दशलक्षण महापर्व के सप्तम दिवस पर गूँजी उत्तम तप धर्म की महिमा ✨ 03 सितम्बर 2025 (बुधवार)

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प्रेस नोट

दशलक्षण महापर्व के सप्तम दिवस पर जैन तीर्थ श्री पार्श्व पद्मावती धाम, पलवल (हरियाणा) में उत्तम तप धर्म का भव्य और मंगलमय उत्सव बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ मनाया गया। इस पावन अवसर पर प्रातः बेला में भूगर्भ से अवतरित चैतन्य चिंतामणि श्री पार्श्वनाथ भगवान का भव्य अभिषेक, शांतिधारा और पुष्पवृष्टि कर भक्तजनों ने अपनी आत्मा को पावन किया। अभिषेक के समय मंदिर परिसर में भक्तों का हृदय भक्ति और श्रद्धा से आलोकित हो उठा, प्रत्येक दृष्टि में परमात्मा के प्रति असीम प्रेम झलक रहा था। पुष्पवृष्टि में चारों ओर रंग-बिरंगे फूलों की वर्षा ने वातावरण को दिव्य और मंत्रमुग्ध कर देने वाला बना दिया। तत्पश्चात धर्मसभा में उत्तम तप धर्म की विशेष पूजा-अर्चना संपन्न हुई और उपस्थित श्रद्धालुओं ने अपने जीवन में तप को आत्मसात करने का गहन संकल्प लिया।

नितिन जैन ने कहा कि—उत्तम तप धर्म केवल शरीर को कठिनाइयों और व्रतों के माध्यम से परिष्कृत करने का साधन नहीं है, बल्कि यह आत्मा को भीतर से जागृत करने, अहंकार और लोभ-मोह से मुक्त होने, तथा परमात्मा के सान्निध्य में स्थायी शांति प्राप्त करने की महान साधना है। उन्होंने कहा कि तप का अर्थ केवल उपवास, एकासन या कष्ट सहने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मा को आंतरिक शक्ति, संयम और स्थिरता प्रदान करने वाला दिव्य साधन है।

नितिन जैन ने कहा कि तप के माध्यम से ही मनुष्य अपने भीतर छिपे क्रोध, अहंकार, लोभ, माया और आत्मकेंद्रित इच्छाओं पर नियंत्रण प्राप्त करता है। आंतरिक तप—क्षमा, विनय, दया, त्याग, स्वाध्याय और ध्यान—आत्मा को निर्मल बनाते हैं, जबकि बाह्य तप—उपवास, एकासन, संयम—शरीर और इन्द्रियों को साधन बनाकर आत्मा को उच्चतर ऊर्जा प्रदान करते हैं। यही कारण है कि उत्तम तप आत्मा के लिए परम आवश्यक है और यह जीव को सांसारिक बंधनों से ऊपर उठाकर मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर करता है।

नितिन जैन ने यह भी बताया कि जो व्यक्ति उत्तम तप के मार्ग पर चलता है, वह केवल अपने कर्मों से मुक्ति नहीं पाता, बल्कि अपने भीतर छिपी असीम शांति, शक्ति और संतोष का अनुभव करता है। तप आत्मा का श्रृंगार है और इसके बिना जीवन अधूरा है। उन्होंने कहा कि दशलक्षण महापर्व का प्रत्येक दिवस आत्मा को जागृत करने और धर्म के मार्ग पर अग्रसर करने का संदेश देता है, परंतु सप्तम दिवस का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह उत्तम तप धर्म का पर्व है, जो जीव को संयम, स्थिरता और आत्मशुद्धि की दिशा में अग्रसर करता है।

आज के इस पावन अवसर पर उपस्थित श्रद्धालुओं ने न केवल उत्तम तप का पालन करने का संकल्प लिया, बल्कि यह भी प्रतिज्ञा की कि वे अपने जीवन में समय-समय पर तप का अनुष्ठान कर आत्मा को पवित्र बनाएँगे और धर्म की इस महान परंपरा को निरंतर जीवित रखेंगे। इस भव्य आयोजन ने श्रद्धालुओं के हृदयों में भक्ति, प्रेम और संयम की भावना को प्रबल किया, साथ ही समाज में धर्म, आत्मशुद्धि और तप का संदेश भी दूर-दूर तक गूँजाया।

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