*वर्षायोग की धार्मिक फुहारों में भिगोने के साथ सामाजिक उत्थान की हो वर्षा*
समाज और साधु परस्पर समानांतर चलने वाली रेखाएं हैं। जो एक दूसरे को संभालते हुए आगे बढ़ती है जब भी समाज को जरूरत होती है तो साधुओं के द्वारा ही उन्हें मार्गदर्शित किया जाता है। यू कहें कि समाज को दर्पण दिखाने का कार्य यदि कोई करता है तो वह साधु सन्त ही है। साधुओं के द्वारा कही गई बातों का समाज के प्रत्येक व्यक्ति के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है और उनके वचनों के माध्यम से जीवन में आमूल चूल परिवर्तन तो आता ही है साथ ही जीवन को सटीक दिशा भी मिल जाती है। जिससे दशा में स्वयमेव ही परिवर्तन हो जाता है। सन्त ही प्रेरणा के स्रोत हैं उन्ही के माध्यम से समाज को जागृत किया जा सकता है।
वर्षायोग की धार्मिक फुहारों में भिगोने के साथ सामाजिक उत्थान की हो वर्षा तभी वर्षायोग की सार्थकता है।वर्तमान में अनेको शहरों,कस्बो में वर्षायोग स्थापित होने जा रहे या हो चुके हैं। उन सभी वर्षायोगों से स्थानीय के साथ आसपास की समाजों में बड़ा ही धार्मिक वातावरण का माहौल रहता है और कई श्रावक व श्राविकाएं इस माहौल में स्वयं को रंगने लगते हैं। बड़े आचार्य भगवंतों के सानिध्य में वृहद व राष्ट्रीय स्तर के आयोजन भी सम्पन्न होते हैं ऐसे में हम संतो के माध्यम से जैन समाज की ज्वलन्त समस्याओं पर व्यापक चर्चा कर कुछ समाधान के मसौदे तय कर सकते हैं। जिससे सामाजिक उत्थान,एकता के साथ समाज मे व्याप्त हो रही समस्याओं के निराकरण का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। निम्न विषयों पर व्यापक चर्चा करने की आवश्यकता है।
1- वर्तमान में जैन समाज मे बढ़ रहे विजातीय व विधर्मी विवाहों पर रोक
2- जैन समाज की बेटियों को अन्य धर्मो के युवकों से विवाह कर विधर्मी होने से रोकने व जागरूक करने।
3- लिवइन व लवजिहाद जैसी महामारी से दूर रहने (विशेषकर जैन बेटियों हेतु) 4- अपने नाम के साथ जैन उपनाम लिखाने,
5- बच्चों के प्रथम नामांकन व जन्म प्रमाण पत्र में जैन उपनाम जोड़ने,
6- आगामी जनगणना में धर्म के कॉलम में जैन लिखाने के लिए जाग्रति अभियान चलाने,
7- समस्त प्राचीन जैन तीर्थो के सवंर्धन व संरक्षण हेतु आवश्यक कार्य जैसे प्रत्येक तीर्थ के दस्तावेजों का संरक्षण करना उन्हें अपडेट करवाना।
8- तीर्थो व मंदिरों की बाउंड्री वाल का निर्माण कराने की प्रेरणा देना आवश्यक है।
युवाओं को धर्म की मुख्य धारा से जोड़ने जैसे विषयों पर प्रत्येक साधु व साध्वियों को अपना मौन आवश्यक रूप से तोड़ना चाहिये। *जैन हैं तो जैन लिखाएं,अपनी पहचान न छुपाएं* की अवधारणा पर चिन्तन व मंथन की आवश्यकता है। यहाँ मैं आवश्यक रूप से यह कहना चाहता हूं कि नवीन तीर्थो का निर्माण होना चाहिए किंतु हमारी विरासत व धरोहर प्राचीन तीर्थो की सुरक्षा होना भी अति आवश्यक है।
आओ मिल प्रयत्न करें वर्षायोग में जैन धर्म की प्राचीनता को सिद्ध करने के लिए दृढ़ संकल्पित हों। मेरी लेखनी संतो को किसी भी कीमत पर निर्देशित नहीं कर सकती किंतु चरण वन्दन कर निवेदन तो कर सकती है की वर्षायोग की महत्वपूर्ण समयावधि में आप ज्वलंत विषयों पर अपनी बेबाक टिप्पणी रखकर समाज को प्रेरित व जागृत करने का प्रयास करें आपके श्री चरणों में बारंबार नमोस्तु।
