भक्ति में बच्चो जैसा भोलापन ओर, मीरा जैसा पागलपन होना चाहिये अन्तर्मना आचार्य

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औरंगाबाद /ऊदगाव  नरेंद्र /पियुष जैन। अहिंसा संस्कार पद यात्रा के प्रनेता साधना महोदधि, उत्कृष्ट सिंह निष्क्रीडिट व्रत करता तपाचार्य अंर्तमना आचार्य प्रसन्न सागर महाराज उगाल मे धर्म सभा को संबोधित करते हुये कह रहे थे. कि आदमी धर्म से विमुख नहीं हो रहा है बल्कि धर्म आदमी से विमुख हो रहा है धर्म ने आदमी को हर तरह से काटने की कोशिश की है यही वजह है कि आदमी धर्म से पीछे हट गया कुछ लोग कहते है कि आदमी धर्म से उदासीन होता जा रहा है लेकिन सच्चाई तो यह है कि धर्म, से उदासीन होता जा रहा है धर्म वही है जो मनुष्य को अपनी तरफ आकर्षित आदमी कर ले और जीवन को उत्सव महोत्सव बनाने की प्रेरणा दे. तपाचार्य प्रसन्न सागर महाराज ने कहा
व्यक्ति अपने लिये रोता है वह स्वार्थी है अपने दूख को लेकर तो हर कोई रो लेता है लेकिन जिसकी आंखो में दुसरो की पीड़ा को देखकर आंसु भर जाट है वह धर्मात्मा सम्यगदृष्टि होता है यदि हम दूसरो के लिये रोना सीख लेते है तो इससे वहुतो के चहरे पर खुखिया उमर आयेगी
अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर ने कहा बुर्जुगों का सम्मान करना यदि छोटो का धर्म है  छोटो की भावना का ध्यान रखना बडो का कर्तव्य है बहु का सास के प्रति  फर्ज है कि वह उसे माँ समझे यो सास का भी ये कर्तव्य है कि वह उसे बेटी मान कर चले पिता बेटे को हमेशा बेटा मानकर न चले कभी – २ वह उसे अपना दोस्त की माने इससे पिता पुत्र के संबंध में प्रगारता आयेगी
अन्तर्मना आचार्य श्री ने कहा भक्ति में तर्क वुद्धि नही अप्रिड थोड़ा सा भोलापन और पागलपन भी चाहिये बुद्धिध का चातुर्य ओर तर्क की तिकडम वाजी परमात्मा को रिझाने में काम नही आटी उसके लिये हो बच्चो जैसा भोलापन ओर मीरा जैसा पागलपन चाहिये।  संवाददाता नरेंद्र  अजमेरा पियुष कासलीवाल

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