आत्मा को परमात्मा बनाने का पुरुषार्थ है भगवान महावीर स्वामी की तप साधना
सनावद – जैन दर्शन के अनुसार अष्ट कर्मों का नाश करने के लिए व्यक्ति को तप साधना करनी पड़ती है। आत्मा को परमात्मा बनाने के लिए कठोर परीषहो को समता पूर्वक सहन करना पड़ता है।30 वर्ष की अवस्था में दीक्षा लेने के बाद भगवान महावीर स्वामी को कैवल्योपलब्धि हुई। 12 वर्ष 5 माह तक एवं 15 दिन तक कठोर तप किया जिसके बाद वैशाख शुक्ल दशमी को आपको केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। केवल ज्ञान की प्राप्ति के बाद योग्य गणधर इंद्रभूति गौतम के आगमन पर उन्होंने सर्वप्रथम प्राणियों के कल्याण के लिए उपदेश दिया। तपस्या के समय उन्होंने समता पूर्वक अनेक उपसर्गों को सहन किया। अतः आज भी व्यक्ति व्रत उपवास और संयम की साधना भगवान महावीर स्वामी के बाह्य तप के अनुसार करते हैं उनकी तप साधना आत्मा को परमात्मा बनाने का पुरुषार्थ है
उपरोक्त विचार पार्श्वज्योति अध्यक्ष डॉ नरेन्द्र जैन भारती ने भगवान महावीर स्वामी के तप कल्याणक दिवस पर मंच की हुई बौद्धिक विचार गोष्ठी में व्यक्त किए। गजेंद्र बाकलीवाल ने बताया कि चाहे वर्षाकाल हो या ग्रीष्मकाल परिस्थितियों को सहन करते हुए भगवान महावीर स्वामी ने तपस्या में एकाग्रचित्त होकर धर्म साधना की। उनकी यह तपस्या कर्मों को जीतने के लिए थी।
भगवान महावीर स्वामी के जियो और जीने दो के सिद्धांत को बताते हुए बसंत पंचोलिया ने बताया कि अपने लिए तो सभी जीने की भावना रखते हैं लेकिन महावीर स्वामी ने जीने दो की भावना पर जोर देकर सभी प्राणियों को निर्भयता से जीवन जीने का उपदेश दिया। शुभम जैन ने बताया कि उन्होंने निर्जन वनों में भी तप साधना कर आत्मनिर्भरता का संदेश दिया। भगवान महावीर स्वामी की तप साधना महान थी। इस मौके पर श्रद्धालुओं ने जैन मंदिरों में भगवान महावीर स्वामी का अभिषेक, पूजा कर तप कल्याणक मनाया।