चिंतनीय : ग्रामों से समाप्त होती जैन संस्कृति -डॉ सुनील जैन संचय, ललितपुर

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जैनधर्म अनादिकाल से प्रवाहमान है। यह सनातन धर्म है। जैनधर्म के अनुयायी पूरे देश के कोने-कोने में बसते हैं लेकिन हम यदि वर्तमान संदर्भ में बात करें तो देखने में आ रहा है कि जैनधर्म जो गांवों-गांवों में होता था वह आज शहरों और कस्बों तक सीमित होता जा रहा है। निरन्तर जैन संस्कृति का वैभव सिमिट रहा है। एक समय ऐसा था जब गांव- गांव में जैन समाज अच्छी संख्या में एवं अच्छे प्रभावशाली अस्तित्व में थी किंतु धीरे- धीरे यह संकुचित एवं खत्म सा होता जा रहा है। गांवों से जैन समाज के लोगों का शहर की ओर पलायन करने से वहाँ के मंदिर आदि में विराजमान प्रतिमाएं शहर, कस्बों में पहुँच रही हैं और मंदिर भी कुछ वर्षों बाद खंडहर में तब्दील हो जाएंगे, गांवों में जैन संस्कृति का नामोनिशान नहीं रहेगा।
पिछले वर्षोँ में श्री भागचंद जी जैन बड़ामलहरा ने मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित बड़ामलहरा कस्बा के आसपास के गांवों की एक सूची सोशल मीडिया पर जारी की थी जिनमें उन्होंने जिन ग्रामों को  जैन समाज बाहुल्य के रूप में जाना जाता था लेकिन आज  वह गांव जैन मंदिर एवं जैन समाज विहीन या तो पूर्णतः हो चुके हैं या नाम मात्र को हैं।
वर्तमान पीढ़ी को हम अतीत से परिचित कराना चाहते हैं। आइए जाने हमने लगभग विगत 50 वर्षों में क्या खोया क्या पाया ।
बड़ामलहरा क्षेत्र के वे गांव जो जैन समाज से रहित अथवा अंशमात्र जैन समाज बची है-
1, महाराज गंज ,2. सूरजपुरा, 3.वमनी घाट, वमनी छाईकुआ, 5. कर्री,6.खरदोन, 7.बीरों, 8.बरेठी
9,वर्मा,10,सतपारा, 11, वारों,12, बंधा चंदौली,13. पनवारी ( अंश मात्र), 14.खटोला,15,रानीताल(अंशमात्र),16.अंधयारा,17, बड़ा शाहगढ़ (अंश मात्र), 18, बड़ागांव, 19,घिनौचि, 20,दलीपुर,21, पाटन ( अंश मात्र), 22,कुपि   (अंश मात्र), 23,वरदुवाहा (अंश मात्र), 24. गढ़ा (अंशमात्र), 25, सिमरिया (अंश मात्र), 26, गोरखपुर, 27,सिजवाहा,28,भोंयरा, 29,कायन, 30,फुटवारी 31, कुर्रा (अंशमात्र), 32,सड़वा (अंशमात्र), 33, (गढ़ा )पिपरिया, 34,भातपुरा, 35,टहनगा, 36, कुंआरपुरा।
यह सूची तो एक बानगी मात्र है। उपरोक्त स्थिति मात्र बड़ामलहरा परिक्षेत्र की लिखी है । अभी पूरा छतरपुर जिला इसमें शामिल नहीं है।
हमें सोचना यह है कि परिस्थितियों ने मात्र एक जनपद में जैन वैभव को इतना समेट दिया है।
तो पूरे देश की स्थिति क्या होगी? मैं जहाँ रहता हूँ ऐसे ललितपुर जनपद की ही बात करूं तो ललितपुर जनपद में अनेक गांव जैन समाज से खाली हो चुके हैं, कुछ गांवों में नाममात्र को दो-चार घर बचे हैं जो वे भी जल्द समाप्त हो जाएंगे। कहीं-कहीं के मंदिर खंडहर में तब्दील हो गए हैं।
यदि खोज करें तो देश के गांव- गांव में बड़ी संख्या में जैन समाज थी किंतु वह सिमटती चली गई। उसके बदले में हमने क्या किया है?
जो भवितव्यता है उसे तो कोई नहीं रोक पायेगा। किंतु हमारा लिखने का आशय मात्र इतना है कि वर्तमान पीढ़ी मात्र उपरोक्त ग्रामों के नाम से तो कम से कम परिचित हो ही जाये जिससे हमारे जैन वैभव पर गौरव तो बना ही रहे।
हमारा सुझाव है कि उपरोक्त जिन ग्रामों के मंदिर विस्थापित होकर कस्वा या शहरी क्षेत्र में स्थापित हो गए हैं उन गांवों के मंदिरों में एक पट्टिका लगाई जाए। एक ऐसा स्थायी दस्तावेज तैयार किया जाय जिसमें  खाली हो चुके या हो रहे प्रत्येक गांव के जैन मंदिर की फोटोज सहित प्रतिमाओं की फोटोज उनकी प्रशस्ति और इतिहास उल्लेखित हो जिससे ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में उसका उपयोग हो सके।

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