भगवान महावीर दूरदर्शी जिन्होंने वर्तमान परिस्थितियों अनुकूल अहिंसा परमोधर्म का सिद्धांत प्रतिपादित किया

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*जिओ और जीने दो,पंचशील,अनेकांतवाद,अपरिग्रह प्रमुख सिद्धान्त* संजय जैन बड़जात्या कामां
*महावीर जन्मकल्याणक 21 अप्रैल सन्दर्भ पर विशेष आलेख*
वर्तमान परिदृश्य में संपूर्ण विश्व में मानवीय मूल्यों का बहुत तेजी से ह्रास हो रहा है। चारों ओर अराजकता, अशांति, अत्याचार पापाचार,दुराचार यहां तक की युद्ध जनित हिंसा का वातावरण ही दृष्टिगोचर होता है। ऐसे में भगवान महावीर स्वामी द्वारा प्रदत्त अहिंसा परमो धर्म का सिद्धांत बड़ा ही प्रासंगिक व महत्वपूर्ण नजर आता है अर्थात वर्धमान की वर्तमान को महती आवश्यकता है।
अहिंसा के अग्रदूत व जैन धर्म के अंतिम व चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जन्म चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को ईसवी सवंत से 599 वर्ष पूर्व वैशाली गणराज्य के कुंड ग्राम में इच्छवाकु वंश के क्षत्रिय परिवार के महाराजा सिद्धार्थ व माता त्रिशला के आंगन में हुआ। मात्र 30 वर्ष की आयु में संसार से विमुक्त हो राज वैभव का त्याग कर वैराग्य धारण कर लिया और स्वयं एवं पर के आत्म कल्याण मार्ग पर निकल गए।
12 वर्षों की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई इसके पश्चात उन्होंने समोशरण में ज्ञान प्रसारित किया। 72 वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी स्थित पदम सरोवर से मोक्ष अर्थात निर्वाण की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उसे समय के प्रमुख राजा बिम्बसार,कुणीक,चेटक आदि भी शामिल थे। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्म दिवस को महावीर जन्मकल्याणक तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली पर्व पर निर्वाण कल्याणक के रूप में मनाया जाता है। जैन ग्रन्थों के अनुसार समय-समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है। जो सभी जीवो को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते हैं जैन आगम अनुसार तीर्थंकरों की संख्या चौबीस है तो भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौबीसवें अर्थात अंतिम तीर्थंकर थे और ऋषभदेव (आदिनाथ) भगवान पहले तीर्थंकर थे। हिंसा ,पशु बलि, जात-पात का भेदभाव जिस युग में बढ़ गया उस युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने दुनिया को  पंचशील सिद्धांत से अवगत कराया यथा अहिंसा, सत्य, अचौर्य,ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह उन्होंने अनेकान्तवाद, स्वाद्वाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धांत दिए।
महावीर के सर्वोदय तीर्थ में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएं नहीं थी। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक समान है इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं के लिये पसंद हो, यही महावीर का “जिओ और जीने दो” का सिद्धांत है जैन ग्रन्थों जिन्हें जिन आगम कहा जाता है के अनुसार उनके जन्म के बाद राज्य में उन्नति होने से उनका नाम वर्धमान रखा गया था। जैन ग्रंथ उत्तर पुराण में वर्धमान, वीर, अतिवीर, महावीर और सन्मति ऐसे पांच नामों का उल्लेख है। दिगंबर परंपरा के अनुसार महावीर बाल ब्रह्मचारी थे। भगवान महावीर शादी नहीं करना चाहते थे क्योंकि ब्रह्मचर्य उनका प्रिय विषय था। भोगों में उनकी रुचि नहीं थी, परंतु उनके माता-पिता शादी करवाना चाहते थे। दिगंबर परंपरा के अनुसार उन्होंने इसके लिए मना कर दिया था। भगवान महावीर का साधना काल 12 वर्ष का था। दीक्षा लेने के उपरांत भगवान महावीर ने दिगंबर साधु की कठिन चर्या को अंगीकार किया और निर्वस्त्र रहे। अपने पूरे साधना काल के दौरान महावीर ने कठिन तपस्या की और मौन रहे, इन वर्षों में उन पर कई उपसर्ग भी हुई जिनका उल्लेख कई प्राचीन जैन ग्रन्थों में मिलता है जैन ग्रन्थों के अनुसार केवल ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान महावीर ने उपदेश दिया। उनके ग्यारह गणधर मुख्य शिष्य थे। जिनमें प्रथम गौतम इंद्रभूति थे। भगवान महावीर द्वारा प्रदत्त पंचशील के सिद्धांत जीवन में मूल्य की स्थापना कर उन्नत जीवन की कला बताते हैं।
*सत्य*
सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं ।हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ, जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।
*अहिंसा*
इस लोक में जितने भी त्रस जीव एक,दो,तीन,चार और पंचेेंद्रीय वाले जीव हैं उनकी हिंसा मत कर, उनको उनके पथ पर जाने से न रोको, उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो। उनकी रक्षा करो, यही अहिंसा का संदेश भगवान महावीर अपने उपदेशों में हमें देते हैं।
*अचौर्य*
दूसरे की वस्तु को बिना उनके दिए हुए ग्रहण करना जैन ग्रन्थों में चोरी कहा गया है।
*अपरिग्रह*
परिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है दूसरे से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह की सम्मति देता है उसको दुखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता यही संदेश अपरिग्रह के माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाहते हैं।
*ब्रह्मचर्य*
महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम,ज्ञान, दर्शन,चारित्र, संयम और विनय की जड़ है तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है जो पुरुष स्त्रियों से संबंध नहीं रखते वह मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं।
वास्तविक रूप से भगवान महावीर स्वामी दूरदर्शी व भविष्यवेत्ता थे, जिन्होंने वर्तमान परिस्थितियों को भली भांति समझते हुए आने वाले भविष्य के लिए अहिंसा परमो धर्म का मूल सिद्धांत संपूर्ण विश्व को दिया। जिसकी आज की परिस्थितियों में महती आवश्यकता है, जहां संपूर्ण विश्व युद्ध की विभीषिका से जल रहा है ऐसे समय में अहिंसा परमो धर्म के सिद्धांत से ही विश्व शांति की कामना की जा सकती है।
*संजय जैन बड़जात्या,कामां, सवांददाता जैन गजट

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