मैं न कोई अर्थशास्त्री न राजनीतिक व्यक्तित्व। एक साधारण नागरिक के रूप में जैसा मैंने इस बजट को देखा समझा है। बजट का, आर्थिक व्यवस्था में विशेष महत्व है। आम बजट किसी भी देश का वह आर्थिक आईना होता है जिसमें देश का हर नागरिक अपना अक्स देखना चाहता है। सब ही नागरिक अपनी कमाई और बचत को लेकर के बड़े ही चौकन्ना रहते हैं।
देश का समग्र विकास हो इसलिए नए बजट में इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर हर एक मद में काफी बढ़ोतरी की गई है। भारतीय संस्कृति के अनुरूप जीवनयापन करने वाले हम सदैव ही से बचत-मूलक रहे हैं। धन कमाओ, बचत करो और उसके बाद खर्च करो। बचत, धन-सृजन का एक अनिवार्य पहलू है। अब तक के बजट में नागरिकों को यह सुविधा थी जो पैसा प्राप्त हो रहा है उस पर बचत करके, उस पर टैक्स दो और खर्च करो। लेकिन नई कर व्यवस्था में करदाता कटौती का दावा नहीं कर सकते। अब नागरिकों से अपेक्षा की जा रही है कि उन्हें बचत-प्रधान ना होकर खर्च-प्रधान होना चाहिए। बजट में बचत की कोई स्कीम शायद इसलिए नहीं है कि करदाता के हाथ में पैसा रहेगा। जिससे कि बाजार में मांग बड़े, उत्पादन बढ़े।
मध्यम वर्ग में टैक्स की बचत से उपभोग को बढ़ावा मिलेगा इसीलिए नई व्यवस्था में 7 लाख की आय तक कोई कर नहीं। टैक्स सेविंग में उलझ कर करदाता अपने खर्च कम करता रहता है। इससे इकोनामी ग्रोथ रुकी रहती है। नए कर विकल्प का आकर्षण है कि टैक्स सेविंग छूट वाली कोई योजना नहीं। जिससे करदाता बचत की तरफ कम जाकर खुलकर खर्च करेंगे, जो इकोनॉमी के लिए फायदेमंद होगा। यह सब तो होगा लेकिन आड़े वक्त में बचत नाम की जो संजीवनी थी वह हमें विपत्तियों में असहाय छोड़कर उड़नछू हो जाएगी।
सांसारिक, आर्थिक क्रियाकलापों को बजट के द्वारा संतुलित करना ही पूर्ण सुख के लिए पर्याप्त नहीं। इस सबके साथ आध्यात्मिक और नैतिक बाध्यताओं को लेकर अपने भावों, विचारधारा का भी लेखा-जोखा रखना नितांत अनिवार्य है। गत वर्ष हमने कितना प्रिय या अप्रिय किया, हमारे नैतिक मूल्यों में वृद्धि हुई या गिरावट। अपनों की संख्या और उनसे जुड़ी प्रीत में फायदा हुआ या नुकसान? अगर कुछ नकारात्मक है तो कल इन सबकी पुनरावृत्ति न हो, इस आकलन के साथ मानवीय मूल्यों को दृष्टिगत रखते हुए आने वाले वर्ष के लिए एक स्व-पर कल्याणकारी संतुलन स्थापित करना है।
मेरे ज्ञानानुसार यह बजट देश के समग्र विकास को समेटे, ग्रोथ को बढ़ाने वाला, एक ओर अर्जन का प्रेरक, विसर्जन के लिए प्रोत्साहित करने के साथ आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो संग्रह (बचत) को नियमित करता है। भोग की राह दिखाता हुआ अपरिग्रहवादी है।
जज (से.नि.)
डॉ. निर्मल जैन