चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज आचार्य पदारोहण शताब्दी वर्ष

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युगप्रवर्तक का यशस्वी आचार्य पद  शताब्दी वर्ष
-डॉ. सुनील जैन संचय, ललितपुर
9793821108
भारत की तपोभूमि ने अनगिनत ऋषियों, मुनियों और आचार्यों को जन्म दिया है, जिन्होंने आत्मकल्याण के साथ-साथ लोककल्याण के पथ को आलोकित किया। ऐसे ही युगपुरुष थे चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज, जिनका जीवन त्याग, तपस्या, संयम और चारित्र की चरम पराकाष्ठा का प्रतीक रहा। वर्तमान वर्ष (2025-26) उनके आचार्य पदारोहण का शताब्दी वर्ष है — एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्त्व का क्षण, जो हमें उनके जीवन, दर्शन और योगदान को पुनः स्मरण कर श्रद्धानत होने का अवसर देता है।
आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज का जन्म 1872 ई. में कर्नाटक के यलगुड ग्राम में हुआ था।बचपन से ही उनका जीवन अध्यात्म और वैराग्य की ओर उन्मुख था। 1918 में उन्होंने मुनि दीक्षा लेकर दिगंबर साधु परंपरा में प्रवेश किया और कठोर संयम, निर्भय वाणी और गहन साधना के माध्यम से शीघ्र ही साधु समाज में विशिष्ट स्थान प्राप्त किया। 1925 ई. में उन्हें ‘आचार्य’ पद पर प्रतिष्ठित किया गया, जो दिगंबर साधु परंपरा के पुनरुद्धार का ऐतिहासिक क्षण था।
आचार्य पदारोहण: परंपरा का पुनर्जीवन
बीसवीं सदी के प्रारंभिक काल में जब दिगंबर साधु परंपरा भारत में क्षीण हो रही थी, उस समय आचार्य श्री ने अपने तेजस्वी आचरण, निर्भीक प्रवचन और अपार तपस्या से न केवल परंपरा को पुनर्जीवित किया, बल्कि इसे जन-जन तक पहुँचाया। आचार्य पदारोहण की इस घटना ने दिगंबर परंपरा को पुनः जीवंत किया। ‘चारित्र चक्रवर्ती’ के नाम से प्रसिद्ध हुए आचार्यश्री ने दिगम्बर जैन परंपरा को पुनर्जीवित कर ऐतिहासिक कार्य किया।
झुकते हैं सिर श्रद्धा सहित, उस नंगे पाँव तपस्वी को,
जिसने भारत की धरा पर, फिर से संयम रेखा खींची।
चारित्र चक्रवर्ती वह था, जिसका कोई तुल्य नहीं,
जिनशासन के उजियारे में, वह अमर दीप-सा दीप्त दिखे।
चारित्र की पराकाष्ठा :
उनका चारित्र इतना सुदृढ़ और तेजस्वी था कि वे चलते-फिरते तपोवन कहलाते थे। उन्होंने  कई कठोर उपवास किए, कभी अनुकूलता की अपेक्षा नहीं की और जीवन भर मात्र आत्मकल्याण के पथ पर अडिग रहे। आचार्य श्री शांतिसागर जी ने एक परंपरा की पुनर्स्थापना की जो आज भारतभर में सक्रिय है और विश्वभर में जैन अनुयायियों को मार्गदर्शन देती है।
शताब्दी वर्ष का महत्व :
2025-26 में आचार्यश्री के आचार्य पदारोहण की 100वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है, जो केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि आत्मनिरीक्षण, चारित्र साधना और परंपरा के प्रति आस्था को पुनर्स्थापित करने का अवसर है। परंपरा के पंचम पट्टाचार्य वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमानसागर जी महाराज की मंगल प्रेरणा से देशभर में जैन समाज विविध आयोजन कर रहा है। यह वर्ष हमें उनकी शिक्षाओं को जीवन में अपनाने और उन्हें अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का संकल्प प्रदान करता है।
आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज का आचार्य पदारोहण केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक क्रांति का प्रारंभ था। उनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है—कि कैसे कठोरतम आचार संहिता में रहते हुए भी लोककल्याण और आत्मकल्याण संभव है। इस शताब्दी वर्ष में हमें उनके सिद्धांतों को स्मरण कर उन्हें आत्मसात करना चाहिए, जिससे हमारा जीवन भी संयम, साधना और शांति की ओर अग्रसर हो।
आज जो भी संयम-पथिक हैं, उनका आधार वही पुरुष।
शांतिसागर, नाम नहीं बस, वह युगपुरुष महान है।।

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