भगवान कुन्थुनाथ जी का जन्म- तप मोक्ष कल्याणक

0
482

सोलहवे तीर्थंकर के निर्वाण के दीर्घर्कालीन अन्तराल के पश्चात सतरहवे तीर्थंकर श्री कुन्थुनाथ जी का जन्म हुआ। हस्तिनापुर नरेश महाराज शूरसेन प्रभु के जनक एवं महारानी श्रीदेवी जननी थी। वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को प्रभु का जन्म हुआ। कालक्रम से कुन्थुनाथ युवा हुए। उन्होने विवाह -संस्कार स्वीकार किया। पिता के पश्चात राज्यारुढ हुए। षडखण्ड को साधकर चक्रवर्ती पद प्राप्त किया। षडखण्ड के अधिपति होते हुए भी कुन्थुनाथ अपने भीतर प्रतिपल जाग्रत रहे।

इसी का परिणाम है कि उचित समय आने पर उन्होने वैशाख क्रष्णा पंचमी के दिन राजपाट को ठुकरा कर प्रव्रज्या – पथ अंगीकार किया। सोलह वर्ष छदमस्थ अवस्था मे रहने के पश्चात केवल -ज्ञान प्राप्त किया।तीर्थ की स्थापना करके तीर्थंकर कहलाए।

भगवान के धर्मसंघ का स्वयंभु आदि सैंतीस गणधरो ने संचालन किया। प्रभु के धर्मसंघ मे साठ हजार श्रमण ,साठ हजार छह सौ श्रमणियां , एक लाख उनासी हजार श्रावक एवम तीन लाख इक्यासी हजार श्राविकाएं थीं। वैशाख क्रष्णा प्रतिपदा के दिन सम्मेद शिखर पर्वत से प्रभु सर्वकर्मो से निव्रत्त हो मोक्ष -धाम मे जा विराजे।

भगवान के चिन्ह का महत्व

बकरा – यह भगवान कुन्थुनाथ का चिन्ह है। बकरा अत्यन्त सीधा पशु है। यह त्रण , घास -फ़ूस खाकर अपना जीवन निर्वाह करता है। इतने सीधे शाकाहारी जानवर के साथ स्वार्थी, धोखेबाज मनुष्य बडा क्रूर व्यवहार करता है। पहले उसे हरी घास और कन्दमूल खिलाकर पालता है , उसे मोटा -ताजा बनाता है, फ़िर धर्म के नाम पर उसकी बलि चढाता है। भगवान महावीर ने इस प्रकार की हिंसा को स्थूल हिंसा (जान-बूझकर की गई हिंसा ) कहा है जिसके बडे भयंकर परिणाम भुगतने पडते हैं। बकरे के जीवन से हमें यह शिक्षा मिलती है कि कोई तुम्हारे साथ एकाएक अत्यधिक प्रेम , दया और सहानुभूति दिखाये तो उस पर तत्काल विश्वास न करें क्योकिं लोग अपना काम निकालकर कूछ भी कर सकते हैं , इसलिए सदैव सतर्क रहना चाहिए।

महा बैशाख सु एकम शुद्ध, भयो तब जनम तिज्ञान समृद्ध |
कियो हरि मंगल मंदिर शीस, जजें हम अत्र तुम्हें नुतशीश ||
ॐ ह्री वैशाख शुक्लाप्रतिपदायां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीकुंथु0अर्घ्यं नि0
तज्यो षटखंड विभौ जिनचंद, विमोहित चित्त चितार सुछद |
धरे तप एकम शुद्ध विशाख, सुमग्न भये निज आनंद चाख ||
ॐ ह्रीवैशाख शुक्लाप्रतिपदायां तपोमंगलप्राप्ताय श्रीकुंथु0अर्घ्यं नि0
सुदी वैशाख सु एकम नाम, लियो तिहि द्यौस अभय शिवधाम |
जजे हरि हर्षित मंगल गाय, समर्चतु हौं तुहि मन-वच-काय ||
ॐ ह्री वैशाख शुक्लाप्रतिपदायां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीकुंथु0अर्घ्यं नि०

-विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन ,संरक्षक शाकाहार परिषद्

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here