कूनो अभयारण के पास माधव राष्ट्रीय उद्यान शिवपुरी में हैं उसके मुख्य द्वार के दोनों ओर काले परदे लगे हुए हैं और उन पर लिखा गया हैं कि इस परदे के पीछे बहुत खतरनाक जानवर हैं ,जैसे ही आप पर्दा उठाएंगे तो आपको आइना दिखाई देगा जिसमे आपका अक्स दिखाई देगा .यानी मानव /मनुष्य से बड़ा और खतरनाक जानवर अन्य कोई नहीं हैं .सब जानवर अपना अपना धर्म पालते हैं पर मनुष्य सब जानवरों के गुणों का भण्डार /संग्रह हैं .
इसी प्रकार आयुर्वेद शास्त्र में लिखा गया हैं कि जो जीव जिस देश /जलवायु /वातावरण का होता हैं उसके निवासियों को उसी देश /जलवायु /वातावरण की औषधि लाभकारी होती हैं .जैसे हमारे देश में ही जो औषधि कश्मीर के निवासियों को लाभकारी होती हैं वो दक्षिणी प्रांतों में लाभकारी नहीं होती .
जलौका जिसे अंग्रेजी में लीच कहते हैं जो जिस तालाब की होती हैं उसी तालाब के जल में जीवित रहती हैं यदि उसका जल बदल जाता हैं तो वह मर जाती हैं .
इसी प्रकार गंगा -कावेरी नदी का जोड़ना .,केन बेतवा का जोड़ना ,नर्मदा -क्षिप्रा का जोड़ना सिचाई आदि के लिए हितकारी हो सकता हैं पर प्रत्येक नदी का जल अपनी विशेषता रखता हैं .पानी मात्र हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का मात्रा मिश्रण नहीं हैं ,सबका पानी अपने अपने गुणों से भरपूर होता हैं .
बहुत पहले स्पिरिट मिलती थी उसमे नीला थोथा मिलाकर उसे डीनेचर्ड बनाया जाकर बेचा जाता था और कोई उसको पी नहीं सकता था .
इसी प्रकार यहाँ के वातावरण /जलवायु में यहाँ के ही मनुष्य /जानवर /जल /साग सब्जियां आयुर्वेद दवाएं लाभकारी होती हैं और होंगी .इससे यह स्पष्ट समझ में आ रहा हैं की यहाँ का वातावरण उन चीतों की मनोकुल नहीं होगा और सरकारें केंद्र और राज्य सरकारें अपने शौक के लिए निरीह चीतलों को शौक में रख रही हैं .जो चीतल शाकाहारी होते हैं और उनकी अपनी जिंदगी हैं ,अपना विचरण हैं उनको बंदीगृह में रखकर मांसाहारी जानवरों का भोजन बना रहे हैं .यह जानते हुए की चीता मांसाहारी जानवर हैं और वे अपने मनोकुल आहार भोजन करते हैं उनको जबरन निरीह चीतलों का कोपभाजन बना रहे हैं .वे पंचइन्द्रिय जीव होते हैं और वे शांत रहते हैं उनको बलात चीता का भोजन बना रहे हैं .
यहाँ यह चेतावनी हैं कि इन चीतों का हश्र बहुत दयनीय होकर मृत्यु को प्राप्त होंगे और उनके कारण चीतलों की हत्यायों का पाप देश के प्रथम नौकर और प्रदेश के प्रथम नौकर को लगेगा और उनके पाप और निरीह जानवरों की चीख से आप बच नहीं सकेंगे .वैसे शासक नरक गामी होते हैं . भारत एक अहिंसा प्रेमी देश हैं यहाँ जीव दया प्रमुखता से की जाती हैं पर अपने शौक और ऊपरी वाह वाह पाने के लिए जीव हिंसा करना कितना आवश्यक हैं .एक प्रकार से चीतों को चीतल खिलाना वैसा ही मन जायेगा जैसे उद्घाटन कर्ताओं द्वारा स्वयं मांसाहार करना .
इन जीवों की हत्या का पाप निश्चित ही इस जीवन में भोगना होगा और अगले जीवन में आप भी किसी के भोजन अवश्य बनेगे .इस सम्बन्ध में लेखक ने १६ सितम्बर २०२२ को अवगत कराया था की नामीबिया के चीते भारत के अनुकूल नहीं होंगे जो सच साबित हो रहे हैं .जो न माने सयानों की सीख ले कटोरा मांगे भीख
सड़े गले उस देह को .देख सतत धीमान
घातक वह था पूर्व में ,सोचें मन अनुमान .
देखो ,वह आदमी जिसका सड़ा हुआ शरीर पीवदार घावों से भरा हुआ हैं ,वह पिछले भावों में रक्तपात बहाने वाला रहा होगा ,ऐसा बुद्धिमान कहते हैं .
जीवन संकट ग्रस्त हो ,पाकर विपदा -काल .
तो भी पर के प्राण को ,मत ले विज्ञमराल
तुम्हारे प्राण संकट में भी पड़ जावे तब भी किसी की प्यारी जान मत लो .
जिनको हिंसा करना पसंद हैं उनके पापों की सीमा नहीं हैं .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३
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