भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की पुण्य तिथि

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प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण व्यक्तियों की मृत्यु हमेशा संदिग्ध और रहस्य्मयी होती हैं या बना दी जाती हैं .वैसे जन्म और मृत्यु का चक्र अनवरत चलता रहता हैं .पर जहाँ संदेह होता हैं उस पर पर्दा डाल दिया जाता हैं . लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने 9 जून १९६४  से ११  जनवरी १९६६  तक इस पद पर रहे और विदेश मंत्री, गृह मंत्रालय और रेलवे के रूप में भी कार्य किया। ११  जनवरी १९६६  को, ६१  साल की उम्र में दिल का दौरा के कारण उनका निधन हो गया। १९६५  के भारत-पाकिस्तान युद्ध को समाप्त करने के लिए उनके और पाकिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान के बीच शांति वार्ता के दौरान ताशकंद, यूएसएसआर (जो अब उज्बेकिस्तान में है) में उनकी मृत्यु हो गई। शास्त्री के समर्थकों और करीबी रिश्तेदारों में से कई ने समय पर इनकार कर दिया और तब से इनकार कर दिया, जब उनकी मृत्यु की परिस्थितियों पर विश्वास करना और बेईमानी से खेलना। उनकी मौत के कुछ घंटों बाद ही षड्यंत्र के सिद्धांत सामने आए।

अब तक लाल बहादुर शास्त्री की मौत को सबसे बड़ी अनसुलझी मौत के रहस्य में से एक माना जाता है। देश में कई नेताओं की मौत पर सवाल खड़े होते रहे हैं, लेकिन भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत के रहस्य से ५७  साल बाद भी पर्दा नहीं उठ पाया है। भूतपूर्व प्रधानमंत्री की मौत ११  जनवरी, १९६६  को ताशकंद में हुई थी। हिन्दुस्तान के लोगों में आज भी इस बात की चर्चा होती है कि आखिर उस रात ताशकंद में ऐसा क्या हुआ था कि लाल बहादुर शास्त्री की अचानक मौत हो गई थी।

शास्त्री की मौत के बाद से भारत में कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन उनकी मौत आज भी रहस्य है। भारत में राजनेता मांग करते हैं कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री की मौत के रहस्य से पर्दा उठाया जाए। साल १९६५  में भारत और पाकिस्तान के बीच जंग खत्म हुई थी जिसके बाद दोनों देशों के बीच ताशकंद में समझौत हुआ था। यह समझौता १०  जनवरी १९६६  को हुआ था जिसके १२ घंटे बाद ही ११  जनवरी को तड़के शास्त्री की मौत हो गई थी।

आधिकारिक तौर पर बताया गया कि लाल बहादुर शास्त्री की मौत हार्ट अटैक की वजह से हुई थी। बताया जाता है कि शास्त्री को दिल से संबंधित बीमार थी और साल १९५९  में एक बार हार्ट अटैक भी आया था। इसके बाद उनके परिवार के लोग उनको कम काम करने की सलाह देते थे, लेकिन प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद उनका काम और बढ़ गया।

शव का नहीं हुआ था पोस्टमार्टम

ताशकंद में मौत के बाद शास्त्री का पार्थिव शरीर भारत लाया गया था। इसके बाद कई प्रत्यक्षदर्शियों ने शास्त्री के चेहरे और शरीर पर अप्राकृतिक नीले और सफेद धब्बे देखे जाने की बात कही है। इसके अलावा उनके पेट और गर्दन पर कटे के भी निशान थे। सबसे हैरानी की बात यह है कि मौत से पर्दा उठाने के लिए बनी राजनारायण जांच समिति किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई। जांच समिति की विस्तृत रिपोर्ट भी सार्वजनिक नहीं की जा सकी। संसदीय लाइब्रेरी में भी उनकी मौत या जांच समित का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।

लाल बहादुर शास्त्री की संदिग्ध अवस्था में मौत होने के बावजूद भी उनके शव का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया। शास्त्री जी के परिजनों ने दावा किया था कि उनके शरीर पर जहर की वजह से नीले निशान थे। कई और ऐसी चीजें देखने को मिलीं जिसकी वजह से उनकी मौत पर सवाल खड़ा होता है। शास्त्री की शरीर पर कटे के निशान कहां से आए जबकि उनका पोस्टमार्टम नहीं किया गया था। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, साल २००९  में भारत सरकार ने स्वीकार किया था कि शास्त्री की मौत के बाद उनके डॉक्टर और रूस डाक्टरों द्वारा जांच की गई थी।

भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री की मौत तब और रहस्यमयी बन गई जब उनके दो खास गवाहों की असामान्य मौत हो गई। नौकर रामनाथ और निजी डॉक्टर डॉ आरएन चुग को साल १९७७ में संसदीय निकाय के सामने पेश होना था, क्योंकि दोनों शास्त्री के साथ ताशकंद गए थे। लेकिन दोनों की संसदीय निकाय के सामने पेश होने से पहले ही मौत हो गई।

कुछ लोगों ने दावा किया है कि शास्त्री की मौत वाली रात उनके निजी सहायक रामनाथ ने खाना नहीं बनाया था। उस रात कुक जान मोहम्मद ने खाना पकाया था। जान मोहम्मद सोवियत रूस में भारतीय राजदूत टीएन कौल का कुक था। खाना खाने के बाद शास्त्री सो गए थे और मौत के बाद उनका शरीर नीला पड़ गया था। इसके बाद लोगों ने आशंका जाहिर की थी कि शायद उनके खाने में जहर मिलाया गया था। शास्त्री की पत्नी ललिता शास्त्री ने भी सवाल खड़ा किया था कि अगर उनकी मौत हार्ट अटैक से हुई थी, तो उनका शरीर नीला क्यों पड़ गया था?

अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए  के एजेंट रॉबर्ट क्रॉले ने एक इंटरव्यू में दावा किया था कि शास्त्री की मौत के पीछे सीआईए का हाथ था। यह भी कहा था कि होमी जहांगीर भाभा की हवाई जहाज हादसे में हुई मौत में भी अमेरिकी खुफिया एजेंसी का ही हाथ था।

-विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् 

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