(भिंड से सोनल जैन की रिपोर्ट )श्री 1008 महावीर कीर्तिस्तंभ मंदिर में आयोजित 35 दिवसीय 35 गुरु परिवार द्वारा 35 मंडलीय णमोकर जिनस्तुति विधान चल रहा है जिसमे प्रतिदिन सुबह सैकड़ों श्रद्धालुओं विधान में पहुंचकर धर्म लाभ ले रहे हैं पूज्य गुरुदेव जिन मंदिर जीर्णोद्वारक संत, प्रशांत मूर्ति श्रमण मुनि श्री 108 विनय सागर जी गुरुदेव के सानिध्य में आयोजित विधान के प्रारंभ में श्री जी का अभिषेक एवम् शांतिधारा होती है उसके पश्चात विधान क्रिया प्रारंभ होती है मुनि श्री ने बताया कि भक्तगणो को धर्म मार्ग पथ के मरमतत्व का ज्ञान प्रदान करते हुए आशीष वचन दिए गए। अपने प्रवचनों में बताया कि भगवान के चरणों में समर्पित किया दान ठीक उसी प्रकार फलीभूत होता है जिस प्रकार उपजाऊ जमीन में बोया गया छोटा सा बीज समय आने पर वटवृक्ष के समान विशाल हो जाता है। दान की महिमा है कि जो शक्ति अनुसार दान देकर मंदिर निर्माण, धर्मशाला निर्माण प्रतिमा निर्माण, साधुओं को औषधियों आहार आवास आदि का दान अथवा तीर्थ वंदना आदि करता कराता है वह दान भले ही थोड़ा करें किंतु वह पुण्यो दयानुसार इतनी अधिक मात्रा में प्राप्त होता है कि वह दान करता स्वयं आश्चर्य चकित हो जाता है। धर्म कार्यों में देना अच्छी बात है किंतु लेना कदापि अच्छी बात नहीं है हमारे शास्त्रों में अनेक ऐसे उदाहरण हैं कि जब श्री कृष्ण के दादा पूर्व पर्याय में थे तब उन्होंने देव द्रव्य अर्थात धर्म कार्य में किसी ने दान किया और उन्होंने उस दान के रूपए को अपने लिए उपयोग कर लिया था किंतु ऐसे पाप का फल उन्हें बहुत बुरा मिला उन्हें सातवें नरक में जाकर असहनीय दुखों को सहन करना पड़ा। इसके अलावा और भी शास्त्रों में उल्लेख है कि देव द्रव्य का हरण करने वाला दरिद्र, अपंग, कुटुंब आदि का विद्रोह चांडालादि कुजाति मैं जन्म लेता है।
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