दशलक्षण महापर्व के छठे दिन श्री पार्श्व पद्मावती धाम, पलवल में गूँजा संयम धर्म और धूप दशमी का संदेश
दिनांक 02-09-2025, मंगलवार
दशलक्षण महापर्व के छठे दिन जैन तीर्थ श्री पार्श्व पद्मावती धाम, पलवल में श्रद्धा और भक्ति का अनुपम संगम देखने को मिला। प्रातःकालीन बेला में जब भूगर्भ से अवतरित आदि ब्रह्मा श्री आदिनाथ भगवान का भव्य अभिषेक और शांतिधारा संपन्न हुई तो वातावरण में ऐसी दिव्यता छा गई मानो सम्पूर्ण धाम आत्मिक ज्योति से आलोकित हो उठा हो। भक्तों ने अपने हाथों से भगवान का अभिषेक कर आंतरिक शांति और आत्मिक आनंद का अनुभव किया। मंत्रोच्चार की पवित्र ध्वनि और शांतिधारा की निर्मल बूँदों ने उपस्थित प्रत्येक जन के मन को गहराई तक स्पर्श किया। इसके उपरांत छठे धर्म उत्तम संयम की पूजन अत्यंत श्रद्धा और भावनाओं के साथ संपन्न हुई। पूजा के क्षणों में ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो स्वयं आत्मा संयम की ओर अग्रसर होने का आह्वान कर रही हो।
इस अवसर पर नितिन जैन ने कहा —
“संयम धर्म आत्मा को भटकाव से निकालकर शांति और आनंद की ओर ले जाने वाला पथ है। हमारी इन्द्रियाँ हमें निरंतर बाहर की ओर खींचती हैं — स्वाद, गंध, स्पर्श, रूप और ध्वनि में उलझाकर हमें क्षणिक सुख देती हैं। किंतु ये सब क्षणभंगुर हैं। एक स्वाद क्षणभर जीभ पर टिककर समाप्त हो जाता है, एक दृश्य पलभर आँखों को लुभाकर खो जाता है, एक स्वर कानों में गूँजकर विलीन हो जाता है। लेकिन आत्मा का आनंद अमर है, शाश्वत है। जब हम संयम का मार्ग अपनाते हैं, तभी उस अनंत सुख का अनुभव करते हैं।”
उन्होंने आगे कहा —
“संयम केवल त्याग नहीं है, यह आत्मा की वास्तविक स्वतंत्रता है। यह केवल मुनियों का धर्म नहीं, बल्कि गृहस्थ जीवन का भी अलंकार है। यदि गृहस्थ वाणी को मधुर बनाए, आहार को मर्यादित रखे, क्रोध को संयमित करे और लोभ का परित्याग करे, तो उसका जीवन भी उतना ही पावन और सार्थक बन सकता है। संयम धर्म का उद्देश्य जीवन का आनंद छीनना नहीं, बल्कि जीवन को संतुलित, अनुशासित और उज्ज्वल बनाना है। यह हमें दिशा देता है, मन को स्थिर करता है और आत्मा को शांति प्रदान करता है। यही कारण है कि दशलक्षण महापर्व का छठा दिन हमें आत्ममंथन का अवसर प्रदान करता है।”
संध्या बेला में धाम का वातावरण एक और विशेषता से भर उठा, क्योंकि आज धूप दशमी भी थी। इस अवसर पर भक्तों ने सामूहिक रूप से धूप खेवकर सभी कर्मों के दहन की भावना व्यक्त की। वातावरण में फैली धूप की सुगंध ने मानो एक संदेश दिया कि जैसे धूप की लपटें अंधकार को दूर करती हैं, वैसे ही हमें अपने भीतर के क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जैसे दुर्गुणों को जलाकर आत्मा को निर्मल बनाना चाहिए। धूप दशमी का महत्व इसी में निहित है कि यह हमें कर्मबंधन से मुक्ति की याद दिलाती है और आत्मशुद्धि की ओर अग्रसर करती है।
पूजन और धूप दशमी के कार्यक्रम के बाद पूरे परिसर में अद्भुत भक्ति-रस की तरंगें फैल गईं। श्रद्धालुओं के चेहरे पर संतोष और आँखों में भावनात्मक आभार की चमक थी। सभी ने यह संकल्प लिया कि दशलक्षण महापर्व और धूप दशमी केवल एक पर्व या परंपरा नहीं, बल्कि जीवन की दिशा बदलने वाले अवसर हैं जिन्हें आत्मकल्याण के लिए अपनाना चाहिए। श्री पार्श्व पद्मावती धाम का यह दिन श्रद्धालुओं के लिए सदा-सदा के लिए अविस्मरणीय बन गया।