(सोनल जैन की रिपोर्ट ) श्री 1008 महावीर कीर्तिस्तंभ दिगंबर जैन मंदिर में विराजमान संत आचार्य गुरुवर श्री विनम्र सागर जी मुनिराज के परम् प्रभाभक शिष्य जिन मंदिर जीर्णोद्वारक संत प्रशांत मूर्ति श्रमण मुनि श्री 108 विनय सागर जी गुरुदेव ससंघ सानिध्य में रक्षाबंधन विधान का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुनि श्री ने रक्षाबंधन की कथा सुनाते हुए कहा कि जैन पौराणिक ग्रंथों के अनुसार उज्जयिनी में श्री धर्म नाम के राजा के चार मंत्री थे। बलि, बृहस्पति, नमुचि और प्रह्लाद। ये चारों मंत्री जैन धर्म के घोर विरोधी थे। इन मंत्रियों ने शास्त्रार्थ में पराजित होने के कारण जैन संत श्रुतसागर मुनिराज पर तलवार से प्रहार का प्रयास किया तो राजा ने उन्हें देश से निकाल दिया। चारों मंत्री अपमानित होकर हस्तिनापुर के राजा पद्म की शरण में आए। कुछ समय बाद मुनि अकंपनाचार्य 700 मुनि शिष्यों के संग हस्तिनापुर पहुंचे। बलि को अपने अपमान का बदला लेने का विचार आया। उसने राजा से वरदान के रूप में सात दिन के लिए राज्य मांग लिया। राज्य पाते ही बलि ने मुनि तथा आचार्य के साधना स्थल के चारों तरफ आग लगवा दी। धुएं और ताप से ध्यानस्थ मुनियों को अपार कष्ट होने लगाए पर मुनियों ने अपना धैर्य नहीं तोड़ा। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि जब तक यह कष्ट दूर नहीं होगा, तब तक वे अन्ना-जल का त्याग रखेंगे। वह दिन श्रावण शुक्ल पूर्णिमा का दिन था। मुनियों पर संकट जानकर मुनिराज विष्णु कुमार ने वामन का वेश धारण किया और बलि के यज्ञ में भिक्षा मांगने पहुंच गए। उन्होंने बलि से तीन पग धरती मांगी। बलि ने दान की हामी भर दी तो विष्णु कुमार ने योग बल से शरीर को बहुत अधिक बढ़ा लिया। उन्होंने अपना एक पग सुमेरु पर्वत परए दूसरा मानुषोत्तर पर्वत पर रखा और अगला पग स्थान न होने से आकाश में डोलने लगा। सर्वत्र हाहाकार मच गया। बलि के क्षमायाचना करने पर उन्होंने मुनिराज अपने स्वरूप में आए। इस तरह सात सौ मुनियों की रक्षा हुई। सभी ने परस्पर रक्षा करने का बंधन बांधा, जिसकी स्मृति में श्रमण संस्कृति रक्षा पर्व के रूप में मनाया जाता है। पूज्य गुरुदेव के सानिध्य मे आज श्रेयांश नाथ भगवान का मोक्ष कल्याण निर्वाण लाडू चढ़ाया गया 35दिवसीय णामोकर जिनस्तुति विधान के आज 27 वें दिन विधि सहित अर्ध चढ़ाकर पूजा की गई
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