“भाव सुधरे तो भव सुधरे” संसार में कर्मों से सदैव डरना चाहिए
✍️पारस जैन “पार्श्वमणि” पत्रकार कोटा 9414764980
जीवन में किसी से डरो या मत डरो कोई बात नहीं परंतु कर्मों से अवश्य डरना चाहिए। दुनिया में हर कोई माफ कर सकता है परंतु कर्म कभी माफ नहीं करता वह सिर्फ इंसाफ करता है यह सार्वभौमिक सत्य है इसको नकारा नहीं जा सकता।भगवान श्री राम को एक ही रात में राज भवन की सुख सुविधाओं को छोड़कर वन की ओर गमन करना पड़ा था ये सबसे बड़ा दृष्टांत है हम लोगों को समझने के लिए। भला का उल्टा लाभ दया का उल्टा याद होता है। जीवन में जितना हो सके भला करते जाए और आप दीन-हीन गरीब पर अपने हृदय की गागर से दया छलकाते बरसाते जाए । आप भला करेंगे तो कई गुना लाभ होगा । प्रकृति का यही नियम है जो दोगे वो ही मिलेगा यदि बबूल का बीज बोया है तो आम का फल नहीं मिलेगा। सृष्टि का यही नियम है कि जो बीज उसमें डाला जाता है वो उसका अनंत गुणा करके लौटाती है। जैसी करनी वैसी भरनी वाला सिद्धांत लागू है।जीवन में भावों का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है भाव सुधरे तो भव अपने आप स्वयं सुधर जाए। भाव और विचार ही जीवन की दिशा और दशा निर्धारित करते है। जैसा कहा भी गया है कि “जाकी रही भावना जैसी ता मूरत देखी तीन वैसी” भगवान की सच्चे भावो से भक्ति करना चाहिए। भावना ही भवो भवों के नाश का कारण बनती है अर्थात भव भव के बंधनों से छुटकारा दिलवाने ने कार्यकारी है। इस दुर्लभ चिंता मणि समान मानव पर्याय का एक एक पल बहुत मूल्यवान है। जिस तरह से हाथ में ली हुई रेत कब नीचे गिर जाती है हाथ खाली हो जाता है ठीक उसी प्रकार मानव जीवन बचपन जवानी वृद्ध होकर गुजर जाती है पता नहीं चलता।जीवन में महापुरुषों का जीवन चरित्र अवश्य पढ़ना चाहिए। इससे जीवन जीवंत हो जाता है जीवन में नव चेतना का संचार होता है।मुझे एक भजन की लाइन याद आ रही है “छोटा सा तू कितने बड़े अरमान है तेरे मिट्टी का तू सोने के सब सामान है तेरे मिट्टी की काया मिट्टी में जिस दिन समाएगी ना सोना काम आएगा ना चांदी आयेगी”। जीवन में भावों को सदैव निर्मल बनाए रखे। सकारात्मक गतिशील रहे। अंत में यही मंगलमय भावना भाता हूं। “भावना दिन रात मेरी सब सुखी संसार हो सत्य संयम शील का व्यवहार घर घर वार हो”।


