बिना कहे जो सब कह जाते, बिना कसूर जो सब सह जाते, दूर रहकर भी जो अपना फर्ज निभाते, वही रिश्ते अपनत्व का बोध कराते..! अंतर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्नसागर औरंगाबाद 19 मई) अंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी की उत्तराखण्ड के बद्रिनाथ से हरिद्वार के लिए अहिंसा संस्कार पदयात्रा चल रही है आज तरुण सागरम तीर्थ अहिंसा संस्कार पद यात्रा ऋषिकेश दिगम्बर जैन समाज कों प्रवचन के मध्याम से गुरुदेव अंतर्मना ने प्रदान किये कई नियम अंतर्मना गुरुदेव ने बातया की तप त्याग संयम साधना ही मोक्ष मार्ग के दार हैउभय मासोपवासी साधना महोदधि प.पू. अंतर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्नसागर जी महाराज
उपाध्याय श्री 108 पियूष सागर जी महाराज*
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय शिवपुरी संकुल केन्द्र तिमली, वि. ख. नरेन्द्र नगर ( जिला टिहरी जिला टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड प्रातः पूजन दीप आराधना हुई संपन्न 13 वें दिवस में बद्रीनाथ से लगभग 300 किलोमीटर की दुरी की तय कर निरंतर चल रहा है मंगलमय पदविहार तेज दोपहरी भीषण गर्मी में बढ़ते कदम हरिद्वार की ओर गीतांजलि कुंज नियर आनंद प्रकाश आश्रम तपोवन जिला टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड गीतांजलि कुंज नियर आनंद प्रकाश आश्रम तपोवन जिला टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड
अंतर्मना गुरुभक्त परिवार के द्वारा अष्टद्रव के सहित रूप से संपन्न हुई गुरुपूजन श्री दिगंबर जैन पंचायती 102 हरिद्वार मार्ग, ऋषिकेश, देहरादून उत्तराखंड
भागीरथी नदी के किनारे संपन्न संध्या गुरुभाक्ति प्रवचन मंगल आरती 19/05/2025 राणा जी का फार्म हाउस ऋषिकेश उत्तराखंड में आहारचर्यासम्पन्न हुई
बिना कहे जो सब कह जाते, बिना कसूर जो सब सह जाते, दूर रहकर भी जो अपना फर्ज निभाते, वही रिश्ते अपनत्व का बोध कराते..!
इसलिए —
जो कह दिया वो शब्द थे।
जो नहीं कह पाये वो अनुभूति थी।
जो कहना था, मगर कह नहीं सकते — वो मर्यादा है।
तभी तो शब्द भी एक भोजन है, शब्द-शब्द का भी एक स्वाद है। कुछ भी बोलने से पहले हम स्वयं चख लें। यदि खुद को अच्छा ना लगे, तो दूसरों को मत परोसिये। क्योंकि — आप अपने विचारों को वश में रखिये, वो शब्द बनेंगे। जनाब — आप अपने शब्दों को वश में रखिये, वो आपके कर्म बनेंगे। महोदय — आप अपने कर्मों को वश में रखिये, वो आपकी आदत बनेंगे। श्रीमान जी — आप अपनी आदतों को वश में रखिये, वो आपका चरित्र बनेगी। धी मान जी — आप अपने चरित्र को वश में रखिये, वो आपका भाग्य, सौभाग्य और नसीब बनेगा। कुछ नसीहतें नर्म लहजे में अच्छी लगती है, क्योंकि पहरेदार का काम, सिर्फ पेहरा देना होता है ना कि घरो में झाँकने का।हमने देखा चाकू, तीर और तलवार कहीं लड रहे थे, कि कौन ज्यादा घाव देता है.. और शब्द पीछे बैठे मुस्कुरा रहे थे…!!! नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद