सोनल जैन दिल्ली
इस जगत में जितने भी पदार्थ हैं उन्हें संस्कार देकर ही उत्तम बनाया जाता है कोई भी बस्तु संस्कार लेकर पैदा नहीं होती पर प्रत्येक वस्तु संस्कार ग्रहण करने की योग्यता साथ लेकर आता है। इसी प्रकृति का एक हिस्सा है मनुष्य. मनुष्य मपने को संस्कारित करले तो अन्कृति मुस्कुराने लगाती है और यदि मनुष्य संरकार छीन रहे तो प्रकृति को तहस नहस कर देता है जब बालक का जन्म होता है तो कोई संस्कार लेकर नहीं आता, कोई भी बालक जन्म से कोई भाषा सीखकर नहीं आता , जिसक्षेत्र में जन्मलेता है उसी क्षेत्र की भाषा बार बार सुनता है उसी संरकार से संख्ख्यारित होन्मर वह उसी भाषा को सीख जाता है। उन्ही संरकारी से वह अपना जीवन संचालित करता है। परमपूज्य जिनागम पंथ प्रवर्तक, भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी मुनिराज ने कृष्णानगर जैन मंदिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुये व्यक्त किये।
आचार्य श्री ने कहा कोई संस्कार लेकर नहीं आता , संस्कार देना पड़ता है, दिलाना पड़ते हैं, संस्कार संगति से भी ग्रहण किये जाते हैं संगति जैसी होती है संस्कार भी बैसे ही ही जाया करते हैं। कुसंगति के कारण अगर गलत संस्कार बच्चों में आ जाते हैं तो आप उन्हें समझाते हैं’ डाँटते हैं। सिर्फ आयु पर्यंत जीवन ही जीवन नहीं हैं इस जीवन के बाद जो पारलौकिक जीवन होगा उसे श्रेष्ठ बनाने के लिये हमें धर्मगुरूओ से मध्यात्म जगत के संस्कार ग्रहण करना होते हैं। संस्कारो के लिये जीवन में गुरु आवश्यक है लोमिक जीवन के संरख्कार लोकिक गुरु से, और पारलौकिक संस्कार – धर्म गुरूमों की शरण में ही प्राप्त होता है। आचार्य श्री के मंगल सानिध्य में’ आज गुरुपूर्णिमा का पावन पर्व D.AB स्कूल में मनाया जायेगा । इस अवसर पर ‘अष्ट मूलगुण संस्कार महोत्सव ” के माध्यम से दिल्ली में होगा सरकारों का शंखनाद ।