मन मिले तो मीत बनाऊं.. चित्त मिले तो चेला , नहीं तो में अकेला
मित्रता के तीन लक्षण शरीर, रिश्तेदार और धर्म … अंतर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी
औरंगाबाद/दिल्ली नरेंद्र पियूश रोमिल जैन सोनकच्छ:– मन मिले तो मीत बनाऊं.. चित्त मिले तो चेला , नहीं तो में अकेला क्योंकि में मन का गुलाम नहीं मन मेरा गुलाम है। मन मेरे चरणों का गुलाम है और आप सब मन के गुलाम हो मन की मानते हो इस लिए दुःखी हो। तीन बाते ध्यान रखना जब मन अति क्रोध में तो कोई जवाब न देना…जब मन अति अशांत हो कोई फैसला न लेना और जब मन अति उत्साह में हो तो कोई वचन न देना। यह बात भारत गौरव अंतर्मना आचार्य श्री १०८ प्रसन्न सागर जी महाराज ने ससंघ के साथ श्री तरूणसागरम् पार्श्वनाथ धाम, जिला-गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) के धर्म परिसर में उपस्थित भक्तों से कही .उन्होंने मित्रता दिवस पर कहानी के माध्यम से भक्तों को बताया कि मित्र बनाना भी एक कला है दोस्तो..मित्रता के तीन रूप है शरीर,रिश्तेदार और धर्म .. शरीर रूपी मित्र धोखा देगा । इस शरीर को कितना ही सवार लो सजा दो ये कब तुम्हे धोखा देदे पता नहीं ..इसलिए संत कहते हैं “कोयला धोया दूध से निकला नहीं कोई सार…कोयला तो मंझा नहीं दूध भयो बेकार” ठीक वैसे ही शरीर को मित्र बनाओगे तो धोखा मिलेगा। दूसरा मित्र रिश्तेदार रूपी होता है रिश्तेदार तुम्हारे सहयोगी हो सकते है लेकिन मित्र नहीं..कितना ही उनके लिए कर लो समय आने पर कुछ न कुछ कह ही देगे। और तीसरा मित्र धर्म गुरु व सत्संग रूपी होता है..एक बार धर्म का हाथ पकड़ लिया धर्म तुम्हे भगवान बना के ही छोड़ेगा। गुरु का दामन थाम लिया वो परमात्मा बना के ही छोड़ेगे। इसीलिए कहते है “मछली तो जल में रहे..तो भी बास न जाए..नहा लो धोलो चाहे कुछ भी कर लो सत्संग ही मेल मिटाए”.. जब भी मन का मेल मिटेगा धर्म गुरु व सत्संग से ही मिटेगा। इसलिए सौ धनपतियों से मित्रता करने से ज्यादा अच्छा एक संतगुरु से मित्रता करना है । धनपति समय आने पर मित्रता तोड़ सकता है लेकिन गुरु का हाथ थामा तो छूटने वाला नहीं। धर्म का मित्र बनाना है तो भगवान के देव दर्शन कलाभिषेक करो , पानी छान कर पियो, रात्रिभोजन त्याग आदि को अपनाओ फ्रेंडशिप डे रोजाना मनाओ……
नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद.रोमिल जैन सोनकच्छ