भारतीय ज्ञान परंपरा में जैन दर्शन का योगदान

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भारतीय ज्ञान परंपरा अनेक दार्शनिक धाराओं से समृद्ध हुई है, जिनमें जैन दर्शन का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। जैन दर्शन न केवल आध्यात्मिकता का संदेश देता है, बल्कि यह तर्क, नैतिकता, अहिंसा और सामाजिक समरसता का भी आधार है। इसकी शिक्षाएँ हजारों वर्षों से भारतीय समाज और विश्व चिंतन को दिशा देती आ रही हैं।

अहिंसा: भारतीय संस्कृति को दिया अमूल्य उपहार
जैन धर्म का मूल सिद्धांत अहिंसा है, जिसे महावीर स्वामी ने अपने जीवन का आधार बनाया। उन्होंने कहा, “परस्परोपग्रहो जीवानाम्” अर्थात सभी प्राणी एक-दूसरे पर निर्भर हैं। यह विचार भारतीय समाज में करुणा, सहिष्णुता और शांति की भावना को प्रोत्साहित करता है। महात्मा गांधी के सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों पर भी जैन दर्शन का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है।

अनेकांतवाद: सहिष्णुता और तर्कशक्ति का विकास
जैन दर्शन का एक महत्वपूर्ण योगदान अनेकांतवाद है, जो यह सिखाता है कि सत्य को केवल एक ही दृष्टिकोण से नहीं देखा जा सकता। प्रत्येक विचार और मत की अपनी प्रासंगिकता होती है। यह विचारधारा लोकतंत्र, संवाद और विविधता के सम्मान को बढ़ावा देती है।

अपरिग्रह: पर्यावरण संरक्षण और सादगी का संदेश
आज के उपभोक्तावादी दौर में जब भोगवाद और संसाधनों की अधिकता से पर्यावरण संकट बढ़ रहा है, जैन दर्शन का अपरिग्रह सिद्धांत (संपत्ति व इच्छाओं का न्यूनतम संग्रह) बेहद प्रासंगिक हो जाता है। यह विचार न केवल व्यक्तिगत संतोष बढ़ाता है बल्कि प्राकृतिक संसाधनों के संतुलन को भी बनाए रखने में मदद करता है।

भारतीय शिक्षा और साहित्य में योगदान
जैन मुनियों और आचार्यों ने प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश भाषाओं में विपुल साहित्य की रचना की। तत्त्वार्थसूत्र (उमास्वामी), न्यायावतार (सिद्धसेन दिवाकर) और समयसार (आचार्य कुंदकुंद) जैसे ग्रंथ भारतीय तत्त्वज्ञान और तर्कशास्त्र में मील का पत्थर हैं। जैन ग्रंथों ने न केवल दर्शनशास्त्र बल्कि गणित, ज्योतिष और व्याकरण के अध्ययन को भी समृद्ध किया है।

निष्कर्ष
जैन दर्शन का प्रभाव केवल धार्मिक सीमाओं तक नहीं बल्कि सामाजिक, दार्शनिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों तक व्यापक रूप से देखा जाता है। इसकी शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और एक आदर्श समाज के निर्माण में सहायक हो सकती हैं। यदि हम जैन दर्शन के मूल सिद्धांतों – अहिंसा, अनेकांतवाद और अपरिग्रह – को अपने जीवन में अपनाएँ, तो न केवल हमारा समाज अधिक समरस और शांतिपूर्ण बनेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी मानवीय मूल्यों की रक्षा की जा सकेगी।

लेखक मयंक कुमार जैन
असिस्टेंट प्रोफेसर, मंगलायतन विश्वविद्यालय अलीगढ़ उत्तर प्रदेश

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