दसलक्षण महापर्व चतुर्थ दिवस:- लोभ का त्याग कर शुचिता धारण करना उत्तम शौच धर्म

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दसलक्षण महापर्व के चतुर्थ दिवस आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर कामां में आयोजित दसलक्षण महामंडल विधान में उत्तम शौच धर्म की पूजा की गयी। इस अवसर पर सौधर्म इंद्र बन शांतिधारा एवं प्रथम आरती करने का सौभाग्य अनिल जैन लोकेश कुमार विनीत जैन पंसारी परिवार को प्राप्त हुआ।
जैन समाज से प्राप्त सूचना के अनुसार जैन धर्म के नवमें तीर्थंकर पुष्पदन्त भगवान के मोक्ष कल्याणक पर निर्वाण लाडू समर्पित किया गया।इस अवसर पर दीपक जैन सर्राफ ने कहा कि उत्तम शौच यानि शुचिता को धारण करना है। समस्त प्रकार के लोभ का त्याग ही उत्तम शौच धर्म है। अनिमेष भैया व संजय सर्राफ ने कहा कि हमें सिर्फ बाहर की ही नहीं अंतरंग में भी शुचिता धारण करना चाहिए। यह धर्म हमें बताता है कि लोभ ही सभी दुखों का कारण है। संजय जैन बड़जात्या ने कहा यह धर्म आत्मा की पवित्रता, निर्मलता व स्वच्छता को इंगित करता है।शारिरिक शुचिता के साथ मानसिक शुचिता भी अति आवश्यक है।
शान्तिनाथ दिगंबर जैन मंदिर के कोषाध्यक्ष प्रदीप जैन व रिंकू जैन के अनुसार सोमवार को मंदिर परिसर में स्थित गुरु मंदिर में भोपाल से पधारे भैया अनिमेष जैन के निर्देशन में पूर्वाचार्यों की प्रतिमा के साथ साथ कामां में अवतरित प्रथम गणिनी आर्यिका रत्न श्री 105 विजयमति माताजी की प्रतिमायें दोपहर को नवीन वेदिका में विराजमान की जाएंगी। रविवार को प्रतिमाओं का मार्जन भी पुजारीयों द्वारा किया गया।

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