औरगाबाद नरेंद्र पियूश जैन आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज एवं उपाध्याय पियूष जी महाराज ससंघ तरुणसागरम तीर्थ पर वर्षायोग हेतु विराजमान हैं उनके सानिध्य में विविध धार्मिक कार्योंकम संपन्न हो रहें हैं उसी श्रुंखला में उपस्थित गुरु भक्तों को संबोधित करते हुए आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज ने कहा कि। मजाक और पैसा – सोच समझ कर उड़ाना चाहिए, और.. धर्म-ध्यान और भक्ति को साहस के साथ करना चाहिए..!
धर्म-ध्यान और भक्ति के मार्ग में साहस की आवश्यकता है,, क्योंकि भक्ति, धर्म-ध्यान कमजोर, बुजदिल और डरपोक लोग नहीं कर सकते। भक्ति का अर्थ है अपने आपको मिटाना। धर्म का अर्थ है मन की सरलता, चित्त की निर्मलता और हृदय की पवित्रता। ध्यान का अर्थ है स्वयं में स्वयं को देखना। ध्यान का अर्थ है – साहस, समर्पण और संकल्प। भक्ति समर्पण मांगती है।ध्यान मैं को मिटाता है। धर्म – निश्छलता प्रदान करता है और जीवन के सभी दोषों को दूर करता है। धर्म दोषों को दूर करने में संघर्ष करना सिखाता है। धर्म ध्यान जीवन की बुराईयों से मुक्त करके शुद्ध करता है। क्योंकि जीवन में सम्पूर्ण बुराईयों की जड़ है तो वह जड़ है अहंकार। क्योंकि यदि कभी आपने क्रोध भी किया तो वह अहंकार के कारण से किया…!!!नरेंद्र पियुश
Regards,
Piyush Kasliwal
9860668168