भरोसा करना है तो गुरु और प्रभु पर कीजिए..

0
24
वरना लोगों पर करके तो जीने की उम्मीद ही कम हो जाती है..!      अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी.           औरंगाबाद  /कूलचारम पियुष कासलीवाल नरेंद्र  अजमेरा. भारत गौरव साधना महोदधि    सिंहनिष्कड़ित व्रत कर्ता अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज एवं सौम्यमूर्ति उपाध्याय 108 श्री पीयूष सागर जी महाराज ससंघ
कुलचाराम   मे    गुरु पौर्निमा प्रवचन  मे कहाॅ की भरोसा करना है तो गुरु और प्रभु पर कीजिए..
वरना लोगों पर करके तो जीने की उम्मीद ही कम हो जाती है..!
गुरु एक उपस्थिति है, सान्निध्य है, सामीप्य है, अवसर है। वह किसको कब उपलब्ध हो जाए कुछ कह नहीं सकते। लेकिन आज के वातावरण में हम सब मौल, माहौल और बाजार से प्रभावित लोग हैं। हर चीज वारंटी और गारंटी से खरीदते हैं। गुरु भी ऐसे ही बनाते हैं। सोमवार को गुरु बनाया, मंगलवार को खोट निकाली, बुधवार को छोड़ दिया और गुरुवार को फिर नये गुरु की तलाश शुरु हो जाती है। ज़िन्दगी भर यही चलता रहता है और गुरु नहीं मिल पाते…हमारे अपने ही कारण। जीवन में गुरु का उतना ही महत्व है जितना शरीर में स्वांस का, घर-परिवार, रिश्तों में विश्वास का।
एक संत बीमारियों से जूझ रहे थे, कहीं भी वो औषधि नहीं मिल रही थी जिससे गुरु ठीक हो जाए। संत किसी गाँव से गुजर रहे थे, शिष्यों ने गाँव वालों से पूछा – यह जड़ी बूटी कहां मिलेगी-? गाँव वालों ने कहा – अरे जड़ी बूटी तो हमारे गाँव के कुएं में लगी है। शिष्य, गुरु और गाँव वाले कुंए के पास गये। गाँव वालों ने कहा – वो देखो जो कुएं के अन्दर किनारे पर लगी है, ये वही औषधि है। शिष्य ने आव देखा न ताव, कुएं में कूद गया। शिष्य जब औषधि लेकर कुएं से बाहर आया, गुरु ने पूछा – तुमको मौत का भय नहीं लगा..? शिष्य ने बहुत गहरी बात कही – गुरुदेव जिसकी डोर गुरु के हाथ में हो फिर उसे मौत का क्या डर। बात गहरी और समझने जैसी है। गुरु हमारे बुझे हुये दीप को जलाने की प्रेरणा देते हैं, गुरु अन्धकार से प्रकाश की ओर जाने का संकेत देते हैं, गुरु पाप के तिमिर को हटाकर, पुण्य के प्रकाश में जाने की दिशा बोध देते हैं। गुरु समझा सकते हैं, बता सकते हैं, मार्ग दिखा सकते हैं लेकिन समझना, जानना और चलना तो स्वयं को पड़ेगा। हम समझते हैं कि गुरू हमारे साथ चलेंगे, सब काम निपटा देंगे, बेटा-बेटी की शादी भी करवा देंगे, व्यापार भी सेट करा देंगे और अपने भक्त से लोन भी दिला देंगे। तो ऐसा भी नहीं है बाबू! सच तो यह है कि – हम गुरु पर आश्रित हो जाते हैं। उनके भरोसे जीना शुरु कर देते हैं। गुरू पर आश्रित नहीं बल्कि गुरू से संचालित होना चाहिए। हम भूल जाते हैं तो गुरू हमें याद दिलाते हैं – तुम बीज हो – वृक्ष बन सकते हो, बूंद हो – सागर बन सकते हो, श्रेष्ठ हो – सर्वश्रेष्ठ बन सकते हो। अपनी हर भूल को, गलती को, पाप और अपराध के बोध के लिए गुरु से जुड़े रहिये। भटकना, भूल करना, गलती, पाप और अपराध करना हमारा स्वभाव है। सही मार्ग पर लाना, सही मार्ग पर दर्शन देना, अपराध बोध कराना गुरु का फर्ज है। अपनी गलती को सुधारने के लिए गुरु का चयन करो,, न कि गुरु को सताने के लिये, न उन पर बोझ बनने के लिये। क्योंकि-_
जीने के लिये खुद की समझदारी ही अहमियत रखती है..
अन्यथा अर्जुन और दुर्योधन के प्रभु और गुरु एक ही थे…!!!नरेंद्र  अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here