महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान में दिगम्बरत्व पर प्रश्नचिह्न, करोड़ों स्कूली बच्चों तक भेजी एक पक्षीय जानकारी
-डॉ. सुनील जैन संचय, ललितपुर
वर्तमान जिनशासन नायक श्री महावीर स्वामी के 2550वें निर्वाण महोत्सव वर्ष को हम सबने अगाध श्रद्धा भक्ति के साथ मनाया। वीर निर्वाण संवत 2551वें वर्ष में हम प्रवेश कर गए हैं। लेकिन इसी बीच महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान राज्य सरकारों से दिगम्बर जैन समाज के लिए दुःखद खबर आई है। महाराष्ट्र व गुजरात के बाद अब राजस्थान में भगवान महावीर स्वामी के जीवनवृत पर जो निबंध प्रतियोगिता राज्य सरकार द्वारा आयोजित हो रही है उसमें जो सहायक पुस्तिका के रूप में पुस्तक माध्यमिक शिक्षा परिषद राजस्थान द्वारा संलग्न की गई है वह नितांत ही एकपक्षीय है। अपने सभी सरकारी, निजी स्कूलों में 6 से 12वीं कक्षा के करोड़ों बच्चों को महावीर स्वामी के चारित्र में कई विवादित जानकारियां पहुंचा कर, दिगम्बरत्व पर ही प्रश्न चिह्न लागने की कोशिश की गई है।
2550वें निर्वाण महामहोत्सव वर्ष में राज्य सरकारें महावीर स्वामी का जीवन एवं उपदेश पर निबंध प्रतियोगिता आयोजित कर रही हैं जो कि एक अच्छी पहल है लेकिन एक पक्षीय पुस्तक के आधार पर निबंध प्रतियोगिता होने से दिगम्बर जैन समाज में भारी रोष व्याप्त है।
गुजरात में गांधीनगर प्राथमिक शिक्षा निदेशक कार्यालय के द्वारा जारी आदेश के अनुसार 8 से 16 अक्टूबर तक व महाराष्ट्र में 36 जिलों के एक लाख स्कूलों के 1. 5 करोड़ विद्यार्थियों के लिए यह प्रतियोगिता हो चुकी है और अब बीकानेर से माध्यमिक शिक्षा राजस्थान विभाग द्वारा समूचे राजस्थान में इसकी शुरूआत करने के लिये आदेश जारी कर दिया है। राजस्थान में यह प्रतियोगिता कक्षा 6 से 12के विद्यार्थियों के द्वारा 1 दिसम्बर से 7 दिसम्बर 2024 तक आयोजित होगी। इसके लिये आकर्षक पुरस्कार रखे गये हैं, प्रत्येक जिले में मुख्य पुरस्कार 10 हजार रुपये का तथा 10 आश्वासन पुरस्कार 1000 रु. के होंगे। राज्य स्तरीय प्राथमिक एवं माध्यमिक विभाग स्तर पर प्रत्येक में 3,02,550 के प्रथम तथा 1,02,550 के द्वितीय पुरस्कार दिये जाएंगे। सरकारों द्वारा इस प्रकार की प्रतियोगिता आयोजित करना अच्छा कदम है लेकिन इस आकर्षक अच्छी घोषणा में जैन समाज के प्रमुख दिगम्बर समुदाय का मानो उपहास उड़ाया गया है। भगवान महावीर स्वामी के प्रति कई विवादित जानकारियां केवल श्वेताम्बर मत से देकर उनके चारित्र को मानो एक पक्षीय पेश कर, एक बड़ा विवाद पैदा कर दिया है।
इस संबंध में किशनगढ़ राजस्थान में परम पूज्य आचार्य श्री सुनीलसागर जी महाराज के सान्निध्य में भगवान महावीर स्वामी के 2550वे निर्वाण महोत्सव पर आयोजित राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी के बीच जब राजस्थान सरकार के माननीय उप मुख्यमंत्री डॉ प्रेमचंद जी बैरबा दर्शनार्थ पधारे तो आचार्यश्री व देश के विभिन्न अंचलों से पधारे विद्वानों ने इस विवादस्पद प्रतियोगिता के बारे में अवगत कराया, माननीय उप मुख्यमंत्री ने इस संबंध में समुचित कदम उठाने का आश्वासन सभा के मध्य दिया तथा अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रि परिषद के तत्वावधान में उपस्थित विद्वानों के हस्ताक्षरित एक ज्ञापन भी राजस्थान के मुख्यमंत्री , राज्यपाल, शिक्षामंत्री आदि को तत्काल भेजा गया, राज्यपाल कार्यालय से इस संबंध में उचित कार्यवाही हेतु सूचना भी मिली।
इधर परम पूज्य निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी महाराज के सान्निध्य में भाग्योदय सागर में आयोजित अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद के अधिवेशन में भी इस मुद्दे को उठाया गया। 11 नवम्बर को परिषद के संरक्षक डॉ शीतलचंद्र जी जैन जयपुर ने सर्वप्रथम अधिवेशन की बैठक में इस मुद्दे पर अपने महत्वपूर्ण सुझाव रखे। विद्वत् परिषद के खुले अधिवेशन में मैंने (डॉ. सुनील जैन संचय) ने परिषद की ओर से एक प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया, जिसमें एक ऐसी साझा पुस्तक प्रतियोगिता में रखने कि बात की गई जिसमें दोनों संप्रदाय को दिक्कत न हो तथा सरकार द्वारा जिस पुस्तक को आदेश के साथ स्कूलों में भेजने की बात की गई है उस पुस्तक को तत्काल हटाने की मांग की गई, प्रस्तुत प्रस्ताव का समर्थन उपस्थित शताधिक विद्वानों ने ताली बजाकर किया। जिज्ञासा समाधान के लाइव कार्यक्रम में भी मैंने पूज्य निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी महाराज के समक्ष यह ज्वलंत मुद्दा रखा। पूज्य मुनिश्री ने भी पूरी जैन समाज के लिए मार्गदर्शन दिया तथा समाज की सभी संस्थाओं से कहा कि सभी इसको गंभीरता से लें और अधिकाधिक संख्या में ज्ञापन आदि भिजवाएं तथा इसके लिए कोई अच्छा वकील करें।
विडम्बना तो यह है कि गुजरात, महाराष्ट्र में यह विवादास्पद प्रतियोगिता हो गयी और दिगम्बर जैन समाज मौन धारण किए रही। अब भी कोई विशेष हलचल इस संबंध में देखने नहीं मिली । पूज्य मुनि श्री सुधासागर जी ने इस संबंध में स्पष्ट कहा कि हम घर में तो खूब लड़ लेते हैं लेकिन जब बाहर से हमारी संस्कृति, इतिहास पर हमले होते हैं तो हम चुप रहते हैं।
हमारे पास अब भी समय है, राजस्थान में यह प्रतियोगिता 1 दिसम्बर से 7 दिसम्बर 2024 तक आयोजित होगी, हमारा सिर्फ इतना से कहना है सरकार से कि आदेश के साथ जो ‘अध्यात्म का एवरेस्ट भगवान महावीर’ पुस्तक सहायक पुस्तिका के रूप में भेजी जा रही है वह हटा ली जाए, अध्यात्म परिवार भी इसको गंभीरता से लेते हुए एक साझा पुस्तक तैयार कर भेजी जाए जिसमें किसी की भी भावनाएं आहत न हों।
‘अध्यात्म का एवरेस्ट भगवान महावीर’ पुस्तक में एकपक्षीय बातें उल्लिखित हैं, उनमें कुछ प्रमुख इस प्रकार से हैं-
-महावीर स्वामी का विवाह हुआ तथा प्रियदर्शना नाम की बेटी हुई। जबकि दिगम्बर परंपरा के अनुसार वे बाल ब्रह्मचारी थे।
-28 वर्ष की आयु में उनके माता-पिता दोनों का स्वर्गवास हो गया।जबकि दीक्षा के समय उन्होंने दोनों से अनुमति ली थी।
-महावीर स्वामी के बड़े भाई और बहन थे। जबकि माता त्रिशला की केवल एक संतान हुई।
-वे स्नान नहीं करते, मात्र हाथ-पैर का प्रक्षालन करते।
-माता के गर्भ में आने पर मां ने 14 स्वप्न देखे।
-पुस्तक में जो चित्र दिए गए हैं वे नितांत एक पक्षीय हैं।
-वर्द्धमान के जन्म से पूर्व राजा सिद्धार्थ की दो संतान थीं।
-व्रजवृषभनाराच संहनन के धारी महावीर के कानों में लकड़ी डालने पर चीख पड़े और उन्हें असहनीय दर्द हुआ। क्या ऐसा संभव है?
– दीक्षा के बाद जब सब वस्त्र उतार दिये, तब इन्द्र ने उन्हें अंगवस्त्र प्रदान किया। उनके दिगम्बरत्व पर ही प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया।
-महावीर स्वामी को मोक्ष कार्तिक की नहीं, अश्विन की अमावस को हुआ।
पुस्तक में अनेक विवादित जानकारी देकर, बच्चों में महावीर स्वामी के बारे में एकपक्षीय जानकारी देकर इतिहास और संस्कृति के साथ छेड़छाड़ की गई है, ऐसा कर दिगम्बरत्व पर प्रश्न खड़ा करने की कोशिश हुई है।
जैन परम्परा के दोनों सम्प्रदायों में भगवान महावीर के जीवन चरित में कुछ असमानताएँ हैं किन्तु प्रतियोगिता के लिए संलग्न पुस्तिका एक सम्प्रदाय की विचारधारा को पुष्ट करती है, जिससे दिगम्बर जैन परम्परा के साधु संतों से लेकर सामान्य धर्मावलम्बियों की भावनाएं आहत हैं।
महासभा और जैन गजट भी अपना कड़ा विरोध दर्ज कराती है तथा राजस्थान के मुख्यमंत्री, राज्यपाल, शिक्षामंत्री आदि से अपील करती है कि तत्काल विवादित एक पक्षीय पुस्तक हटाएं और एक साझा पुस्तक तैयार कर स्कूलों में भेजी जाय जिससे किसी की भी भावनाएं आहत न हों।
कुछ नहीं होगा, कोसने से अँधेरे को।
अपने हिस्से का दीया खुद ही जलाना होगा।।