अजमेर के ब्र. राजेंद्र दनगसिया सल्लेखना समाधि में साधनारत

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सल्लेखना का आज सातवां दिन, अन्न जल का त्याग

मुरैना/अजमेर (मनोज जैन नायक) जैन साधक क्षपक चितानंद जी (ब्र. राजेंद्र जैन दनगसिया) अजमेर की सल्लेखना परम पूज्य आचार्य श्री समयसागर महाराज के ससंघ सान्निध्य एवं कुशल निर्देशन में चल रही है । आज सल्लेखना समाधि का सातवां दिन है । क्षपक चितानंद जी पूर्ण चेतना अवस्था में सल्लेखना की साधना कर रहे हैं। आचार्य श्री समयसागरजी महाराज, निर्यापक मुनिश्री संभव सागरजी महाराज एवम समस्त मुनिसंघ द्वारा निरन्तर सम्बोधन चल रहा है । ब्रह्मचारीजी पूर्ण चेतना से, मजबूती के साथ मोक्षमार्ग पर आरूढ़ हैं ।
साधक ब्रह्मचारी राजेंद्र जैन ने अपने जीवन के अंतिम समय में संयम के मार्ग को स्वीकार करते हुए सल्लेखना व्रत ग्रहण किया है। परम पूज्य गुरुदेव संत शिरोमणि समाधिस्थ आचार्यश्री 108 विद्यासागर महाराज के परम आराधक राजेंद्र जैन दनगसिया ने 45 वर्ष की अल्पायु में गुरुदेव से ब्रह्मचर्य व्रत लेकर संयम के साथ अपना जीवन निर्वहन कर रहे हैं । श्री जैन अपने गुरु आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज को भगवन स्वरूप मानते थे । परिवार के साथ रहकर भी वे अगाध श्रद्धा के फलस्वरूप जैन दर्शन और जैन सिद्धांतों का पूर्णतः पालन करते हुए संयम की साधना में लीन रहे ।
दिगम्बर जैसवाल जैन उपरोचिया परिवार अजमेर के श्रावकश्रेष्ठी ब्रह्मचारी राजेंद्र जैन ने अपना अंतिम समय निकट समझते हुए जबलपुर में विराजमान आचार्यश्री समयसागर जी महाराज को श्रीफल भेंट कर सल्लेखना हेतु निवेदन किया । पूज्य गुरुदेव ने राजेंद्र जैन की भावना को देखते हुए उन्हें आजीवन गृह त्याग कराकर दस प्रतिमाओं के व्रत देकर क्षपक चिंतानंद जी नामकरण किया ।
क्षपक चिंतानंद जी की सल्लेखना की साधना पूज्य आचार्यश्री समय सागर महाराज ससंघ के पावन सान्निध्य एवं निर्देशन में चल रही है । पूज्य गुरुदेव के निर्देशानुसार क्षपक चिंतानंद (राजेंद्र दनगसिया) ने सभी प्रकार के आहार का त्याग कर दिया है । आज उनके उपवास का पांचवां दिन है ।
संयम की साधना में लीन श्री राजेंद्र जी जैन का पूरा परिवार, उनके पुत्र अजय जैन दनगसिया, विजय जैन, पुत्रबधु श्रीमती साधना जैन एवं सविता जैन निरन्तर यहाँ ब्रम्हचारी चिदानन्दजी (पूर्व नाम ब्र. राजेन्द्र कुमारजी दनगसिया) अजमेर की पूर्णभाव से वैयावृति में लीन हैं । सभी की मंगल भावना है कि ब्रह्मचारी राजेंद्र जैन दनगसिया को उनकी भावना के अनुरूप लक्ष्य की प्राप्ति हो ।

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