ध्वजा देश की शान होती हैं .झंडा का झुकना अपमान माना जाता हैं .मात्र ध्वजा के लिए देश ने अंग्रेंजो से संघर्ष किया .ध्वजा के लिए युध्य होते हैं .इसी प्रकार हर समाज ,संस्था का एक ध्वजा होता हैं जो उसकी शान माना जाता हैं .इसकी शान के लिए हर सैनिक ,पदाधिकारी तत्पर रहता हैं . जैन दर्शन में पांच परमेष्ठी हैं उनके अनुरूप ध्वजा का निर्माण किया गया हैं जैन धर्म के मान और गौरव का प्रतीक है-पंच वर्णी ध्वजा। ध्वज के पांच रंग(लाल, सफेद, पीला, नीला, काला) जैन धर्म के मूल परम् श्रद्धेय पञ्च परमेष्ठी की उपासना के प्रतीक हैं। यह पांच ही मूल रंग हैं क्योंकि सृष्टि के जितने भी परमाणु हैं वह इन्हीं पाँच रंगों में से किसी एक रंग के हैं
लाल – सिद्ध भगवान, मुक्त आत्माएँ। जिनका मोक्ष हो चूका है अथवा जो आत्माये जन्म मरण से मुक्त हो चुकी है उन्हें सिद्ध कहा जाता है हालाँकि मोक्ष का मार्ग अरिहंत बताते हैं और उसी भव में मोक्ष जाने वाले भी होते हैं परन्तु अरिहंत आयुष्य कर्म सहित होते हैं इसलिए इनका प्रतीक रंग ध्वज में सिद्ध के प्रतीक रंग से नीचे होता है !
सफ़ेद – अरिहन्त, शुद्ध आत्माएँ या जिन्होंने केवल ज्ञान प्राप्त कर लिया हो। मोक्ष मार्ग के उपदेशक होते हैं ! अरिहंत द्वारा ही चतुर्विध संघ की (साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका) स्थापना होती है और सर्व विरति और देश विरति धर्म के प्रवर्तक होते हैं इसलिए इनका प्रतीक रंग सफ़ेद सिद्ध के प्रतिक रंग के नीचे होता है !
पीला – आचार्य का प्रतीक रंग है ! जैन काल मान के हिसाब से जब केवलज्ञान होना (भरतक्षेत्र और ऐरावतक्षेत्र के हिसाब से) बंद हो जाता है तब संघ का दायित्व आचार्य का होता है ! जैन दर्शन में इस समय आचार्य ही वर्त्तमानिक सर्वोपरि पद है जिसकी आज्ञा में सारा संघ रहता है !
हरा – उपाध्ययों के लिए, जो शास्त्रों का सम्पूर्ण ज्ञान रखते हैं।
काला – साधुओं के लिए, यह अपरिग्रह का भी प्रतीक है। ही सही है ( ये दोनों अलग अलग मतांतर है)
ध्वज के मध्य में बना स्वस्तिक चार गतियों का प्रतीक है:मनुष्य,देव,तिर्यंच,नारकी
रत्न स्वस्तिक के ऊपर बने तीन बिंदु रतंत्रय के प्रतीक है:सम्यक् दर्शन,,सम्यक् ज्ञान,सम्यक् चरित्र इसका अर्थ है रत्न त्रय धारण कर जीव चार गतियों में जनम मरण से मुक्ति पा सकता है।
सिद्धशिला जहाँ सिद्ध परमेष्ठी (मुक्त आत्माएँ) विराजती है सिद्धशिला इन बिंदुओं के ऊपर सिद्धशिला, जो लोक के अग्र भाग में है, उसकी आकृति बनी है। और लोक के विस्तारवाली अर्थात 45 लाख योजन विस्तार वाली अर्द्धचंद्राकार है जो मध्य में मोटी और किनारो से पतली है !
हिन्दू धर्म में ध्वजा का महत्व एवं विशेषता
हिंदू धर्म में गेरूआ, भगवा और केसरिया रंग का ध्वज प्रमुख होता है, लेकिन अवसर विशेष पर पीले, काले, सफेद, नीले, हरे और लाल रंग के ध्वज का उपयोग भी किया जाता है। ध्वजों के रंग भिन्न-भिन्न होने के बावजूद सभी का एक प्रमुख ध्वज केसरिया रंग ही होता है।
हिन्दू ध्वज का स्वरूप :
दुनिया के सभी झंडे चौकोर होते हैं लेकिन हिन्दू ध्वज हमेशा त्रिभुजाकार ही होता है। इसमें एक त्रिभुजाकृति या दो त्रिभुजाकृति होती है। भगवा ध्वज दो त्रिकोणों से मिलकर बना है। जिसमें से ऊपर वाला त्रिकोण नीचे वाले त्रिकोण से छोटा होता है। नेपाल का राष्ट्रीय ध्वज दो त्रिभुजाकार का है। इसमें एक पर चंद्र और दूसरे पर सूर्य बना हुआ है।
ध्वजों के ऊपर जो चिन्ह अंकित होते हैं उनमें सर्वमान्य और प्रमुख ॐ और त्रिशूल का चिन्ह है । इसके अलावा विशेष अवसर या समुदाय विशेष के अलग अलग चिन्ह होते हैं । लेकिन ॐ अंकित केसरिया ध्वज संपूर्ण हिन्दू जाति समूह का एकमात्र ध्वज होता है। महाभारत में प्रत्येक महारथी और रथी के पास उसका निजी ध्वज और शंख सेना नायक की पहचान के प्रतीक थे।
ध्वजा के प्रकार :-
रणभूमि में अवसर के अनुकूल आठ प्रकार के झंड़ों का प्रयोग होता था। ये झंडे थे- जय, विजय, भीम, चपल, वैजयन्तिक, दीर्घ, विशाल और लोल। ये सभी झंडे संकेत के सहारे सूचना देने वाले होते थे।
१ : जय – जय झंडा सबसे हल्का तथा रक्त वर्ण का होता था। यह विजय का सूचक माना जाता है। इसका दंड पांच हाथ लम्बा होता है।
२ : विजय – विजय ध्वज की लम्बाई छह हाथ होती है। श्वेत वर्ण का यह ध्वज पूर्ण विजय के अवसर पर फहराया जाता है।
३ : भीम – लोमहर्षण युद्ध के अवसर पर इसे फहराया जाता था। भीम ध्वज सात हाथ लम्बा होता है।
४ : चपल – चपल ध्वज पीत वर्ण का तथा आठ हाथ लम्बा होता था। विजय और हार के बीच जब द्वन्द्व चलता था, उस समय इसी चपल ध्वज के माध्यम से सेनापति को युद्ध-गति की सूचना दी जाती थी।
५ : वैजयन्तिक – वैजयन्तिक ध्वज 9 हाथ लंबा तथा विविध रंगों का होता था।
६ : दीर्घ – दीर्घ ध्वज की लम्बाई दस हाथ होती है। यह नीले रंग का होता है। युद्ध का परिणाम जब शीघ्र ज्ञात नहीं हो सकता था तो उस समय यही झंडा प्रयुक्त होता है।
७ : विशाल – विशाल ध्वज ग्यारह हाथ लम्बा और धारीवाल होता है।यह ध्वज क्रांतिकारी युद्ध का सूचक होता था।
८ : लोल – लोल झंडा 12 हाथ लंबा और कृष्ण वर्ण का होता था।यह झंडा भयंकर मार-काट का सूचक था।
व्यक्तित्व और रंग
रंगों से भरी यह दुनिया बेहद खूबसूरत है। रंगों से प्यार करने वाला व्यक्ति इसकी खूबसूरती को ना सिर्फ समझ सकता है बल्कि भली प्रकार महसूस भी कर सकता है। रंगों का हमारे व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव भी पड़ता है। तरह-तरह के रंग हमारे भिन्न-भिन्न मूड को दर्शाते हैं।
पसंदगी
यूं तो हर रंग अपने आप में खास होता है, सभी का अपना अलग महत्व होता है, लेकिन फिर भी हजारों रंगों में से कुछ रंग हमारे फेवरेट हो जाते हैं और कुछ हमें बिल्कुल भी पसंद नहीं आते। कुछ रंग हमारी पहचान बन जाते हैं तो कुछ को देखना तक हम पसंद नहीं करते।
सनातन धर्म और इस्लाम
रंग हमारी पहचान बनते हैं यह बात सही है लेकिन रंग यह भी बताते हैं कि हम किस धर्म से जुड़ाव रखते हैं। मसलन सनातन परंपरा को स्वीकार करने वाले लोग आपको अकसर भगवा वस्त्र धारण किए मिलेंगे वहीं इस्लाम धर्म के अनुयायी हरे रंग को पवित्र मानते हैं।
पवित्रता का अर्थ
लेकिन क्या आप यह जानना नहीं चाहेंगे कि आखिर क्यों भगवा या केसरिया वस्त्र हिंदुत्व की पहचान है और क्यों हरा रंग इस्लाम में पवित्र माना गया है?
अशुद्धियों से निजात
ऐसा कहा जाता है कि अग्नि बुराई का विनाश करती है और अज्ञानता की बेड़ियों से भी व्यक्ति को मुक्त करवाती है। भगवा वस्त्र व्यक्ति के भीतर छिपी अशुद्धियों को दूर कर उसके शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी करता है।
अग्नि का रंग
अग्नि का संबंध पवित्र यज्ञों से भी है, इसलिए भी केसरिया, पीला या नारंगी रंग हिंदू परंपरा में बेहद शुभ माना गया है। सत्कार और उपकार, अर्थात मेहमानों का आदर करना और असहाय लोगों की सहायता करना भी वैदिक परंपरा का हिस्सा है। केसरिया रंग इन दोनों क्रियाओं का भी प्रतिनिधित्व करता है।
केसरिया रंग
सनातन धर्म में केसरिया रंग उन साधु-संन्यासियों द्वारा धारण किया जाता है जो किसी भी प्रकार की मोह-माया के बंधन से मुक्त होकर संसार को त्याग चुके हैं। वे लोग जो अपने संबंधों और इच्छाओं को छोड़कर ईश्वर की शरण में ही अपनी दुनिया बसा चुके हैं, वे भगवा वस्त्र पहना करते हैं। इससे आशय यह है कि भगवे वस्त्र को संयम और आत्मनियंत्रण का भी प्रतीक माना गया है।
रोशनी का प्रतीक
केसरिया या पीला रंग सूर्य देव, मंगल और बृहस्पति जैसे ग्रहों का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह रोशनी को भी दर्शाता है।
मोक्ष की इच्छा
पौराणिक समय में जीवन की सच्चाई से अवगत होकर मोक्ष प्राप्त करने के इच्छुक साधु अपने साथ अग्नि लेकर चला करते थे। यह अग्नि उनकी पहचान और उनकी पवित्रता की निशानी भी बन गई थी। लेकिन हर समय साथ में अग्नि रखना संभव नहीं था इसलिए वे साधु फिर अपने साथ केसरी रंग का झंडा लेकर चलने लगे। फिर धीरे-धीरे झंडे को रखने के स्थान पर उन्होंने केसरी या भगवा जिसे आम भाषा में संतरी रंग कहा जाता है, के वस्त्र पहनने शुरू कर दिए।
बौद्ध धर्म
सनातन धर्म के अलावा अन्य भी बहुत से धर्मों में केसरी रंग को पवित्र माना गया है। जैसे कि बौद्ध धर्म में भगवान बुद्ध के वस्त्रों को ही केसरिया रंग का दिखाया गया है। बौद्ध धर्म में यह रंग आत्म त्याग का प्रतीक माना गया है। आत्म त्याग अर्थात स्वयं को दुनियावी चीजों से निकालकर माया-मोह के बंधन से मुक्त कर केवल भगवान से जोड़ना .
निशान साहिब
इसके अलावा सिख धर्म में भी केसरी रंग को काफी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। सिख धर्म के पवित्र निशान ‘निशान साहिब’ को भी केसरी रंग में ही लपेटा जाता है। इसके अलावा सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु गोबिंद सिंह द्वारा बनाए गए पंज प्यारे भी केसरी लिबास में ही रहते थे।
वैवाहिक जीवन की खुशहाली
इसके अलावा विवाह के समय दूल्हा भी केसरी रंग की पगड़ी ही धारण करता है जो उसके आने वाले जीवन की खुशहाली से जुड़ी है। सिख धर्म के पुरुष अनुयायी किसी भी धार्मिक कार्य के दौरान केसरी या संतरी रंग की पगड़ी ही पहनते हैं।
हरा रंग
केसरी, भगवा या संतरी रंग से ठीक उलट हरा रंग इस्लाम धर्म के लोगों द्वारा बेहद पवित्र समझा गया है। इस्लाम में हरे रंग का अपना एक अलग और बड़ा महत्व है।
पैगंबर के वस्त्र
इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगंबर मोहम्मद हमेशा हरा रंग ही धारण करते थे। उनका जामा और साफा, दोनों ही हरे रंग के हुआ करते थे। इसके अलावा भी पैगंबर की रचनाओं में भी हरे रंग का जिक्र कई बार आया, जिसमें उन्होंने इस रंग को पवित्र बताया था।
जन्नत का प्रतीक
इतना ही नहीं इस्लाम से जुड़ी रचनाओं में यह भी बताया गया है कि जन्नत में रहने वाले लोग हरा वस्त्र ही धारण करते हैं। इसलिए इस्लाम धर्म में हरा रंग जन्नत का प्रतीक भी माना गया है।
सूखा मरुस्थल
मध्य पूर्व में जहां सिर्फ और सिर्फ सूखा मरुस्थल ही मौजूद है, वहां रहने वाले इस्लाम धर्म के लोग हरे रंग को इन्द्रधनुष की खूबसूरती के साथ जोड़ते हैं। ये खुशहाली और हरियाली का भी प्रतीक है।
रंगों की खूबसूरती
खैर धर्म और रंग चाहे कोई भी हो, प्रकृति की खूबसूरती इन्हीं से जुड़ी है और इन्हीं पर ही आधारित है। आखिर, रंगों से मिलकर ही तो ये दुनिया बनी है।
विजय का प्रतीक है ध्वज
ध्वजा को सकारात्मकता और विजय का प्रतीक माना गया है। इसीलिए प्राचीनकाल से युद्ध के बाद विजय पताका फहराने की परंपरा रही है।
वास्तु के अनुसार ध्वजा को शुभता का प्रतीक माना गया है। घर की छत पर ध्वजा लगाने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। घर बुरी नजर से बचा रहता है।
विद्या वाचस्पति डॉक्टर प्रेमचंद जैन ,संरक्षक शाकाहार परिषद्