देश, धर्म का विकास चाहिए तो योग्यता अनुसार पद प्रतिष्ठा करो -विशुद्ध सागर जी महाराज

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देश, धर्म का विकास चाहिए तो योग्यता अनुसार पद प्रतिष्ठा करो -विशुद्ध सागर जी महाराज
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सागर/ (भरत सेठ घुवारा ) सागर सिंरौजा में आयोजित श्री मज्जिनेन्द पंचकल्याणक श्री शांतिनाथ जिन बिम्ब प्रतिष्ठा में पंचम दिवस राष्ट्र संत, गणाचार्य श्री 108 विराग सागर जी महा
मुनिराज के पट्टाचार्य चर्या शिरोमणि श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य में प्रतिष्ठेय प्रतिमाओं का प्राण प्रतिष्ठा के संस्कार आरोपित किए गये।
आयोजक -श्री सुरेंद्र कुमार संतोष कुमार जी घड़ी परिवार द्वारा B T I R T प्रांगण में निर्मित शांतिनाथ धाम में नवीन जिनालय में जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर शांति नाथ विराजित करने का सौभाग्य प्राप्त किया है।
शुभ संकल्प – घड़ी परिवार ने इस महानुष्ठान को बिना बोली, बिना राशि ग्रहण किए स्वयं के द्वारा सभी को संसाधन वस्त्राभूषण
एवं वाहन , आवास से लेकर स्वादिष्ट भोजनादि की सभी निशुल्क बेहतर व्यवस्था कर आदर्श प्रस्तुत किया है। यह महा महोत्सव बुंदेलखंड के इतिहास में पहली बार एक ही परिवार के द्वारा वृहद स्तर पर आयोजन चल रहा है।आपने इस आयोजन में जो भी राशि प्राप्त होगी श्री दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र द्रोणगिरी जी के आश्रम में निर्मित सहस्त्र कूट को समर्पित करने का संकल्प किया है।
प्रतिष्ठाचार्य – इस महान आयोजन में पाषाण से भगवान के संस्कारारोपण द्वारा गर्भ से निर्माण तक की अनुष्ठान विधि देश के ख्याति प्राप्त प्रतिष्ठा मार्तण्ड ब्रह्मचारी जयकुमार जी निशांत नवागढ़, प्रतिष्ठा रत्न पं सनत कुमार विनोद कुमार रजवास , पं मनीष जैन टीकमगढ़, पं अरविंद जी रुड़की संपादित कर रहे हैं। ब्रह्मचारी निशांत जी को 250 से अधिक प्रतिष्ठा एवं गजरथ महोत्सव का
दीर्घ अनुभव है आपके प्रतिष्ठाचार्यत्व में इस आयोजन को अभूतपूर्व सफलता एवं आदर्श प्राप्त हुआ है। इस आयोजन में 10 प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है।
प्राण प्रतिष्ठा – मंत्र,यंत्र एवं तंत्र की मांगलिक अनुष्ठान विधि से
आज गर्भ जन्म एवं तप से संस्कारित प्रतिमाओं के आचार्य विशुद्ध सागर जी के वरद हस्तों से अधिवासना, नयनोन्मीलन , बोधि समाधि सूरिमंत्र, चंद्रकला मंत्र, सूर्य मंत्र द्वारा भगवत सन्ता
का आरोपण करके प्राण प्रतिष्ठा की गई जिससे पाषाण प्रतिमाओं में शांतिनाथ के गुणों का गुणारोपण किया गया।
पट्टाचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने विशाल धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि योग्यता के अनुसार पद प्रदान करना चाहिए, योग्य व्यक्ति को ही योग्य- पद पर प्रतिष्ठित करना चाहिए। अयोग्य व्यक्ति यदि पद पर आसीन हो जाएगा, तो अनर्थ हो जाएगा। योग्य व्यक्ति को ही योग्य जिम्मेदारी प्रदान करना चाहिए। योग्य व्यक्ति को ही डॉक्टर, वाहन चालक, शिक्षक, शासक, मंत्री व साधु होना चाहिए। जाति के अनुसार पद नहीं होना चाहिए। देश , धर्म का विकास चाहिए तो योग्यता अनुसार पद – प्रतिष्ठा करो।योग्य कुशल व्यक्ति को ही श्रेष्ठ- पद स्वीकार करना चाहिए।
आचार्य भगवन ने आगे बताया कि बेरी कौन – अन्य कोई किसी का शत्रु नहीं होता है। उधम हीन ही स्वयं का शत्रु होता है जो समय पर कार्य नहीं करता है, जो अनुशासन हीन है, क्रोधी है, कषायी है, हिंसक है, वह स्वयं- ही ‌ सेम का शत्रु ( बेरी) है।
विद्यार्थी समय पर अध्ययन नहीं करेग तो परिणाम क्या होगा। कृषक समय पर खेत में बीज नहीं बोएगा तो क्या फसल उगेगी। स्वयं ही स्वयं के शत्रु मत बनो, पुरुषार्थी बनो। चिंता करने वाला स्वयं ही स्वयं का शत्रु होता है। झूठ बोलने वाला स्वयं ही स्वयं का शत्रु है। मदुरापायी सप्त व्यसनी स्वयं ही स्वयं का शत्रु होता है।

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