नई दिल्लीः तीर्थंकर जन्म कल्याणक समारोह समिति धर्मपुरा,चांदनी चौंक दिल्ली के संयोजन में जिनेंद्र जैन- कूचा सेठ, कुलदीप जैन, पी के जैन- कागजी, वेद प्रकाश जैन, भारत भूषण जैन-दरियागंज, अनिल जैन, रमेश चंद्र जैन-नवभारत टाइम्स, मुकेश जैन, निर्मला, बीना, उषा, रानी, गीता, गरिमा, सरिता जैन आदि 16 तीर्थयात्रियों के दल ने 1 से 6 मार्च तक 12 तीर्थंकरों की जन्मभूमियों के भावसहित दर्शन, वंदन, पूजन, प्रक्षाल, शांतिधारा कर परमानंद का अनुभव किया।
हम लोग 1-मार्च शाम को आनंदविहार से सप्तक्रांति एक्स. से चलकर 2 को सुबह गोरखपुर पहुंचकर भगवान पुष्पदंतनाथ की जन्मभूमि काकंदी जि. देवरिया पहुंचे और विशाल मंदिर के दर्शन कर अभिषेक किया। गांव का नाम खुखुंदू है। मंदिर के पास ही पुरातत्व विभाग के अंतर्गत एक बाउंड्री में चरण बने हैं। जो बिल्कुल उपेक्षित थे। यहां एक भी जैन परिवार नही है। गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माता जी की प्रेरणा से क्षेत्र में सुधार हुआ है, फिर भी क्षेत्र के विकास की
बहुत जरूरत है। यहां से गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर देखकर हम शाम को भगवान संभवनाथ की जन्मस्थली श्रावस्ती पहुंचे और सुबह को भव्य विशाल मंदिर
में दर्शन व शांतिधारा कर भव्य सहस्रकूट जिनालय, बडी मूर्ति आदि के दर्शन किए। यह क्षेत्र बौद्ध धर्म का भी बडा तीर्थ है। यहां से हम भगवान धर्मनाथ की जन्मभूमि रत्नपुरी-रोनाही पहुंचे यहां मंदिर व चरणों के दर्शन किए। माता जी की प्रेरणा से यहां सभी व्यवस्था ठीक थी। मुस्लिम बाहुल इस गांव में एक भी जैन परिवार नही है।
यहां से अयोध्या पहुंचकर अगले दिन हमने रायगंज में भगवान आदिनाथ की बडी मूर्ति के दर्शन कर चरणों की शांतिधारा की व अन्य सभी मंदिरों के दर्शन कर यहां विराजमान पूज्य ज्ञानमती माताजी, चंदनामती माताजी, स्वर्णमती माता जी, पीठाधीश रवींद्रकीर्ति जी व संघ के दर्शन किए। पूज्य माता जी ने मुझे कईं पुस्तके भेंटकर आशीर्वाद दिया। पूज्य माताजी का हस्तिनापुर से 1989 से ही सान्निध्य, मार्गदर्शन और आशीर्वाद मिलता रहा है।
यहां हमने भगवान आदिनाथ, अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ, अनंतनाथ जी की पांचों जन्मभूमि मंदिरों व चरणों के अलग-अलग कटरों में दर्शन किए। जहां बडी गाडी नही जाती, केवल टेम्पों आदि ही जाते हैं। माताजी की प्रेरणा से कटरा में निर्मित सुंदर और विशाल भगवान ऋषभदेव राजकीय उद्यान देखा। हाल ही में प्रतिष्ठित विश्व प्रसिद्ध राममंदिर में महामंत्र णमोकार पढकर वीतरागी श्री रामचंद्र भगवान की जयकार के साथ रामलला के दर्शन भी किए। अन्य स्थलों का भ्रमण कर रात्रि में ट्रेन से चलकर सुबह ही वाराणसी पहुंचे और भेलूपुर में भगवान पार्श्वनाथ की जन्मस्थली पर विशाल और भव्य मंदिर के दर्शन किए। यहां आर्यिका दिव्यश्री जी का प्रवचन भी सुना। साथ ही पुराने परिचित जैन दर्शन के प्रमुख विद्वान डा. अशोक कुमार जैन भी मिले। यहां से सिंहपुरी, सारनाथ में भगवान श्रेयांसनाथ जी की जन्मभूमि मंदिर के दर्शन किए। पास ही विशाल बौद्ध स्तूप व 500 वर्ष पुराना वटवृक्ष भी देखा। यहां विशाल वाटिका में बडी मूर्ति और मंदिर के दर्शन भी किए। अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध क्षेत्र होते हुए भी अपने जैन क्षेत्र का रखरखाव ठीक नही था। मंदिर खुलने का समय होने पर भी बडी अनुनय विनय के बाद पुजारी ताराचंद को बुलाकर मंदिर के दर्शन किए। मंदिर के प्रचार-प्रसार व मार्गदर्शिका पट्ट आदि लगाने की बहुत जरूरत है। मंदिर में कोई निर्देशिका भी नही थी।
यहां से हमने भगवान चंद्रप्रभ जी की जन्मस्थली गंगाकिनारे चंद्रपुरी में भव्य मंदिर व रत्नों की प्रतिमाओं के दर्शन किए। यहां केवल दो ही जैन परिवार हैं। श्वेतांबर मंदिर भी है। शाम को भदैनी में जैन घाट के पास भगवान सुपार्श्वनाथ जी की जन्मस्थली मंदिर के दर्शन किए। पास में ही देश का प्रसिद्ध 1905 में स्थापित स्याद्वाद महाविद्यालय है। इसके उपाधिष्ठाता प्रमुख जैन विद्वान डा. फूलचंद्र जैन प्रेमी मेरे विशेष आराध्य हैं, उन्होने हमें दरियागंज नई दिल्ली में अन्य विद्वानों के
साथ-साथ 1992 में एक शिविर में जैन धर्म की शिक्षा दी थी। तभी से उनसे लगातार संपर्क व गहरा संबंध रहा है। उनसे फोन पर कई बार बात हुई लेकिन मिलने का समय नही निकल सका, उनके आग्रह पर मैं महाविद्यालय में गया तो प्रिंसीपल डा. अमित जैन आकाश व पुस्तकालयाध्यक्ष सुरेंद्र कुमार जैन से वात्सल्य भेंट- चर्चा हुई, उन्होने महाविद्यालय दिखाया और गतिविधियां बताई और स्मारिका भेंट की। मुझे बडे गर्व और गौरव की अनुभूति हुई। यहीं से आचार्य श्री विद्यासागरजी के गुरू आचार्य श्री ज्ञानसागरजी, गणेशप्रसादजी वर्णी व अन्य सैंकडों विद्वान और स्वतंत्रता सेनानी निकले हैं। इस महाविद्यालय के विकास की भी बहुत जरूरत है।
इस प्रकार 4 दिन में ही 12 तीर्थंकरों की जन्मभूमियों के पहली बार दर्शन कर जीवन धन्य हो गया और हम सब अदभुत ऊर्जा से परिपूर्ण होकर 5 की रात को शिवगंगा एक्स. से चलकर 6 को सुबह दिल्ली लौट आए। दीर्घ काल तक हमें यह यात्रा याद रहेगी।
प्रस्तुतिः रमेश चंद्र जैन एडवोकेट, नवभारत टाइम्स नई दिल्ली
चित्र परिचयः श्रावस्ती में शांतिधारा करते हुए, पूज्य माताजी पुस्तक भेंट करते हुए, भगवान पार्श्वनाथ की जन्मभूमि मंदिर, भगवान चंद्र प्रभ की जन्मभूमि गंगा किनारे यात्री, स्याद्वाद महाविद्यालय में।