भाग्यवान मनुष्य का धन सेवक रहता है

0
48

नैनवा 4 सितंबर बुधवार 2024
वर्षा योग कर रहे शांति वीर धर्म स्थल पर मुनि श्रुतेशसागर जी महाराज ने धर्म सभा को बताया कि संसार में मुक्त होने के लिए अपने मन वचन काय को संभालने पर ही मुक्ति का मार्ग मिल सकता है
मनुष्य धर्म कार्य को करने पर ही पुण्य का संचय होता है जहां पर पुण्य होता है वह धन श्वेत ही उसका सेवक बनकर सेवा करता है मनुष्य संसार में रहकर भोगों में उलझने को सुख मान चुका है परिवार पुत्र पुत्री पत्नी आदि मकान आदि को सुख मान रहा है यह मनुष्य का सुख का कारण नहीं भोगों के प्रति आसक्त में सुख कभी प्राप्त नहीं होगा संयम का मार्ग सुख कारण बताया
कर्म के अनुसार मनुष्य को सुख-दुख भोगना पड़ेगा ज्ञान चेतना ज्ञान का उपयोग किया जाकर सुख-दुख मिलता है कर्म चेतना अच्छे बुरे कर्मों का हिसाब कर्म चेतन है कर्म फल चेतना कर्म के अनुसार जो प्राणी ने अच्छा बुरा परिणाम का फल उसे भोगना होगा
दिगंबर साधुओं की मुलगुण ही उनकी पहचान है
छुल्लक सुप्रकाश सागर जी महाराज ने बताया
दिगंबर साधुओं के मूल गुण पालन से ही उनकी पहचान है
28 मूल गुण
का जो पालन करते हैं वही दिगंबर मुनि की पहचान है
भाषा निर्मलता मीत प्रिय वचन बोलना साधु के मुख्य लक्षण एवं पहचान है आहार में 46 प्रकार के दोष को देखकर ही साधु आहार करते हैं 32 अंतराल कर्म 24 घंटे में दिन में एक बार ग्रस्तश्रावक के घर विधिपूर्वक आहार खड़े-खड़े करते हैं
साधु व्यवस्थित स्थान पर ही मल मूत्र थूक का विसर्जन स्थान देकर करते हैं मुनि ने यह भी बताया कि आदिनाथ भगवान का सात माह आठ दिन में विधिपूर्वक आहार हुआ था ऐसी तप साधना का होना ही दिगंबर साधु की मुख्य पहचान होना मुनि ने बताया

आज के भक्तामर के पुनार्जन श्री महावीर प्रसाद पदम कुमार सुरेश कुमार बुद्धि प्रकाश जैन मोडीका परिवार द्वारा दीप प्रजनन चित्र चित्र अनावरण मंगलाचरण मुनि के पाद पक्षालन संपन्न किये
वर्षा योग समिति द्वारा स्वागत सम्मान किया गया

दिगंबर जैन समाज प्रवक्ता महावीर कुमार सरावगी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here