प्रेम, करूणा, भाईचारे के दीपक जलाएं, अंतःकरण प्रकाशित करें
-डॉ. सुनील जैन संचय, ललितपुर
भगवान महावीर स्वामी का 2550 वां निर्वाणोत्सव देश-विदेश में श्रद्धा पूर्वक धूमधाम से मनाया गया। इस वर्ष हम 2551वां निर्वाण महोत्सव मना रहे हैं।
वर्तमान शासन नायक भगवान महावीर स्वामी के अहिंसा, शांति, सद्भावना , अपरिग्रह, स्याद्वाद-अनेकांत के दर्शन की तत्कालीन समय में जितनी आवश्यकता थी उससे अधिक आवश्यकता और प्रासंगिकता मौजूदा समय में है। भगवान महावीर जैन धर्म के वर्तमानकालीन 24वें तीर्थंकर हैं। महावीर स्वामी ने कार्तिक कृष्ण अमावस्या को निर्वाण अर्थात् मोक्ष प्राप्त किया था। जैन परंपरा में दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। जहां कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन भगवान महावीर ने मोक्ष को प्राप्त किया था वहीं इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रमुख शिष्य, गणधर गौतम स्वामी को केवलज्ञान की प्राप्ति हुयी थी।
जैनधर्म के लिए यह महापर्व विशेष रूप से त्याग और तपस्या के तौर पर मनाया जाता है। इसलिए इस दिन जैन धर्मावलंबी भगवान महावीर की विशेष पूजा करके प्रातः बेला में निर्वाण लाडू चढाकर स्वयं उन जैसा बनने की भावना भाते हैं। दिवाली यानि महावीर के निर्वाणोत्सव वाले दिन पूरे देश के जैन मंदिरों में विशेष पूजा, निर्वाण लाडू महोत्सव का आयोजन भव्य रूप में किया जाता है। गोधूलि बेला में अपने-अपने घरों में महावीर भगवान की विशेष पूजन के साथ दीप जलाते हैं।
भगवान महावीर के बताये हुए मार्ग पर चलने से हम स्वस्थ, समृद्ध एवं सुखी समाज की संरचना कर सकते हैं। परमाणु खतरों और आतंकवाद से जूझ रही दुनिया को भगवान महावीर के अहिंसा और शांति के दर्शन से ही बचाया जा सकता है।
दीपमालिकायें केवलज्ञान की प्रतीक : दीपमालिकायें केवलज्ञान की प्रतीक हैं। सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो, अंधकार का नाश हो, इस भावना से दीपमालायें जलाने की परंपरा रही है। दीपावली के पूर्व कार्तिक त्रयोदशी के दिन भगवान महावीर ने बाह्य समवसरण लक्ष्मी का त्याग कर मन-वचन-काय का निरोध किया। वीर प्रभु के योगों के निरोध से त्रयोदशी धन्य हो उठी, इसीलिए यह तिथि ‘धन्य -तेरस’ के नाम से विख्यात हुई, इसे आज अधिकांश लोग ‘धन-तेरस’ के रूप में जानते हैं।
रूढ़ियों, कुरीतियों और भ्रम से निकलें : आज दीपाली के साथ जैन समाज में अनेक रुढ़ियां प्रवेश कर गयी हैं।हम सभी रूढ़ियों, कुरीतियों और भ्रम से उस पार जाकर सत्य की पहचान करें और सत्य के प्रकाश से अपने को प्रकाशित करें। तभी महावीर स्वामी का निर्वाण महोत्सव, गौतम गणधर का केवलज्ञान कल्याणक सार्थक होगा तथा हम सभी के द्वारा की जाने वाली पूजन, भक्ति, अभिषेक, शांतिधारा, अर्चना भी सफल होगी।
अंतःकरण प्रकाशित करें :
यह पर्व हमें प्रेरणा देता है कि हम बाहरी प्रकाश के साथ-साथ अंतःकरण प्रकाशित करें। अपने आचरण, व्यवहार, वात्सल्य, सहकार सौहार्द को परस्पर में बांटकर स्व-पर जीवन को भी मधुर बनाएं। प्रेम, करूणा, भाईचारे के दीपक जलाकर सभी में अपनत्व का संचार करें।
प्राणियों तथा पर्यावरण की रक्षा करें :
भगवान महावीर नें संयम आधारित जीवन शैली की बात की, व्यक्तिगत भोग और उपभोग के सीमाकरण की बात की, उन्होंने कहा पदार्थ सीमित है, वो असीम इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर सकते। आज इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हमें भगवान महावीर के उपदेशों पर चलते हुए भ्रष्टाचार मिटाने की कोशिश करनी चाहिए तथा सत्य व अहिंसा का मार्ग चुनकर दीपावली पर पटाखों, आतिशबाजी का त्याग करके जीव-जंतुओं, प्राणियों तथा पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए। यदि हम यह कर सके तो सही मायनों में भगवान महावीर के निर्वाणोत्सव मनाने की सार्थकता सिद्ध कर सकेंगे।
भगवान महावीर का मार्गदर्शन, उनके सिद्धान्त पर्यावरण की शुद्धि के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। कोरोना महामारी के समय में भगवान महावीर का जैन दर्शन एवं शिक्षाओं की ओर समूची दुनिया का ध्यान आकृष्ट हुआ है। भगवान महावीर की शिक्षाएं आर्थिक असमानता को कम करने की आवश्यकता के अनुरूप हैं।
पहले से अधिक प्रासंगिक महावीर के विचार :
भगवान महावीर के उपदेश आज पहले से अधिक अत्यंत समीचीन और प्रासंगिक हैं। भगवान महावीर की शिक्षाओं में पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास, युद्ध और आतंकवाद के जरिए हिंसा, धार्मिक असहिष्णुता तथा गरीबों के आर्थिक शोषण जैसी सम-सामयिक समस्याओं के समाधान पाए जा सकते हैं। भगवान महावीर ने ‘अहिंसा परमो धर्मः’ का शंखनाद कर ‘आत्मवत् सर्व भूतेषु’ की भावना को देश और दुनिया में जाग्रत किया। ‘जियो और जीने दो’ अर्थात् सह-अस्तित्व, अहिंसा एवं अनेकांत का नारा देने वाले महावीर स्वामी के सिद्धांत विश्व की अशांति दूर कर शांति कायम करने में समर्थ हैं।
वीर निर्वाण संवत् सबसे प्राचीन :
वीर निर्वाण संवत सबसे पुराना है। यह हिजरी, विक्रम ईस्वी, शक आदि से अधिक पुराना है। वीर निर्वाण संवत, विक्रम संवत, शक संवत, शालिवाहन संवत, ईस्वी संवत, गुप्त संवत, हिजरी संवत आदि से भी यह संवत् प्राचीन है । ईसा से 527 वर्ष पूर्व कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीपावली के दिन ही भगवान महावीर का निर्वाण हुआ था। उसके एक दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकम से भारतवर्ष का सबसे प्राचीन संवत ‘वीर निर्वाण संवत’ प्रारंभ हुआ था।
जैन “वीर निर्वाण संवत” भारत का प्रमाणिक प्राचीन संवत है और इसकी पुष्टि सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता डॉ गौरीशंकर हीराचंद ओझा द्वारा वर्ष 1912 में अजमेर जिले में बडली गाँव (भिनय तहसील, राजस्थान) से प्राप्त ईसा से 443 वर्ष पूर्व के “84 वीर संवत” लिखित एक प्राचीन प्राकृत युक्त ब्राह्मी शिलालेख से की गयी है। यह शिलालेख अजमेर के ‘राजपूताना संग्रहालय’ में संगृहीत है। प्राचीन व प्रमाणिक 2550वां जैन “वीर निर्वाण संवत” 13 नवम्बर 2023 से शुरू होगा। जैन वीर निर्वाण संवत् भारत का प्रमाणिक संवत है। जैन परंपरा में भगवान महावीर स्वामी के निर्वाणोत्सव के अगले दिन से नए वर्ष का शुभारंभ माना जाता है।
यद्यपि युद्ध नहीं कियो, नाहिं रखे असि-तीर ।
परम अहिंसक आचरण, तदपि बने महावीर ।।
अनेक समस्याओं का समाधान :
आज विश्व के सामने उत्पन्न हो रहीं सुनामी, ज्वालामुखी जैसी प्राकृतिक आपदाएं,कोरोना महामारी, हिंसा का सर्वत्र होने वाला ताडंव, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, वैमनस्य, युद्ध की स्थितियां, प्रकृति का शोषण आदि समस्याएं विकराल रूप ले रही हैं। ऐसी स्थिति में कोई समाधान हो सकता है तो वह महावीर स्वामी का अहिंसा, अपरिग्रह और समत्व का चिंतन है।
अहिंसा के अवतार भगवान महावीर स्वामी के 2551वे निर्वाण- महामहोत्सव की आप सभी को अशेष शुभकामनाएं।
-डॉ सुनील जैन संचय
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