दुर्गति का कारण आवश्यकता नहीं आसक्ति है- भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्शसागर जी
“अपनी दृष्टि को निर्मल कर लीजिए, आपको सारी सृष्टि निर्मल ही दिखाई देगी।” अनादि से यह जीव सुख की खोज में है लेकिन खोजता रहा मात्र पर के ही दोष, इसीलिए कभी नहीं हो पाया स्वयं निर्दोष । दूसरों के दोष देख-देखकर व्यक्ति वे दोष स्वयं में ही संगृहीत करता जाता है। दोषों से मुक्त होने का उपाय मात्र यही है कि अपने ही दोषों को खोजकर उनका त्याग कर दिया जाए। ध्यान रहे, जब दोषों का त्याग होता है तो व्यक्ति स्वयमेव ही गुणों से भरपूर होने लगता है। ऐसा महामंगलकारी धर्मोपदेश राजधानी दिल्ली कृष्णानगर में उपस्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुए भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री विमर्शसागर जी मुनिराज ने दिया। सुखी जीवन जीने के लिए मात्र एक सूत्र को जीवन में उतार लें, वह सूत्र है – “जीवन के लिए आवश्यक पदार्थों का उपयोग अवश्य करें किन्तु आसक्ति किसी भी पदार्थ में न करें।”
जीवन जीने के लिए मूलभूत पदार्थों की महती आवश्यकता होती है। “आवश्यक पदार्थों का अनासक्ति पूर्वक उपयोग मात्र करना ” आपको कभी रोना नहीं पड़ेगा। आवश्यकता दुर्गति का कारण नहीं है अपितु आवश्यक अथवा अनावश्यक में आसक्ति का होना ही दुःख एवं दुर्गति में कारण बनता है। भगवती जिनदीक्षा महोत्सव के ऐतिहासिक महा-अनुष्ठान 06 दिसम्बर 2024 को कृष्णानगर जैन मंदिर में होगा भगवती जिनदीक्षा प्राप्त करने वाले सभी दीक्षित माताजी साधिकाओं की मुखशुद्धि एवं व्रतदान किया सम्पन्न की जाएगी !