बच्चों को मोबाइल से बचाओ! – डॉ. सुनील जैन संचय, ललितपुर

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पिछले कुछ समय में टेक्नोलॉजी ने हमारे जीवन के हर एक पहलू को बहुत ही प्रभावित किया है। साथ ही हमारे जीवन को बहुत ही कंफर्टेबल बनाया है ।
आज मोबाइल ऐसी जरूरत बन गया है कि इससे दूर रहना नामुमकिन है, लेकिन क्‍या आपको पता है यह कितना खतरनाक है। स्मार्टफोन हमारी जिंदगी में इस कदर शामिल हो चुका है कि दफ्तर हो या घर, हर वक्त वो हमारे हाथ में ही रहता है। छोटी-छोटी उम्र के बच्चे तक इसके आदी होते जा रहे हैं। व्हाट्सएप, फेसबुक, गेम्स सब कुछ स्मार्टफोन पर होने की वजह से युवाओं में इसकी आदत अब धीरे-धीरे लत में तब्दील होती जा रही है। आजकल छोटे बच्चों के हाथ में भी स्मार्टफोन नजर आने लगा है। बच्चे मोबाइल के फीचर्स के बारे में इतनी अच्छी तरह से जानते हैं कि बड़े बड़े भी मात खा जाएं। यूट्यूब और गेम्स फोन में कहां हैं, उन्हें कैसे यूज करना है, ये सब बच्चे मिनटों में सीख जाते हैं। इसके अलावा टीवी देखे बिना खाना न खाने की आदत तो लगभग हर बच्चे में देखने को मिल जाती हैं।
मोबाइल सेलफोन, टेबलेट और स्मार्ट फ़ोन जैसे डिवाइज की अगर हम बात करे तो छोटे बच्चों में तकनीक की एक्सेसिबिलिटी और उपयोग को बहुत ही बढ़ा दिया है। हमेशा बच्चों को कठोर सुपर वीजन के तहद ही मोबाइल, टेबलेट और स्मार्ट फोन का उपयोग ही करने देना चाहिए। बच्चों के निजी उपयोग के लिए तो फ़ोन बिल्कुल ही नहीं देना चाहिए।
इस बिषय के बारे में अनेक रिसर्चो के बाद इस बारे में पता चला है कि टेक्नोलॉजी बच्चों को फायदा पहुँचाने की बजाय लांग टर्म में नुकसान पहुंचा रही है। फिर भी माता पिता बच्चों को इसका उपयोग करने को दे रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इसके उपयोग से बच्चे स्मार्ट बन रहे हैं और वो बिजी रहते हैं।
मोबाइल बच्चों का बचपन छीन रहा है। मोबाइल की लत बच्चों पर इस कदर हावी हो रही है कि बच्चे इसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हैं। अगर आपका बच्चा भी इसी राह पर आगे बढ़ रहा है तो आपके लिए खतरे की घंटी है। एक सर्वे के अनुसार
6 साल से कम आयु वाले बच्चों को मोबाइल न दें।  4 से 8 वर्ष तक के बच्चों का स्क्रीन टायम निश्चित हो। 12 से 15 आयु वर्ग के बच्चों का स्क्रीन टायम सप्ताह में 6 घंटे से ज्यादा न हो। 4 से 6 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों का स्क्रीन टायम सप्ताह में 3 घंटे से ज्यादा न हो।
 देश भर में बच्चे और युवा बड़ी संख्या में मोबाइल की लत का शिकार हो रहे हैं।
मोबाइल और साइबर एडिक्शन अब एक गंभीर समस्या बनती जा रही है जो हमारी दिनचर्या पर बुरा असर डाल रही है। कई मामलों में तो ये जिंदगी को भी खतरे में डाल रही है।
मोबाइल अब सिर्फ फोन या मैसेज करने तक ही सीमित नहीं रहा है। ना जाने कितने ही तरह के ऐप्स, व्हाट्सएप, और गेम्स हमें दिन भर व्यस्त रखते हैं । लेकिन अगर मोबाइल के बिना आपको बैचैनी होती है तो आपके लिए चिंता की बात है।
वहीं मोबाइल एडिक्शन में सबसे बड़ी समस्या इसकी पहचान को लेकर होती है। आखिर कैसे पता चले कि मोबाइल आपकी जरूरत भर है या एक लत बन गई है।
हाल में हुए एक सर्वे में 10 में से 7 माता-पिता ने माना कि दिन में 4-5 घंटे मोबाइल बच्चों के पास रहता है। एक सर्वे के मुताबिक भारत में 6 साल से कम आयु के बच्चों का स्क्रीन टायम 55 सेकेण्ड यानी लगभग एक घंटे है।
6 साल से कम आयू के बच्चे मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं तो याददाश्त कमजोर, डिप्रेशन, चिड़चिड़ापन, मोटापा, एंजाइटी जैसी दिक्कतें बच्चों में देखने को मिलेगी।
देश में निम्हांस, एआईआईएमएस और सर गंगाराम अस्पताल जैसे संस्थानों में मोबाइल की लत के शिकार लोगों के इलाज के लिए खास क्लीनिक हैं। और, यहां आने वाले मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि मां-बाप को मोबाइल के लती बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताना चाहिए। बच्चों को गैजेट्स से दूर रखना चाहिए। कम से कम एक वक्त का खाना अपने बच्चों के साथ खाना चाहिए। मोबाइल और गैजेट्स की लत हटाने के लिए डिजिटल डिटॉक्स की मदद भी ले सकते हैं, यानी कुछ दिनों तक मोबाइल और इंटरनेट से छुट्टी।
 महंगा और अच्छा दिखने वाला फोन भी आपके स्वास्‍थ्‍य को खराब कर सकता है, इसलिए मोबाइल का जरूरत से ज्यादा प्रयोग करने से बचें। मोबाइल से होने वाला रेडिएशन आपके कानों को भी खराब कर सकता है।
आज के समय में लोग नवजात शिशुओं और टोडलर्स तक के पास भी इस डिवाइस को रखने लगे हैं। जिसके कारण बच्चों के विकास, व्यवहार और उनके सिखने की क्षमता पूरी तरह से प्रभावित हो रही है।
विकास का धीमा होना :
आज के समय में हमारे पास कुछ ऐसी टेक्नोलॉजी है जो बच्चों के विकास को सिमित कर देती है। जिसके कारण उसका शारीरिक विकास पिछड़ सकता है। जब बच्चा फिजिकल एक्टिविटी करता है तब बच्चा फोकस करना सीखता है और नई स्किल्स डेवलप करते हैं। लेकिन अगर आपका बच्चा बारह साल की कम उम्र का हैं तो उसका टेक्नोलॉजी में दखल देना उसके विकास व् शेक्षणिक प्रगति के लिए हानिकारक सिद्द होता है।
मोटापा बढ़ना :
जो बच्चें यह डिवाइसेज अपने कमरे में ही बैठ कर उपयोग करते हैं। उनमे मोटे होने का रिस्क 30 प्रतिशत तक अधिक पाया जाता है। मोटे बच्चों में भी 30 प्रतिशत को डायबिटीज होने का और दिल के दौरे का खतरा बढ़ जाता है। यह खतरे उनकी लाइफ एक्स्पेक्टेंसी को कम करते हैं।
नींद में कमी का होना :
लगभग 60 प्रतिशत माता पिता अपने बच्चों के टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की निगरानी नहीं करते और लगभग  75 प्रतिशत लोग अपने बच्चों को बेडरूम में ही टेक्नोलॉजी इस्तेमाल करने की छुट दे देते हैं। नौ से दस साल की उम्र के इन बच्चों की नींद टेक्नोलॉजी के दखल के कारण प्रभावित हो रही है। जिसके कारण बच्चों की स्टडीज प्रभावित होती है।
मानसिक रोग :
अगर बच्चें टेक्नोलॉजी का अनियंत्रित उपयोग से बच्चों में डिप्रेशन, एंजाइंटी, अटेचमेंट डिसार्ड, ध्यान का नहीं लगना, आटिज्म, बाइपोलर जैसी समस्याएँ उनमे बढ़ सकती है। इसलिए जितना हो सकें बच्चों को मोबाइल जैसी वस्तुओं से दूर रखना चाहिए।
आक्रामकता :
आक्रामकता मीडिया, टीवी, फिल्मों और गेम्स में हिंसा बहुत अधिक दिखाई देता है। जिसके कारण बचों में आक्रामकता बहुत बढ़ जाती है। आजकल छोटे  बच्चे शारीरिक और लैंगिक हिंसा के प्रोग्राम और गेम्स के संपर्क में आ जाते हैं। जिसमें हत्या, बलात्कार और टार्चर के दृश्य की भरमार होती है। मिडिया में दिखाई देने वाला हिंसा अमेरिका में पब्लिक हेल्थ रिस्क की क्षेणी में रखा जाता है क्योंकि यह बच्चों के विकास को विकृत करती है।
लत लगना :
जिस समय माता पिता अपने स्वय के किसी काम में खोये रहते हैं तब वे अपने बच्चों से भावनात्मक आधार पर दूर होने लगते हैं। बच्चों के बेहतर विकास के लिए जरूरी होता है कि माता -पिता अपने बच्चों को समय दें। जिस समय बच्चे अपने माता पिता की कमी को महसूस करते हैं तब वह टेक्नोलॉजी व इन्फार्मेशन के भाव में पूरी तरह से खो जाते हैं और यहीं उनकी लत बन जाती है। टेक्नोलॉजी का भरपूर इस्तेमाल करने वाले लगभग 10 प्रतिशत बच्चे इसकी लत का शिकार बन गये हैं।
रेडिएशन का खतरा :
टोरंटो विश्वविद्यालय के स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ के डॉ. एंथोनी मिलर ने अपनी रिसर्च में बताया कि रेडियो फ्रेक्वेंसी एक्सपोजर के आधार पर 2B कैटेगरी को नहीं बल्कि 2A कैटेगरी को कैंसर कारक मानना चाहिए। लेकिन टेक्नोलॉजी को हद से ज्यादा इस्तेमाल करने वाले बच्चों का भविष्य धूमिल है।
आँखों पर दबाव :
मोबाइल फोन हो या इसी प्रकार का कोई गैजेट्स इसका दुष्प्रभाव सबसे पहले बच्चों की आँखों पर देखने को मिलता है। इसका कारण यह है कि वे बैकलित स्क्रीन को घंटों तक देखते रहते हैं और अपनी पलको को भी नहीं झपकते। अगर आप अपने बच्चों की भलाई चाहते हो तो आधे घंटे से उपर उन्हें किसी भी स्क्रीन को नहीं देखने देना चाहिए और जितना हो सकें उन्हें मोबाइल से दूर रखना चाहिए।
मोबाइल की दुनिया के बच्चे बचपन के खेल भूल चुके हैं, बच्चों के लिए मोबाइल, लेपटॉप नया प्ले ग्राउण्ड बन गया है। पहले बच्चों के माता-पिता अपने बच्चों को समय देते थे, शरीरिक विकास का ध्यान रखते थे। आजकल उनके पास समय ही नहीं है। समय की बजाय मोबाइल उन्हें दे देते हैं। इसलिए बच्चों बच्चों में रचनात्मकता खत्म हो रही है। रील्स बनाने का नशा खतरनाक हो चुका है। छोटे छोटे बच्चे खुद रील्स बना रहे हैं और सोशल साइट्स पर डालकर लाइक, कमेंट्स में उलझे हुए हैं। कम आयु के बच्चों को मोबाइल देना 800 सी सी की रेसिंग बाइक देने के समान है।
बच्चों की इस परिस्थिति के लिए बच्चों के माता-पिता अधिक जिम्मेदार हैं। बच्चों को मोबाइल देना किसी नशा से कम नहीं है। अब बच्चों को डाटा खिलाना बंद कीजिए। बच्चों को मोबाइल से बहलाना ख़तरनाक है।
बच्चों को मोबाइल की लत से छुड़ाने के लिए कुछ टिप्स अपनाएं, उन्हें प्यार से समझाएं। बच्चे को मोबाइल के  नुकसान बताएं। खुद पर नियंत्रण रखें। बच्चे को बिजी रखें। बच्चों को ना दें फोन। इस्तेमाल के बाद बंद कर दें इंटरनेट। खाना खाते समय बच्चों को मोबाइल न दें । बच्चों को रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रखें । बच्चों को दूसरे बच्चों की नकल करने से बचाया जाये ।
आज बच्चे चलने से पहले मोबाइल फोन चलाना सीख रहे हैं। मोबाइल का बच्चों पर गंभीर असर हो रहा है। बच्चों में मोबाइल की बुरी लत एक नशा से कम नहीं है।
2020 में हुए एक सर्वे के अनुसार 20 वर्ष से कम आयु वर्ग के 61 प्रतिशत बच्चों ने माना कि ऑनलाइन गेम खेलने के लिए वह खाना और नींद छोड़ने को तैयार हैं। ऑनलाइन गेम्स खेलने के लिए वह पैसों की भी चोरी करते हैं। आइये अपने बच्चों को मोबाइल की लत से बचाएं और उनका वास्तविक बचपन लौटाने में सहभागी बनें।

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