महावीर दीपचंद ठोले,छत्रपतीसंभाजीनगर महामंत्री तीर्थ संरक्षिणी महासभा (महा)
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वर्तमान में हमारे देश में ही नहीं विश्व में चारों ओर अविश्वास और संदेह का वातावरण व्याप्त है ।समुचा विश्व हिंसा और आतंकवाद की भीषण ज्वाला से दग्ध होकर त्राहिमा त्राहिमा पुकार रहा है। हाथ को हाथ खाए जा रहा है। हमारे वचन और कर्म में अनेक्य है। शब्दों से हम त्याग, तपस्या सहचर्य, मेलमिलाप और भाईचारे का गुणगान करते नहीं थकते। किंतु हमारे कार्यों में अधर्म, ढोंग तथा धन का बोलबाला है। ऐसी अवस्था में प्रत्येक चिंतनशिल, मननशील व्यक्ति इस परिस्थितियों से छुटकारा पाने का उपाय ढूंढने को बाध्य हैं ।
आज भौतिक ऐश्वर्य के चक्काचौन्ध में मानव समत्व को नहीं देख पा रहा है। जातीय भेदभाव,ऊँच-नीच तथा सांप्रदायिकता की विषाक्त भावना के कारण मानव मानव के रक्त का प्यासा हो रहा है। समाज में व्याप्त धर्म, भाषा तथा प्रांत के नाम पर चारों ओर हिंसा और आतंकवाद का लोम हर्षक तान्डव नृत्य हो रहा है। ऐसे आंदोलन सुरक्षित हो रहा है ऐसे अशांत ,क्लान्त, और दिग्भ्रमित समाज को भगवान महावीर का जीवन दर्शन रूपी आलोक ही सही दिशा निर्देश दे सकता है। भगवान महावीर के वचन व्यवहारिक जीवन की कसोटी पर कसे हुए शाश्वत सत्य हैं ।जिनमें वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिकता का अपूर्व सम्मिश्रण है। किसी भी जाति धर्म, संप्रदाय का व्यक्ति उनके बतलाए हुए मार्ग पर चलकर आत्मशुद्धि तथा आत्मोन्नति के शिखर पर आरूढ हो सकता है। उनका जीवन दर्शन किसी युग विशेष अथवा वर्ग विशेष के लिए नहीं है वरण प्राणी मात्र के लिए है। युगों युगों के लिए है। वह सार्वकालिक, सार्वदेशिक एवं सार्वभौमिक है।
महावीर ने अपने जीवन को ही प्रयोगशाला बनाकर साड़े बारह वर्ष स्वयपर प्रयोग किएऔर अपनी अंतरात्मा की अनंत गहराई मे ऊतरकर चेतना को जागृतकर आत्मसाधना के आधारपर एवं संशोधन के माध्यम से समूचे विश्व को जो देन दी है वह सर्वोच्च क्रांतिकारी देन कही जाएगी ।उसे हम पंचशील तत्व कहते हैं। वही हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं
उनका मानना था पृथ्वी पर मेरा सभी प्राणियों से मैत्री भाव है ।वह सर्वोदयी थे ।उन्होंने सर्वोदय तीर्थ की स्थापना की ।इसलिए उन्होंने अहिंसा को धर्म कहा है ।वे हि हिन्सावादी नहीं अहिंसा वादी थे। वे कहते थे कि आपके हृदय की धड़कन में प्रेम हो, रोम रोम में करूणा भरी हो। हमारा जीवन एवं आचरण दूसरों के लिए मंगलकारी हो। इसलिए भगवान महावीर कभी के लिए नहीं अभी के लिए और सभी के लिए है। आज भी उनके सभी सिद्धांत अप टू डेट है। महावीरकी अपनी जीवन दृष्टि रही है। उनके सारे सिद्धांत से जीवन सापेक्ष है। उन्होंने जीवन को मधुर बनाने के लिए, जीवन को अमृत बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुत्र दिए है। जैसे महात्मा गांधी के तीन बंदरों का दृष्टांत नकारात्मक पहलू है। जबकि भगवान महावीर का सकारात्मक पहलु है कि सही देखो इसी को सम्यक दर्शन कहा है। दूसरा पहलू है सदा सही जानो जिसे सम्यक ज्ञान कहा है ।पहला सूत्र दृष्टि को निर्मल करने की प्रेरणा देता है।
जबकि दूसरा सूत्र बुद्धि को निर्मल बनता है ।तीसरा पहलू है सदा सही सही करो। खुद भी जीयो व औरों को भी सुख से जीने दो। ऐसे कार्य करो कि जो हमारे लिए वृद्धि करने वाले हो ।इसी को सम्यक चारित्र कहा है। यही हमारे जीवन के तीन मूल्यवान रत्न है।
आज विश्व जिस दोर से गुजर रहा है उसे देखते हुए महावीर के सिद्धांतो की पुर्नप्रतिष्ठा की प्रबल आवश्यकता है। महावीर ने अहिंसा का सिद्धांत दिया ताकि हर व्यक्ति को जीने का पूरा-पूरा अधिकार मिल सके। उन्होंने सत्य का सिद्धांत दिया ताकि झूठ प्रपंच और प्रवंचना से समाज को मुक्त रख सके। उन्होंने अचोर्य
का सिद्धांत ईस लिए दिया कि हर व्यक्ति अपने आप को तथा अपने साधनो को सुरक्षित समझे। इसी तरह अपरिग्रह का भी सिद्धांत दिया ताकि समाज में किसी भी गरीब का शोषण ना हो ।समाज में साम्यवाद की स्थापना हो और समाज में हर व्यक्ति को जीने का समान अधिकार मिले ।और उसे सभी सुख साधन उपलब्ध हो सके। उन्होंने ब्रह्मचर्य का भी सिद्धांत दिया ताकि हर नारी स्वयं को सुरक्षित अनुभव कर सके। जीवन में सदाचार और सद्विचार की गंगा जमुना बहती रहे। ऊन्होने रात्रि भोजन को भी नहीं कहा क्योंकि सभी लोग रोग मुक्त जीवन जी सके।
आज मनुष्य के हाथ में विज्ञान के माध्यम से अपार शक्ति आई है। विज्ञान का यह महायुग मनुष्य का सबसे अधिक लाचार युग हैं। क्योंकि इस विज्ञान ने हमे मछली की तरह समुद्र पर तैरना सिखाया ,पक्षी की तरह आकाश में उडना सिखाया ,परंतु इंसान की तरह पृथ्वी पर कैसे रहना यह नही सिखाया। इस विग्यान युग में संसार ने जितनी उन्नती की है मानवता का उतनाहीं पतन हुआ है ।महावीर के सिद्धांतो से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए कि संसार में केवल प्रेम स्थापित होना चाहिए। इसलिए आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए महावीर ने अपरिग्रह के माध्यम से कहा कि आदमी अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रख सके। अनेकांत का महान संदेश महावीर ने दिया ।अनेकता में एकता की दृष्टि का नाम अनेकांत है। यानी सब के विचारों का सम्मान करना। जिसका उद्देश्य भाषा, विचार और विरोधों के झगड़े को मिटाते हुए मानवीय, सामाजिक एकता कायम करना है ।अपनी ही बात सच्ची है ऐसा नहीं समझते हुए दूसरों की बात में भी सच्चाई की संभावना है यह समझना चाहिए। अनेकांत हमें प्रेरणा देता है कि दुनिया का हर धर्म, हर परंपरा तथा व्यक्ति सम्मान के काबील है ।हर धर्म और संस्कृति में अच्छाई है और अच्छे लोग हैं। कोई भी धर्म ,संस्कृति ऐसी नहीं जो मनुष्य को हानि पहुंचाने की बात करती हो। इसलिए हर धर्म परंपरा का सम्मान करें ।सभी से शांति, सहिष्णुताकि और उदारता की बात करें ।यही महावीर की जीवन दृष्टि है।
भगवान महावीर के सिद्धांत समग्र मानव जाति के लिए आचरण और अनुकरण करने योग्य यह है और उसका कारण है उन सिद्धांतों के पीछे छुपी हुई मनोवैज्ञानिकता। जिसे वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध कर दिया कि जब विश्वा स्तर के वैज्ञानिक आइंस्टीन ने सापेक्षवाद के सिद्धांत की महान वैज्ञानिक दृष्टि को न समझ पाने के कारण अनेकांत जैसी महान सिद्धांत की सिर्फ खिल्ली उडाई थी।
बीसवी और एक्कीसवी सदी में इस सिद्धांत ने जितना आदर पाया उतना पिछली सदियो में शायद ही पाया होगा। यदि इस सिद्धांत को हम पहले से समझ लिए होते तो धर्म ईतने बंटवारे नहीं होते।
जब मार्क्स और लेनिन ने अर्थ और साम्यवाद की स्थापना पर जोर देते हुए कम्युनिस्ट विचारधारा को जन्मदिया, तब लोगों की नजर महावीर के अपरिग्रह पर गई और लोगों ने जाना की अर्थ साम्यवाद, सामाजिक कल्याण, सामाजिक सहभागिता और सामाजिक संविभाग के लिए इतनी महत्वपूर्ण भूमिका रखता है तो महावीर द्वारा हजारों वर्ष पूर्व प्रतिपादित अपरिग्रह कितना अहम और उपयोगी है ।
आज इस बात की आवश्यकता महसूस की जा रही है कि प्रत्येक राष्ट्र अपने अतिरिक्त शास्त्र भंडारों को नष्ट कर दे अन्यथा फिर किसी नए हिटलर, ट्रुमेन या लादेन का दिमाग खराब हो गया अथवा अन्य कोई राजनीतिक हलचल हुई तो तीसरे विश्व युद्ध को प्रारंभ होने में कोई देर नहीं लगेगी। महावीर ने हजार वर्ष जिस निशस्त्रीकरण की बात कही उसके लिए आज सारा विश्व सजग हो गया है ।
महावीर द्वारा पानी को उबालकर पीने की बात कही गई और जब इस बात की वैज्ञानिक संसिद्धी हो गई थो महावीर के समर्थन में संपूर्ण विश्व के लिए यह बात स्वयं ही अनुकरणीय और समर्थनीय हो गयी। महावीर तो अंधविश्वासो तथा आडंबरों की विरोधी रहे हैं ।उनके द्वारा यह बातें कभी नहीं कही गई कि जिन बातो को हम आज ग्रहण कर चुके हैं।
आज हमारे जीवन में नैतिक मूल्यों का निरंतर ह्रास और विघटन होते जा रहा है। नवनिर्माण और प्रगति के प्रयासों के कारण उसके यह प्रयत्न मिट्टी में मिल जाने के खतरे उत्पन्न हो गये है ।एक ओर जीव हत्या तो दूसरी ओर वृक्ष के हत्यारे जो उन्हें काटकर कांक्रीट के जंगल बनाते जा रहे हैं जिससे एक दिन ऐसा होगा कि जब मानव को रेगिस्तान की चिल चिलाती धूप में प्यासा मरना होगा। पर्यावरण, प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के दौर में भगवान महावीर की प्रासंगिकता और बढ़ गई है ।इसलिए भगवान महावीर को पर्यावरण पुरूष कहा जाता है।
इसलिए मानवता को हरा भरा एवं अमरता प्रदान करनी है तो भगवान महावीर की उपदेशों का पावन धरा को सागर रुपी इस संसार में अधिक गति से बहने देना होगा तो निश्चित ही सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया। सर्वे मंत्र भद्राणि पश्यंतु , मा किश्चित दुख भावेत।। की ऊक्ति सिद्ध होगी और आत्मसाम्य की भावना सर्वभूतात्मा की भावना सिद्ध हो होती है तो विश्व में युद्ध, हिंसा ,ऊन्मादऔर आतंक जड मुल से नष्ट हो जाएंगे।
अतःवर्तमान में महावीर स्वामी के सिद्धांतों को आत्मसात कर सुरक्षा का संकल्प हमें लेना होगा। ऊनका मार्ग आज युग की समस्त समस्याओं, मूल्यो की पुर्नस्थापना, जीवन में नैतिकता का समावेश तथा हिंसा से बचने के लिए सही रास्ता है और राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक सभी क्षेत्र में उपयोगी है ।जिस पर बढ़ते हुए हम सुख और शांति को प्राप्त करते हुए नए युग का निर्माण कर सकते है।
महावीर ठोले छत्रपतीसंभाजीनगर