*गौरेला* । सांसारिक विषय कषाय पापवृत्ति से निवृत्त कर जो सन्मार्ग पर प्रवृत्त करे वही सम्यक ज्ञान है। भौतिक परिवर्तन बाह्य घटना है आत्मपरिवर्तन अंतरंग की अनुभूति है।बाहर सुखदुख का साथ है और अंतरंग में प्रवेश करते ही आनंद का सागर लहराता है। स्वयं को निर्णय करना है किधर जाना है और क्या पाना है।रागी धरातल पर,वीतरागी उच्चासन पर विराजमान होता है। तपकल्याणक दिवस पर उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुये संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के योग्य शिष्य मुनि श्री महासागर महाराज ने कहा कि सम्यक ज्ञानी ही सम्यक दर्शन सम्यक चारित्र का धारक होता है।ये तीनों बहुवचन नहीं एक वचन है सम्यक रत्नत्रय,ये ही मोक्षमार्ग है।
अनुपपुर जिला के राजेन्द्रग्राम में श्रीमज्जिनेन्द्र पंचकल्याणक महोत्सव के तपकल्याणक दिवस पर निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर महाराज, मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज व मुनिश्री महासागर महाराज ने रीति नीतिपूर्वक भगवान श्री आदिनाथ की जिनप्रतिमा के दीक्षा की विधि संपन्न की।
महोत्सव समारोह में उपस्थित समुदाय को समझाते हुये मुनि श्री महासागर महाराज ने कहा कि सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन सम्यक चारित्र ही मोक्षमार्ग है।ये साधन है साध्य नहीं। हलुआ स्वादिष्ट और मधुर व्यंजन है।इसे शक्कर, आटा व घी के मिश्रण को तपाकर बनाया जाता है।तपकर ये तीनों पदार्थ एक होकर हलुआ हो जाते हैं। हलुआ एकवचन है अब इसमें शक्कर आटा व घी का भेद नहीं कर सकते। इसी भांति सम्यकदर्शन सम्यकज्ञान व सम्यकचारित्र एक होकर सम्यक रत्नत्रय है,एकवचन। ये ही मोक्षमार्ग है।
मुनिश्री महासागर महाराज ने भौतिक पदार्थों के परिवर्तनों का अध्ययन शोध वैज्ञानिक करते हैं ये सासांरिक विज्ञान है,बाह्य परिवर्तन है। आत्मशोध वीतराग विज्ञान है,ये अंतरंग परिवर्तन का शोध है।इसका बोध वीतराग विज्ञान का शोधार्थी करता है।आत्म पदार्थ के परिवर्तन की क्रिया है।संसार मार्ग के मोही भोग वासना में सुख तलाशते हैं वीतरागी सन्मार्ग के यात्री परम सुख परमानंद को पाते हैं।यात्री को तय करना उसे किस मार्ग पर चलना है संसार मार्ग पर या सन्मार्ग पर चलकर आत्मशोध आत्मबोध करना है।