मों में अच्छे कर्म करते हुए पुण्य संचय किया होगा कि आप इस जन्म में धनवान बने हैं। यदि आप धनवान हैं तो धार्मिक अनुष्ठान, दान आदि आवश्यक रूप में करते रहना चाहिए । त्याग यानिकि दान का और दान देने वालों का एक अलग ही महत्व होता है । क्योंकि जब कोई धन का त्याग अथवा दान करता है तब ही किसी मंदिर, धर्मशाला, प्रतिमा आदि का निर्माण होता है । आज हम सभी श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के विशाल एवं भव्य मंडप में बैठकर सिद्धों की आराधना कर रहे हैं, ये सब त्याग की ही महिमा है, दान की ही महिमा है । क्योंकि इसकी समस्त व्यवस्थाओं में जो धन लगा है या लग रहा है, वह दानदातारों से प्राप्त हुआ है । यानिकि कुछ लोगों ने धन का त्याग किया, तभी यह भव्य अनुष्ठान हो रहा है । उक्त उद्गार श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के दौरान बड़े जैन मंदिर में मुनिराजश्री विलोकसागरजी ने व्यक्त किए ।
प्रतिष्ठाचार्य बा.ब्र. संजय भैयाजी ने मंत्रोचारण से कराई क्रियाएं
परम पूज्य गुरुदेव संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज के परम भक्त/शिष्य प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्रह्मचारी संजय भैयाजी, मुरैना ने आज सिद्धचक्र महामंडल विधान के दूसरे दिन पूज्य मुनिराजश्री विलोकसागर एवं मुनिश्री विबोधसागरजी महाराज के पावन सान्निध्य में श्री जिनेंद्र प्रभु का कलषाभिषेक, शांतिधारा एवं पूजन मंत्रोचारण के साथ कराया । आज विधान के द्वितीय दिन 16 अर्घ्य के साथ जिन्होंने 16 कारण भावना भाते हुए तीर्थंकर बनकर मोक्ष प्राप्त किया, ऐसे सिद्ध प्रभु की आरधना की गई और अष्टद्रव्य के अर्घ समर्पित किए ।
मुनिश्री विबोधसागर ने बताया विधान का महत्व
परम पूज्य मुनिश्री विबोधसागरजी महाराज ने बताया कि सिद्धचक्र विधान आत्मज्ञान और मोक्ष की दिशा में मार्गदर्शन करता है । सिद्धचक्र विधान में सभी प्रकार की पूजाएँ समाहित हो जाती हैं । सिद्धचक्र विधान वह विधान है जिसे श्रद्धा एवं भक्ति के साथ करने से आध्यात्मिक और सांसारिक लाभों की प्राप्ति होती है । जैन शास्त्रों में वर्णित अनेक पूजन-विधानों में ‘सिद्धचक्र मंडल विधान’ का विशेष महत्त्व है ।
सिद्धचक्र विधान, जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण विधान है, जिसका उद्देश्य कर्मों के चक्र से मुक्ति पाना और मोक्ष की प्राप्ति करना है। यह विधान, जिसे अष्टान्हिका पूजा भी कहा जाता है, घर-गृहस्थी के पापों को नष्ट करने और आत्मज्ञान प्राप्त करने में सहायक है । सिद्धचक्र विधान में, भाव सहित आठ दिन श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान करके 49वें भव में सिद्धत्व की प्राप्ति होती है
इस विधान के माध्यम से, व्यक्ति अपने जीवन के चक्रों से मुक्ति पाकर मोक्ष की ओर अग्रसर होता है । सिद्धचक्र विधान, पापों का प्रायश्चित करने और शुद्धि प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है ।सिद्धचक्र विधान, मनोकामनाओं को पूरा करने में भी सहायक है ।
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