चिंतनीय : विवाह की बढ़ती उम्र से जूझता समाज का युवा वर्ग

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-डॉ. सुनील जैन संचय, ललितपुर
आज जैन समाज में एक चिंताजनक दौर साफ़ नजर आ रहा है; अधिक उम्र तक युवक-युवतियों की शादी न होना। इसको लेकर आज समाज में काफी चिंताजनक स्थिति है। जैन समाज में प्रत्येक नगर और गांव, कस्बों में एक बड़ी संख्या है जिनकी आयु 30-35 हो गयी है लेकिन विवाह नहीं हुआ है। सबसे चिंताजनक तो यह है कि प्रत्येक शहर , कस्बा, ग्राम में 30-35 आयु वर्ग के लड़कों की एक बड़ी संख्या है जिनकी शादी नहीं हुई है। समाज की इस विकट समस्या पर किसी का भी ध्यान नहीं है।
 लड़के की उम्र 30 के पार जाने लगी है परन्तु शादी की बात करें तो इस उम्र तक उनकी शादी न होना एक सामाजिक समस्या बनकर उभर रही है। यह समस्या इतनी विकराल होती जा रही है कि लड़के एवं लड़कियों की उम्र 30-35 पार करने पर भी वे कुँवारे बैठे हैं यही कारण है कि लड़के-लड़कियों में एक अवसाद की स्थिति उत्पन्न होती जा रही है। इसका एक मुख्य कारणों में तेजी से समाज में परम्पराओं का बदलतादौर शामिल है। हर माँ-बाप अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर अपने पैर पर खड़ा करने के लिए अपना सारा जीवन लगा देते हैं, बेटा-बेटी को अच्छी शिक्षा-दीक्षा देने के लिए हर संभव कोशिश करता है। यह सब उपक्रम बच्चों की कवलियत हो बढ़ा रहा है परन्तु कावलियत और सरकारी नौकरी की अंधी दौड़ में सभी युवा वर्ग इस तरह दौड़ लगा रहा है कि उनके जीवन के सुन्हेरे पल की कुर्वानी देकर यह लक्ष्य हासिल करने के लिए बहुत सी सामाजिक परम्पराओं को आड़े हाथ लेने से नहीं चूकते।
आज मध्यम वर्गीय परिवार से लेकर उच्च वर्गीय परिवारों में ऐसी होड़ सी लग गई है जिसमे सब अपनी बेटियों को सरकारी नौकरी पेशा के घर शादी करना चाहते हैं। किसी सरकारी नौकरी के लड़के को देखकर उसके घर लड़की देने की जैसे होड़ लग जाती है।
एक समय था जब संयुक्त परिवार के चलते सभी परिजन अपने ही किसी रिश्तेदार व परिचितों से शादी संबंध बालिग होते ही करा देते थे। मगर बढ़ते एकल परिवारों ने इस परेशानी को और गंभीर बना दिया है। अब तो स्थिति ऐसी हो गई है कि एकल परिवार प्रथा ने आपसी प्रेम व्यवहार ही खत्म सा कर दिया है। अब तो शादी के लिए जांच पड़ताल में और कोई तो नकारात्मक करें या न करें अपने ही खास सगे संबंधी नकारात्मक विचार से संबंध खराब कर देते हैं। कर्म सिद्धांत पर सबसे ज्यादा विश्वास करने वाला,  पढ़ा -लिखा और चींटी तक को कष्ट न पहुँचाने वाले समाज में जलन और ईर्ष्या भाव तेजी से बढ़ रहा है,  एक-दूसरे का अच्छा होते देखना ही नहीं चाहते। एक-दूसरे की शादी-संबंध बिगाड़ने में लोग कोई कसर नहीं छोड़ते हैं, यह एक गंभीर समस्या है।
एक समय था जब खानदान देख कर रिश्ते होते थे। वो लम्बे भी निभते थे। समधी-समधन में मान मनुहार थी। सुख-दु:ख में साथ था। रिश्ते-नाते की अहमियत का अहसास था।चाहे धन-माया कम थी मगर खुशियाँ घर-आँगन में झलकती थी। कभी कोई ऊँची-नीची बात हो जाती थी तो आपस में बड़े-बुजुर्ग संभाल लेते थे। तलाक शब्द रिश्तों में था ही नहीं | दाम्पत्य जीवन खट्टे-मीठे अनुभव में बीत जाया करता था। दोनों एक-दूसरे के बुढ़ापे की लाठी बनते थे और पोते-पोतियों में संस्कारों के बीज भरते थे। अब कहां हैं वो संस्कार? आँख की शर्म तो इतिहास हो गई। नौबत आ जाती है रिश्तों में समझौता करने की। लड़का-लड़की अपने समाज के नही होंगे तो भी चलेगा, ऐसी बातें भी सामने आ रही हैं।
हर लड़की और उसके पिता की ख्वाहिश से आप और हम अच्छी तरह परिचित हैं। पुत्री के बनने वाले जीवनसाथी का खुद का घर हो, कार हो, परिवार की जिम्मेदारी न हो, घूमने-फिरने और आज से युग के हिसाब से शौक रखता हो और कमाई इतनी तगड़ी हो कि सारे सपने पूरे हो जाएं, तो ही बात बन सकती है। हालांकि सभी की अरमान ऐसे नहीं होते । शायद हर लड़की वाला यह नहीं सोचता कि उसका भी लड़का है तो, क्या मेरा पुत्र किसी ओर के लिए यह सब पूरा करने में सक्षम है? यानि एक गरीब बाप भी अपनी बेटी की शादी एक अमीर लड़के से करना चाहता है और अमीर लड़की का बाप तो अमीर से करेगा ही। ऐसे में सामान्य परिवार के लड़के का क्या होगा? यह एक चिंतनीय विषय सभी के सामने आ खड़ा हुआ है। संबंध करते वक्त एक दूसरे का व्यक्तिव व परिवार देखना चाहिए ना कि पैसा। कई ऐसे रिश्ते भी हमारे सामने हैं कि जब शादी की तो लड़का आर्थिक रूप से सामान्य ही था मगर शादी बाद वह आर्थिक रूप से बहुत मजबूत हो गया। ऐसे भी मामले सामने आते हैं कि शादी के वक्त लड़का बहुत अमीर था और अब स्थिति सामान्य रह गई। दूसरी ओर बढ़ती महंगाई और आधुनिक रहन-सहन की चाहत ने हमारे समाज को इतना तो झुकने के लिए मजबूर कर ही दिया है कि कम से कम पच्चीस-तीस हजार रुपए महीना कमाने वाली बहू के परिवार में आगमन अब आर्थिक समस्या से निपटने का उपाय माना जाने लगा है। जबकि हमें सोचना चाहिए कि लक्ष्मी तो आती जाती है ये तो नसीबों का खेल मात्र है।
आज समाज की लडकियाँ और लड़के खुले आम दूसरी जाति की तरफ जा रहे हैं और दोष दे रहे हैं कि समाज में अच्छे लड़के या लड़कियाँ मेरे लायक नहीं हैं। कारण लड़कियाँ आधुनिकता की पराकाष्ठा पार कर गई हैं। जब ये लड़के-लड़कियाँ मन से मैरिज करते हैं तब ये कुंडली मिलान का क्या होता है ? तब तो कुंडली की कोई बात नहीं होती‌ | यही माँ बाप सब कुछ मान लेते हैं। तब कोई कुण्डली, स्टेटस, पैसा, इनकम बीच में कुछ भी नहीं आता। प्रेम विवाह यानि लव मैरिज का चलन समाज में तेजी से बढ़ रहा है। समाज में पैसा ही सबकुछ हो गया है बाकि सब …?
बिडम्बना है कि समाज में बढ़ रही युवाओं की विवाह की उम्र पर कोई चर्चा करने की व इस पर कार्य योजना बनाने की फुर्सत किसी को नहीं है। कहने को समाज की अनेक संस्थाएं हैं वे भी इस गहन बिन्दु पर चिंतित नजर नहीं आती।
अगर अभी भी माँ-बाप नहीं जागेंगे तो स्थितियाँ और विस्फोटक हो जाएंगी।

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