चातुर्मास में श्रावकों को भी संयम की साधना करना चाहिए – मुनिश्री विलोकसागर

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चातुर्मास में श्रावकों को भी संयम की साधना करना चाहिए – मुनिश्री विलोकसागर
बड़े जैन मंदिर में प्रतिदिन होते हैं मुनिश्री के प्रवचन

मुरैना (मनोज जैन नायक) वर्तमान में मानव जीवन अस्त-व्यस्त है। क्योंकि मानव ने अपने जीवन के प्रति शुभभाव को नहीं अपनाया हैं। जिन्होंने शुभभाव की प्राप्ति कर ली वह वंदनीय हैं। जैसे जैसे गुणों की वृद्धि होती है पूज्यता बढ़ती जाती है। जैन दर्शन एक ऐसा दर्शन है जो प्राणी मात्र को परमात्मा बनने की शक्ति प्रदान करता है । जैन दर्शन में व्यक्ति विशेष को नमन नहीं किया जाता बल्कि उसके गुणों को नमन किया जाता है । प्रत्येक जीवात्मा अपने तपोबल से परमात्मा बन सकती है । परमात्मा बनने के लिए उसे अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त करनी होगी, अपनी इंद्रियों को वश में करना होगा । इसके लिए श्रावकों को नित्य अभ्यास करना होगा । श्रावकों का चाहिए कि परिस्थिति अनुकूल न होने पर भी धैर्य रखें और सभी जीवों के प्रति समता भाव रखें। राग द्वेष व बैर भाव को कम करें। हमें यह चिंतन करना चाहिए कि स्वभाव मेरी संपत्ति है और कर्मों ने उस पर कब्जा कर रखा है । हमें अपने कर्मों से छुटकारा पाना होगा । उक्त उद्गार मुनिश्री विलोकसागरजी महाराज ने बड़े जैन मंदिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
मुनिश्री ने श्रावकों को समझाते हुए कहा कि चातुर्मास का प्रतिष्ठापन तो साधु संत करते हैं किंतु चातुर्मास को सुचारू रूप से आगे बढ़ाने की जवाबदारी श्रावकों की होती है । श्रावकों का कर्तव्य है कि वे साधु संतों की चर्या में सहभागी बनें । साधुओं के स्वाध्याय, विश्राम, ध्यान, आहार, निहार, प्रवचन आदि की उचित व्यवस्था करें ।
चातुर्मास के चार महीनों में श्रावकों को भी साधना करने का अवसर मिलता है । लेकिन श्रावक साधना तभी कर पाते हैं जब वे चेतन अवस्था में रहते हैं। श्रावकों का कर्तव्य है कि वे नियमित रूप से साधुओं के प्रवचन आदि सुनकर अपने जीवन में परिवर्तन लाने का प्रयास करें । अपने मन की शंकाओं का, मन में उठने वाली जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करें । साधुओं की वैयावृति करते हुए जैन दर्शन के सिद्धांतों को अंगीकार करें ।
चल रहा है णमोकर मंत्र लेखन कार्य
पूज्य गुरुदेव की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से णमोकार मंत्र लेखन का कार्य तीव्र गति से चल रहा है। बुजुर्ग, माता बहिने एवं बच्चे सभी लोग पूर्ण समर्पण एवं भक्ति के साथ इस लेखन कार्य को अंजाम दे रहे हैं। जो महिलाएं दिन में फुर्सत के समय टी वी देखती थी या मोबाइल चलाती थीं वे अब इन सबको छोड़कर सिर्फ णमोकार मंत्र का लेखन कार्य करतीं हैं। णमोकर मंत्र के जाप अथवा लेखन से मन को शांति मिलती है साथ ही अज्ञानतावश जाने अनजाने में हुए पापों का क्षय भी होता है।

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