मन की चंचलता,इंद्रियों की चपलता,व्यवहार की कटुता,कार्यशैली की अप्रियता,चरित्र की अशुद्धता को नियंत्रित करना ही उत्तम संयम धर्म की सार्थकता है। यह धर्म बाह्य व आंतरिक दोनो प्रकार से नियंत्रण करने का भाव इंगित करता है। अतः इच्छाओं की वृद्धि करने वाली इन्द्रीयों व चलायमान मन के प्रतिबंधन को ही संयम कहा गया है। उक्त विचार कामां के कोट ऊपर स्थित आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में चल रहे दस दिवसीय दस लक्षण विधान के दौरान उत्तम संयम की पूजा के मध्य अनिमेष जैन द्वारा व्यक्त किये गए।
मन्दिर समिति के कोषाध्यक्ष मयंक जैन एलआईसी से प्राप्त सूचना के अनुसार दसलक्षण धर्म के अंतर्गत छठे दिवस उत्तम संयम धर्म की पूजन की गई। इस अवसर पर सौधर्म इंद्र बनने का सौभाग्य मुकेश चन्द विशाल जैन मणिक जैन रंग पेंट वाले परिवार को प्राप्त हुआ। संजय सर्राफ व दीपक सर्राफ ने कहा कि संयम ही धर्म है, संयम से ही अहिंसा का पालन होता है”, “मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण ही उत्तम संयम है”, “संयम हमें शरीर, धन और परिवार के मोह से हटाकर आत्मा की ओर ले जाता है”, और “संयम वह प्रक्रिया है जिससे मनुष्य स्वयं से परमात्मा बनने का मार्ग तय करता है”।
इस अवसर पर शान्तिनाथ जैन दिवान मन्दिर में भी विशेष पूजा अर्चना की गई। धर्म जागृति संस्थान के राष्ट्रीय प्रचार मंत्री संजय जैन बड़जात्या ने कहा कि मन को वशीभूत करना बड़ा ही कठिन कार्य है जिसे दिगम्बर सन्त संयम साधना के बल पर बड़ी सरलता से नियंत्रित कर लेते हैं यह उनके आचार,विचार,व्यवहार व क्रियाओं में परिलक्षित होता है। जैन समाज के अध्यक्ष अनिल जैन के अनुसार सुगन्ध दशमी पर स्थानीय चारों जैन मंदिरों में धूप अग्नि को समर्पित कर अष्ट कर्मो दर्शनावरणीय, ज्ञानावरणीय, मोहनीय,वेदनीय,आयु,नाम,गोत्र,अंतराय के दहन की भावना श्रावक श्राविकाओं द्वारा भाई गयी तो सुगन्ध से जिनालय महक उठे।
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