यमुनानगर 31 मार्च (डा. आर. के. जैन):
सार्वजनिक-निजी भागीदारी भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में एक परिवर्तनकारी मॉडल के रूप में उभरी है, जो अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, कार्यबल की कमी और स्वास्थ्य सेवा की पहुंच जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करती है। सार्वजनिक और निजी दोनों संस्थाओं की ताकत का लाभ उठाकर सार्वजनिक-निजी भागीदारी देश भर में स्वास्थ्य सेवा वितरण में सुधार के लिए स्थायी समाधान प्रदान करते हैं। डी. एम. कार्डियोलॉजिस्ट डा. आकाश जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि भारत अपनी विशाल आबादी को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली, हालांकि व्यापक है लेकिन कम वित्त पोषण, संसाधन की कमी और अक्षमताओं से ग्रस्त है। इस बीच निजी स्वास्थ्य सेवा, हालांकि उन्नत है, उच्च लागत के कारण कई लोगों की पहुंच से बाहर है। सार्वजनिक-निजी भागीदारी इन दो चरम सीमाओं के बीच एक सेतु का काम करती है, यह सुनिश्चित करती है कि गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा समाज के सभी वर्गों तक पहुंचे। उन्होंने बताया कि सार्वजनिक निजी भागीदारी ने वंचित क्षेत्रों में अस्पताल, डायग्नोस्टिक सेंटर और प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्वास्थ्य सेवा संस्थानों के निर्माण और संचालन के लिए सरकारी भूमि और निधि को निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता के साथ जोड़ा जाता है। आयुष्मान भारत जैसी सरकारी योजनाएं निजी अस्पतालों को किफायती उपचार प्रदान करने में मदद करती हैं। निजी अस्पतालों को सरकार द्वारा संचालित बीमा कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहन मिलता है, जिससे रोगियों पर वित्तीय बोझ कम होता है। सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से प्रौद्योगिकी-संचालित स्वास्थ्य सेवा समाधान पेश किए गए हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ चिकित्सा सुविधाएँ सीमित हैं। टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्म मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयां और ए. आई. संचालित निदान शहरी-ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा विभाजन को पाटने में मदद करते हैं। सार्वजनिक-निजी भागीदारी चिकित्सा शिक्षा, पेशेवरों के लिए निरंतर प्रशिक्षण में योगदान करते राष्ट्रीय कौशल विकास निगम जैसे कार्यक्रमों ने सार्वजनिक-निजी पहलों के माध्यम से कार्यबल दक्षता को बढ़ाया है। सार्वजनिक क्षेत्र और दवा कंपनियों के बीच सहयोगात्मक प्रयासों से दवा विकास और वैक्सीन उत्पादन में प्रगति हुई है। भारत के कोविड.19 वैक्सीन विकास की सफलता बायो मेडिकल अनुसंधान में सार्वजनिक-निजी भागीदारी की शक्ति का प्रमाण थी। महामारी प्राकृतिक आपदाओं और स्वास्थ्य संकटों के दौरान तेजी से स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में सार्वजनिक-निजी भागीदारी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। निजी अस्पतालों, डायग्नोस्टिक लैब और लॉजिस्टिक कंपनियों ने भारत के कोविड-19 प्रबंधन में, परीक्षण से लेकर वैक्सीन वितरण तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने बताया कि सार्वजनिक-निजी भागीदारी भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में एक गेम चेंजर के रूप में उभरी है। सरकारी आउटरीच को निजी क्षेत्र के नवाचार के साथ जोडक़र, इन साझेदारियों में अधिक सुलभ, किफायती और कुशल स्वास्थ्य सेवा पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की क्षमता है। आगे बढ़ते हुए, रणनीतिक नीति समर्थन, पारदर्शी विनियमन और टिकाऊ वित्तीय मॉडल स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में सार्वजनिक-निजी भागीदारी के प्रभाव को अधिकतम करने के लिए महत्वपूर्ण होंगे।
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जानकारी देते डा. आकाश जैन………….(डा. आर. के. जैन)
श्री महावीर चालीसा के 40 पाठ की श्रृंखला के 27 वें पाठ का हुआ आयोजन
लज्जाशील मनुष्य कभी नहीं करता अपयश पूर्ण कार्य. पवन जैन
यमुनानगर 31 मार्च (डा. आर. के. जैन):
श्री महावीर दिगम्बर जैन मंदिर के प्रांगण में श्री महावीर चालीसा की 40 पाठ की श्रृंखला के 27 वें पाठ का आयोजन द्वारका दास जैन संतोष बाला जैन परिवार के सौजन्य से किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता मंदिर प्रधान अजय जैन ने की तथा संचालन महामंत्री पुनीत गोल्डी जैन व उपाध्यक्ष मुकेश जैन ने किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ कलश स्थापित कर किया गया। पं. शील चंद जैन ने संबोधित करते हुए कहा कि अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर प्रगतिशील परंपरा के संस्थापक 24वें तीर्थंकर हुए है, उन्होंने अपनी व्रत संबंधी प्रतिशील क्रांति के द्वारा जैन धर्म को युगानुकूल रूप दिया। उन्होंने बताया कि तीर्थंकरों की यह परंपरा वैज्ञानिक दृष्टि से सत्य का अन्वेषण करने वाली एक प्रमुख परम्परा रही है। महावीर की साधना वीतरागता की साधना थी। इस प्रकार इस युग की तीर्थंकर परम्परा की अंतिम कड़ी भगवान महावीर हैं। भगवान ने जनजीवन को तो उन्नत किया ही, साथ ही उन्होंने साधना का ऐसा मार्ग प्रस्तुत किया जिस मार्ग पर चल कर सभी व्यक्ति सुख व शांति प्राप्त कर सकते है। चक्रेश जैन ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने साधु के 28 मूल गुणों को स्वीकार किया और साधना द्वारा अपने गुप्त आत्म वैभव को प्रकाशित करने का प्रयास किया। तीर्थंकर महावीर अपने समय के महान तपस्वी ही नहीं थे, बल्कि एक उच्च कोटि के विचारक भी थे। उन्होंने धर्म और दार्शनिक विचारों को साधू जीवन के मुक्ति के साथ नीबद्ध कर क्रियात्मक रूप दिया। पवन जैन ने कहा कि धर्म सुख का कारण है, जो धारण किया जाये या पालन किया जाये व धर्म है। जिसका कोई स्वभाव न हो पर आचार रूप धर्म केवल चेतन आत्मा में पाया जाता है। वास्तव में धर्म आत्मा को परमात्मा बनाने का मार्ग बताता है। मनुष्य के विचार भी आचार से निर्मित होते है और विचारों से निष्ठा व श्रद्धा उत्पन्न होती है। उन्होंने आगे बताया कि सम्यग्दर्शन के अभाव में न तो ज्ञान ही सम्यक होता है और न चरित्र ही। लज्जा मानव जीवन का आभूषण है लज्जाशील जीवन स्वाभीमान की रक्षा हेतु अपयश के भय से कभी कदाचार में प्रवृत नहीं होती है, यही भगवान महावीर का संदेश रहा है। भगवान महावीर का मुख्य संदेश अहिंसा रहा है, क्योंकि अहिंसा द्वारा ही हृदय परिवर्तन सम्भव है, यह मारने का नहीं सुधारने का सिद्धांत है। अपराध एक मानसिक बीमारी है, इसका उपचार प्रेम, स्नेह, सद्भाव के द्वारा किया जा सकता है। इस अवसर पर समाज के गणमान्य व्यक्ति, महिलाएं तथा बच्चे उपस्थित रहे
फोटो नं. 2 व 3 एच.
पाठ करते व आरती करते श्रद्धालु………….(डा. आर. के. जैन)