बड़ नही पीपल का वृक्ष बन परिवार का संरक्षण करे बुजुर्ग* संजय जैन बड़जात्या कामां

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बड़े वृक्षों की छांव बहुत सुहावनी होती है और हमारे बड़े- बुजुर्ग भी परिवार के लिये बड़े वृक्षों की तरह शीतल छांव देते हैं जो समय आने पर अपने प्यार,सहयोग,अनुभव और आशीर्वाद से परिवार को पल्लवित और पोषित करते हैं।
     बड़े बुजुर्ग पीपल और बड़ के पेड़ की तरह होते हैं इसलिये जब भी बुजुर्गो की बात होती है तो अक्सर  पीपल और बड़ के उदाहरण दिये जाते हैं ।
    पीपल एक ऐसा वृक्ष होता है  जिसकी छांव तले अन्य पौधे बड़ी ही आसानी और सरलता के साथ पल और बढ़ सकते हैं जबकि बड़ वृक्ष अपने छांव तले किसी और पौधे को आसरा नहीं देता है। इसलिये यह  भी कहा जाता है  कि बुजुर्गों को बड़ के पेड़ की तरह नहीं पीपल की तरह होना चाहिये ताकि उनके सानिध्य में परिवार का हर सदस्य उत्तरोत्तर प्रगति करता रहे। जरूरी नहीं होता कि बुजुर्ग हमेशा सही ही हों । कुछ बड़े लोगों की सोच का दायरा बहुत सीमित होता है। परम्परागत परम्पराओं से बंधे हुए से भी नजर आते हैं।
    बड़े बुजुर्ग युवा पीढ़ी से तो  पूरा सम्मान चाहते हैं लेकिन युवाओं के सही फैसलों में भी टोका-टोकी करते हैं और उनकी बात का समर्थन नहीं किये जाने पर यह उन्हें अपना अपमान लगता है।
     इस तरह की परिस्थितियां पैदा होने से युवा पीढ़ी अपने बुजुर्गो से दूर होने लगती है।आधुनिकता और परम्पराओं के बीच उचित सामंजस्य नहीं बिठा पाने के कारण दोनों पीढ़ियों के बीच दरार बढ़ती है।
   इसलिये जरूरी है कि बुजुर्ग लोग भी समय के अनुसार खुद में परिवर्तन लायें और अपने अनुभवों की आड़ लेकर अपने विचारों और परम्पराओं को थोपने की कोशिश नहीं करें।
     इन सब परिस्थितियों पर  विचार करें और यह निर्णय लें की *हमारे परिवार या समाज में पीपल रूपी बुजुर्ग है या बड़ रूपी और यह भी निर्णय लें कि कहीं हमारा कद उस पीपल से भी ज्यादा बड़ा तो नहीं हो गया है। यदि आप मंथन करेंगे तो बहुत कुछ निकल कर आएगा और जीवन जिस दिशा में बढ़ना चाहिए उस दिशा में आगे बढ़ जाएगा
      जितना युवा पीढ़ी को चाहिये बुजुर्गो को सम्मान देना उतना ही जरूरी है बुजुर्गों द्वारा अपने छोटो को कार्य के मौके देना और उन पर विश्वास जाहिर करना। नहीं तो बड़े बुजुर्गों  की स्थिति उस खजूर के पेड़ की तरह हो जायेगी जिसके होने से पंथी को ना तो छाया मिलती है और ना ही फल।
  युवा पीढ़ी को भी उन्मुक्तता व स्वछंदता की आड़ में बुजुर्गों की अनदेखी नही करनी चाहिए क्योंकि उनके अनुभव में जीवन जीने की कला का रहस्य छुपा होता है।
*संजय जैन बड़जात्या सवांददाता जैन गजट

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