श्रावण शुक्ल तृतीया जिसे राजस्थान में हरियाली तीज के रूप में मनाया जाता है के पावन दिन टोंक की पावन धरा पर एक अद्भुत चमत्कारिक घटना के साथ व्यतीत हुआ। ऐसा प्रतीत हुआ कि जैसे चतुर्थ काल में तीर्थंकरों को अवधि ज्ञान होता है वैसे ही पंचम काल में भी महान त्यागी, तपस्वी संयमी संतो को अवधि ज्ञान हो जाता है।अवधिज्ञान, जैन धर्म में एक विशेष प्रकार का ज्ञान है जो इंद्रियों और मन की सहायता के बिना, सीमित क्षेत्र में पदार्थों को प्रत्यक्ष रूप से जानने की क्षमता प्रदान करता है। यह ज्ञान, रूपी पदार्थों को जानने वाला और आत्मा से उत्पन्न होने वाला ज्ञान है, और इसे प्रत्यक्ष ज्ञान का एक रूप माना जाता है।
रविवार 27 जुलाई का पावन दिन दोपहर का समय आचार्य कक्ष में जैन जगत के ख्यात नाम जैन पत्रकार उपस्थित और वहां विराजमान परम पूज्य वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर महाराज, पत्रकारों का परिचय चल रहा था इसी बीच क्षुल्लक श्री विशाल सागर महाराज का आगमन, गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए होता है और गुरुदेव ने अपने ज्ञान से यह जान लिया था कि है जीव अब ज्यादा समय इस संसार में रहने वाला नहीं है। उन्होंने आज्ञा प्रदान की कुछ समय पश्चात आपको जैनेश्वरी दिगंबर दीक्षा प्रदान की जाएगी जिसे क्षुल्लक श्री ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
सैकड़ो लोगों की उपस्थिति और संपूर्ण संघ के समक्ष मोक्ष के पथिक क्षुल्लक श्री विशाल सागर महाराज को विधि विधान पूर्वक आचार्य श्री वर्धमान सागर महाराज द्वारा दीक्षा प्रदान की गई तो बड़ी ही प्रसन्नता के साथ अपने शरीर पर पड़े वस्त्रों के आवरण को स्वयं क्षुल्लक जी ने उतार फेंका और केश लोचन हुआ और हंसी-हंसी यह दीक्षा सभी की उपस्थिति में पूर्ण हुई। ग्रहस्थ अवस्था के अधिकतर परिवरीजन, रिश्तेदार एवं समाजजन आदि वहां उपस्थित थे।
शांति समागम का वृहद आयोजन मुख्य मंच से चल रहा था, गुरुदेव वहां पहुंचते हैं तृतीय सत्र प्रारंभ होता है और दीक्षा के 15 मिनट पश्चात ही समतापूर्वक समाधि की खबर गुरुदेव के कानों तक पहुंचती है। वहां उपस्थित जन समुदाय अचंभित और आश्चर्यचकित रह जाता है जैसे कोई चमत्कारिक घटना घटी हो। अनायास ही सबके मुख से निकलता है कि *धन्य हो आचार्य वर्धमान सागर महाराज* जो इस पंचम काल में भी इतने अवधि ज्ञानी हैं जिन्होंने भविष्य को जान एक पथिक को मोक्ष की यात्रा पर रवाना कर दिया सबने अपनी आंखों से इस चमत्कार को देखा और स्वयं को धन्य महसूस करने लगे की ऐसी घड़ी के हम साक्षी बने हैं। नमोस्तु गुरुवर
चरण चंचरीक:- संजय जैन बड़जात्या कामां, सवांददाता जैन गजट