औरगाबाद दिल्ली नरेंद्र पियूश जैन जो मनुष्य अपने जीवन को मानवीय कर्तव्यों में व्यतीत करते हैं, वही नेक इन्सान कहलाते हैं। आज ज्यादातर लोग भौतिक सुख सुविधाओं को पाने में या एकत्रित करने में अपने जीवन को व्यतीत कर देते हैं। लेकिन जब वह इस दुनिया से जाते हैं, तो वह अपने साथ कुछ भी लेकर नहीं जा पाते हैं,, उनकी सारी धन दौलत की कमाई यहीं रह जाती है। यदि मनुष्य अपने साथ कुछ लेकर जाता है, तो वह है उसके अच्छे कर्म और लोगों की सदभावनायें।
मनुष्य जीवन का एक ही कर्म और धर्म है — मानवीय सेवा, सत्कर्म और परोपकार। मनुष्य इस दुनिया में सम्राट बनकर आया है,, लेकिन दुर्भाग्य कहो इस सदी का, सम्राट बनकर जन्म लेने वाला इन्सान भिखारियों की तरह जिन्दगी जीता है, जीवन भर भीख मांगता है और भिखारी बनकर मर जाता है। अरे बाबू! तुम सम्राट बनकर आये हो, तो सम्राट बनकर जियो और सम्राट बनकर मरो। आज हम अपने मानवीय कर्तव्यों को भूल कर धर्म, जाति, पन्थ, सम्प्रदाय, गरीब, अमीर, ऊंच-नीच, छोटे-बड़े के वाद विवाद में उलझ कर अच्छे खासे मानव जीवन को बरबाद कर रहे हैं।
धर्म, पन्थ, सम्प्रदाय, मन्दिर के अन्दर तक सीमित होना चाहिए। मन्दिर की दीवार से बाहर निकलें तो सिर्फ हम इन्सान बनकर इन्सानियत का जीवन जीयें। क्योंकि धर्म एक पवित्र अनुष्ठान है जिससे चेतना का शुद्धिकरण होता है। धर्म मनुष्य जीवन में मानवीय गुणों के लिए अमृत और अमरता का श्रोत है,, जिसके आचरण से वह अपने मानवीय जीवन को चरितार्थ करता है…!!! अंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज एवं उपाध्याय पियूष सागरजी महाराज ससंघ तरुणसागरम तीर्थ पर वर्षायोग हेतु विराजमान हैं उनके सानिध्य में विविध धार्मिक कार्योंकम संपन्न हो रहें हैं उसी श्रुंखला में उपस्थित गुरु भक्तों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा। नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद
Regards,
Piyush Kasliwal
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