भगवान ऋषभदेव के जन्म व तप कल्याणक पर हुआ धर्म सभा का आयोजन
जैन धर्म के लोगों ने देश की एकता व तरक्की के लिये हमेशा दिया है योगदान-साध्वी श्री
यमुनानगर, 23 मार्च (डा. आर. के. जैन):
छोटी लाईन श्री सुमतिनाथ श्वेतांबर जैन मंदिर के प्रांगण में जैन मिलन के सौजन्य से जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान श्री ऋषभदेव (आदिनाथ) जी का जन्म व तप कल्याणक परम पूज्य, परम विदुषी, सरलमना साध्वी प्रगुणा श्री जी महाराज साहिब, शिविर संचालिका परम पूज्य साध्वी प्रिया धर्मा श्री जी महाराज साहिब, आदि साध्वी वृंद की पावन निश्रा जी महाराज के सानिध्य में बड़े धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर एक विशेष धर्म सभा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता मंदिर प्रधान देवेन्द्र जैन ने तथा संचालन महामंत्री अटल जैन ने किया। साध्वी श्री ने श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुये कहा कि इतिहास साक्षी है कि जैन धर्म के लोगों ने देश की एकता के लिये और तरक्की के लिये हमेशा ही अपना योगदान दिया है। उन्होंने आगे बताया कि तीर्थंकर ऋषभदेव ने स्वावलंबी होना सिखाया। पौराणिक मान्यता है कि पहले भोगभूमि थी और मनुष्यों की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति कल्पवृक्ष से हो जाती थी अत: वे परिश्रम नहीं करते थे। कर्म भूमि के प्रारंभ होते ही कल्पवृक्ष समाप्त होने लगे। मनुष्यों के सामने संकट खड़ा हो गया कि वे जीवन का निर्वाह कैसे करें। अयोध्या के राजा ऋषभदेव ने लोगों को खेती करना और अन्न उपजाना सिखाया, उन्होंने षट्कर्म की शिक्षा दी। भारत के मनुष्यों को सबसे पहले इन षट्कर्मों के माध्यम से स्वावलंबी बनाया। साध्वी श्री ने बताया कि तीर्थंकर ऋषभदेव ने स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में अद्भुत क्रांति की, वे जानते थे कि स्त्री शिक्षित होकर ही स्वावलंबी और सशक्त हो सकती है। सर्वप्रथम उन्होंने नम: सिद्ध मंत्र का उच्चारण करवाकर अपनी दोनों पुत्रियों ब्राह्मी और सुन्दरी को गोद में बैठाकर क्रमश: दायें हाथ से लिपि विद्या और बाएं हाथ से अंक विद्या (गणित) की शिक्षा दी। तीर्थंकर ऋषभदेव ने दर्शन और अध्यात्म के क्षेत्र एक व्यवस्थित स्वतंत्रता की अवधारणा प्रस्तुत की और वह थी आत्मा को ही परमात्मा कहने की। अप्पा सो परमप्पा यह उनका उद्घोष वाक्य था। उसके बाद शेष तेईस तीर्थंकर इसी दर्शन को आधार बना कर स्व-पर का कल्याण करते रहे। प्रत्येक मनुष्य तप के माध्यम से स्वयं अपने समस्त दोषों को दूर करके भगवान बन सकता है अर्थात् कोई भी आत्मा किसी अन्य परमात्मा के आधीन नहीं है और वह पूर्ण स्वतंत्रता है और मुक्ति को प्राप्त कर सकता है। उनका यह दर्शन उन्हें दुनिया के उन धर्मों से अलग करता है जो यह मानते हैं कि ईश्वर मात्र एक है तथा मनुष्य उसके अधीन है और मनुष्य स्वयं कभी परमात्मा नहीं बन सकता। ऋषभदेव का यह स्वर भारतीय दर्शन में भी मुखरित हुआ। साध्वी श्री ने आगे कहा कि तीर्थंकर ऋषभदेव ने स्वयं अयोध्या में राजपाठ तो किया ही किन्तु बाद में विरक्त होकर दीक्षा ग्रहण कर जंगलों में जाकर तपस्या की और कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति कर मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त किया। कृषि करो और ऋषि बनो इस सूत्र के मंत्र दाता के रूप में उन्होंने जीवन जीने की कला सिखलाई। कृषि करना भी सिखाया और तदनंतर ऋषि बनना भी सिखाया। आज भी हमारा देश और कृषि और ऋषि प्रधान देश माना जाता है। इस अवसर पर सम्मानित विशिष्ठ सदस्य महेश जैन, डी. के. जैन, संदीप जैन, आशीष जैन, राकेश जैन, संजय जैन, पुनीत जैन, दीपक जैन, विभा जैन, विजय जैन, विनोद जैन आदि उपस्थित रहे।
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संबोधित करती साध्वी समूह व उपस्थित श्रद्धालु…………….(डा. आर. के. जैन)
महारानी अहिल्याबाई होलकर के जीवन चरित्र पर गोष्ठी का आयोजन
अपने शौर्य, विवेक और पराक्रम के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध थी-मिश्रा
यमुनानगर, 23 मार्च (डा. आर. के. जैन):
पंचनद शोध संस्थान यमुनानगर द्वारा महारानी अहिल्याबाई होलकर के जीवन चरित्र पर समाजसेवी एवं राजनीतिज्ञ रोशन लाल कैसे की अध्यक्षता में वर्धा सेंटर मधु कॉलोनी में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी में गुरु नानक खालसा कॉलेज के समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डा. हेमंत मिश्रा मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। मुख्य वक्ता डा. हेमंत मिश्रा ने महारानी अहिल्याबाई होलकर के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि जब 18 वीं शताब्दी में अधिकतर स्त्रियों का जीवन पर्दा प्रथा, बाल विवाह और सती प्रथा जैसी कुप्रथाओं में जकड़ा हुआ था, तब स्त्रियों की पीड़ा को समझने वाली एक छोटे से गांव की साधारण सी लड़की से समाज सुधारक, कुशल प्रशासक, राजमाता, पुण्यश्लोक होलकर साम्राज्य की रानी बनने तक का सफर करने वाली अहिल्याबाई का जन्म महाराष्ट्र में बीड़ जिले के चौढी गांव में 31 मई सन 1725 हुआ था। उन्होंने कहा कि महारानी अहिल्याबाई ने अपनी बुद्धि, करुणा और न्याय प्रियता, दूरदर्शिता और कुशल प्रशासक से एक मजबूत और समृद्ध राष्ट्र का निर्माण किया। स्त्री शिक्षा और सशक्तिकरण के लिए भरपूर प्रयास करते हुए सड़कों पुलों और सार्वजनिक भवनों का निर्माण, उद्योगों का प्रसार नृत्य एवं लोकगीत के लिए कार्य किया। उन्होंने 100 से ज्यादा मंदिर 30 से ज्यादा धर्मशालाओं, घाट और कुओं का निर्माण कराया। अपने शौर्य, विवेक और पराक्रम से अपना नाम कुछ उन महिला शासकों में दर्ज कराया जो सुशासन करने के साथ-साथ दुनिया में प्रसिद्ध थी। गोष्ठी के अध्यक्ष रोशन लाल कैंसे ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि राजमाता अहिल्याबाई होलकर का चरित्र और शासन कल्याण, राष्ट्रभक्ति, शिक्षा और अच्छी सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को प्रदान करने में उनका जीवन हमें याद दिलाता है कि सच्चा नेतृत्व केवल सत्ता पर काबिज होने के बारे में नहीं है, बल्कि सबसे कमजोर लोगों की रक्षा और उत्थान के बारे में उनको याद करके हम अधिक समता पूर्ण, समरस सहिष्णु और समृद्ध समाज के निर्माण में योगदान दे सकते हैं। उनका योगदान न केवल राजनीतिक और प्रशासनिक था, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी अनमोल था। इस अवसर पर संस्थान के अध्यक्ष सुरेश पाल, मॉडल संस्कृति स्कूल बिलासपुर के प्राचार्य अजय धीमान, सरस्वती नगर के कार्यवाहक खंड शिक्षा अधिकारी पीरथी सैनी, सेवानिवृत प्राचार्य सतीश शर्मा, रामपाल, श्याम कुमार शास्त्री, सुखचैन, कृष्ण सैनी, डा. राजेश भारद्वाज, अध्यापक करण सिंह, विक्रम सिंह व अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
फोटो नं. 3 एच.
गोष्ठी में भाग लेते संस्थान के पदाधिकारी व सदस्य………….(डा. आर. के. जैन)