बदनावर। जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर भगवान श्री पार्श्वनाथ जी का 2801वां निर्वाण कल्याणक आगामी 11 अगस्त रविवार को मनाया जाएगा। भगवान पार्श्वनाथ की लाखों प्रतिमाएं देश में तो विराजित है वही उनकी उपस्थिति विदेशों में भी दर्ज है। जिसे हम दक्षिण पूर्व एशिया के रूप में जानते हैं वह वास्तव में प्राचीन काल का महाभारत ही है। यहां के कई छोटे-छोटे देश जिनमें भारतीय संस्कृति व जैन संस्कृति के अभूतपूर्व प्रमाण पाए गए हैं । इन सभी जगह पर भी भगवान पार्श्वनाथ का मूर्ति शिल्प उपस्थित है। जो भगवान पारसनाथ की सार्वभौमिकता को प्रदर्शित करता है।
उक्त जानकारी देते हुए वर्द्धमानपुर शोध संस्थान के ओम पाटोदी ने बताया कि यदि हम भारत के बाहर जैन धर्म की बात करें तो हम पाएंगे कि कई देशों में जैन धर्म के उपस्थित ज्ञात होती है यह उपस्थिति हमें वहां से प्राप्त तीर्थंकर प्रतिमाओं, मंदिरों, स्तूपों, वहां के जैन शासको एवं वहां की जनजातीय एवं सामान्य लोगों दैनिक दिनचर्या में दिखाई देती है। ये देश जैसे इंडोनेशिया के बोरोबुदुर, कम्बोडिया के अंगकोटवाट, थाईलैंड, वियतनाम, म्यांमार बर्मा, ग्वाटेमाला, चीन, मेक्सिको, यूनानी, मिश्र, सुमेर, बेबीलोनिया, पाकिस्तान, बंगलादेश, तिब्बत नेपाल आदि सभी जगह पर भारतीय संस्कृति, जैन धर्म, भगवान पारसनाथ व अन्य तीर्थंकरों की उपस्थिति इन देशों में आज भी किसी न किसी रूप में मौजूद हैं।
चित्र में भगवान श्री पार्श्वनाथ जी की प्रतिमाओं को दर्शाया गया है जो कम्बोडिया, थाइलैंड, वियतनाम आदि जगहों पर मौजूद हैं।