भेद विज्ञान का सेतु है आंकिचन्य : आचार्य प्रमुख सागर

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ङिमापुर: दीमापुर के दिगंबर जैन मंदिर में विराजित आचार्य श्री प्रमुख सागर महाराज ने आज पर्युषण पर्व के नवैं दिन आंकिचन्य धर्म पर प्रवचन देते हुए कहां की परिग्रह का संबंध पदार्थ से नहीं अपितु हमारी संग्रह-वृत्ति से है। यदि किसी व्यक्ति के पास कुछ भी संग्रह करने के लिए नहीं है। परन्तु वह संग्रह करना चाहता है तो परिगही कहलाएगा जैनागम के अनुसार जीव की चार संज्ञाएँ होती हैं। जिनमें से एक परिग्रह संज्ञा है। इसी संज्ञा के कारण मानव में संग्रह की भावना जागती है। हम देखते हैं कि प्रत्येक बालक बचपन से ही इस संग्रह से ग्रसित होता है। उसे नये और सुंदर खिलौने का संग्रह और उस पर अपना अधिकार जमाने में बड़ा सुख होता है। इस दौड़ में मानव थकान, टूटन और घुटन भले ही महसूस करता हो पर वह हार नहीं मान सकता। असलियत तो यह है कि कुछ दौड़ में चोट खाते हैं, जख्मी होते हैं, घावों को सहते हैं परन्तु संग्रह वृत्ति का इतना प्रबल आकर्षण है कि अपनेः जख्मों पर मरहम-पट्टी करके दौड़ने में उत्सुक हो जाते हैं। इस दौड़ में जो भाग्य से मिले वह इलेक्शन है और जो न्यास से मिले वह सलेक्शन और जो औःजहाँ-तहाँ से मात्र बटोरता है वह कलेक्शन है। स्मरण रहे हम अर्थ और पदार्थ के अनुगामी हैं। ऊपरी तल पर चाहे कोई कृष्ण का अनुयायी हो, कोई बुद्ध या महावीर का परन्तु भीतरी तल पर सभी अर्थ और पदार्थ के अनुयायी
है।जिसका संयोग हुआ है उसका वियोग अनिवार्य है। मालूम हो कि मंगलवार को अनंत चतुर्दशी के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।।

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