राजकीय अतिथि, दिगम्बर जैनाचार्य गुरुवर श्री विशुद्धसागर जी महाराज ने ऋषभ सभागार मे धर्मसभा को सम्बोधन करते हुए कहा कि-
” ज्येष्ठ वही होता है जो श्रेष्ठ होता है। श्रेष्ठता के अभाव में ज्येष्ठता शोभायमान नहीं होती है। आयु की ज्येष्ठता के साथ गुणों की श्रेष्ठता ही श्रेष्ठ मानी जाती है। श्रेष्ठ बनना है, तो ज्येष्ठा के अनुरूप आपका प्रभाव होना चाहिए। उच्च-पद पर आसीन होकर कोई भी निर्णय सोच-समझकर लेना चाहिए। मधुर भाषण के साथ, नैतिकतापूर्ण व्यवहार भी होना चाहिए।”
श्रेष्ठ लोगों को विचारों की पवित्रता के साथ अपने आचरण को भी मधुर रखना चाहिए। योग्यता के अभाव में श्रेष्ठ- पद शीघ्र ही क्षिण जाता है। योग्य व्यक्ति ही योग्य-पद को यश पूर्वक निर्वाह कर पाता है। अयोग्य व्यक्ति यदि योग्य-पद पर आसीन हो जायेगा, तो वह शोभा हीन प्रतीत होता है। अयोग्य व्यक्ति को श्रेष्ठ पद पर आसीन नहीं करना चाहिए। पद पाना सरल है, परन्तु पद के अनुकूल श्रेष्ठ जीवन जी पाना तथा कलंक शून्य यशपूर्ण जीवन जीना बहुत कठिन है।
श्रेष्ठता के लिए तत्त्वज्ञान, अभ्यास, सत्संगति, निस्पृहता, संतोष, गुण-ग्रहणता, विनम्रता, विवेकशीलता का होना आवश्यक है। जहाँ परिणाम विशुद्ध हो, आत्मानन्द हो, सही राह प्राप्त हो, उन्नति के सूत्र -प्राप्त हो, आत्म जागृति हो, उत्साह का संचार हो, वहीं प्रयत्न पूर्वक ठहरना चाहिए।
भावों की विशुद्धि बहुत दुर्लभ है। धन से साधन जुटाए जा सकते हैं। साधना, पवित्र परिणामों से ही संभव है। परिणाम सँभालो। जीवन क्षण भंगुर है। कब, कहाँ, क्या हो जायेगा? कुछ पता नहीं? गुरू वचनों को सुनो, समझो और संभलो। स्वयं ही स्वयं को संभालना पड़ेगा। समय रहते संभल जाओ, समय को समझो, समय निकलने पर कुछ नहीं पा पाओगे।
सभा मे प्रवीण जैन,अशोक जैन, राकेश जैन, सुनील जैन,सुभाष जैन, विमल जैन, धनेंद्र जैन, वरदान जैन,जय प्रकाश जैन, अंकुर जैन बुढ़पुर वाले , इंद्राणी जैन,अंजली जैन,आदि उपस्थित थे।
अतुल जैन मीडिया प्रभारी
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