अटूट श्रद्धा का केंद्र — श्री चिंतामणि पारसनाथ अतिशय क्षेत्र, कचनेर
महावीर दीपचंद ठोले, छत्रपती संभाजीनगर
महामंत्री श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ संरक्षिणी महासभा (महाराष्ट्र)
7588044495
भारत भूमि पुण्यभूमि है। यहाँ की पवित्र वसुंधरा पर अनेकों साधु-संतों,ऋषि
-मुनियों और तीर्थंकरों ने अपने तप, त्याग और चिंतन से इस भूमि को परम पावन बनाया। इन्हीं महान आत्माओं की स्मृति, साधना और कल्याण के प्रतीक रूप में तीर्थक्षेत्रों की स्थापना की गई।
जैन परंपरा में तीर्थों के तीन प्रमुख प्रकार माने गए हैं —
सिद्ध क्षेत्र, जहाँ सिद्ध पुरुषों या मुनिराजों ने निर्वाण प्राप्त किया, जैसे सम्मेदशिखरजी या मांगी तुंगी।कल्याणक क्षेत्र, जहाँ तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान या मोक्ष कल्याणक संपन्न हुए।अतिशय क्षेत्र, जहाँ मूर्तियों या मंदिरों में चमत्कारिक घटनाएँ घटित होती हैं और जहाँ श्रद्धालुओं की भावनाओं मेंविश्वास, भक्ति और चमत्कार का अनुभव होता है।
इन्हीं अतिशय क्षेत्रों में एक दिव्य स्थल है — श्री चिंतामणि पारसनाथ अतिशय क्षेत्र, कचनेरजी (जिला छत्रपती संभाजीनगर), जो शहर से लगभग 35 किमी दूर स्थित है। यहाँ भगवान पार्श्वनाथ की दिव्य प्रतिमा विराजमान है।— चमत्कारी घटना
लगभग 200 वर्ष पूर्व, कचनेर गाँव के समीप एक टीले पर चरने वाली गाय प्रतिदिन अपना दूध वहीं झरा देती थी। यह देखकर उसके मालिक संपतराव पाटिल की दादी अत्यंत विस्मित हुईं। एक दिन उन्हें स्वप्न में आभास हुआ कि “इस स्थान की खुदाई करने पर एक दिव्य मूर्ति प्राप्त होगी, जिसकी पूजा से कल्याण होगा।”
खुदाई की गई और सचमुच वहाँ से भगवान पार्श्वनाथ की 12 इंच ऊँची, गुलाबी संगमरमर की तेजोमय प्रतिमा प्रकट हुई। प्रतिमा की प्रतिष्ठा की गई, किन्तु कुछ समय बाद एक रजस्वला महिला के स्पर्श से वह प्रतिमा खंडित हो गई।जैन आगम के अनुसार खंडित मूर्ति पूज्य नहीं होती, अतः उसे विसर्जित करने का विचार हुआ। तभी समीपवर्ती चिमनराजा पिंपरी ग्राम के जेष्ठ श्रावक श्री लच्छीरामजी कासलीवाल को स्वप्न हुआ — “मूर्ति को विसर्जित न करें, उसे घी और शक्कर में रखकर सात दिनों तक पूजन करें।”
जब ऐसा किया गया, तो सात दिन बाद चमत्कार हुआ — प्रतिमा अपने आप पुनः जुड़ गई! आज भी उस जोड़ का निशान स्पष्ट दृष्टिगोचर है।यह घटना केवल दंतकथा नहीं, बल्कि साक्षात अतिशय का प्रमाण है। इसी कारण यह स्थान श्रद्धा, भक्ति और विश्वास का केन्द्र बन गया।
आध्यात्मिक संदेश
इस अतिशय घटना में एक गूढ़ संदेश छिपा है —“जब खंडित हुआ निर्जीव पाषाण भी जुड़कर पूजनीय बन सकता है,तो हम जीवित मानव क्यों नहीं एक हो सकते?”यदि समाज के लोग पंथवाद, परंपरावाद, भाषावाद, संतवाद जैसी संकीर्णताओं को त्याग दें, तो “हम सब एक हैं” का स्वर पूरे समाज में गूंज सकता है।
विकास, सेवा और एकता का प्रतीक है।श्री कचनेर अतिशय क्षेत्र आज सर्वधर्म समभाव और मानव एकता का प्रतीक बन चुका है। उत्तर भारत में जैसे धर्मतीर्थ श्री महावीर जी समग्र भारत का श्रद्धा केंद्र है, वैसे ही दक्षिण भारत में कचनेर पारसनाथ अतिशय क्षेत्र श्रद्धा और गौरव का प्रतीक है।यहाँ प्रतिवर्ष कार्तिक शुद्ध पूर्णिमा को तीन दिवसीय विशाल मेला आयोजित होता है।
इस मेले में जिनेन्द्र रथयात्रा, कलशाभिषेक, सांस्कृतिक कार्यक्रम, धर्मसभा और सम्मेलन जैसे विविध आयोजन होते हैं।देशभर से विभिन्न समुदायों और वर्गों के लोग इसमें सम्मिलित होकर सांप्रदायिक, राष्ट्रीय और भावनात्मक एकता का संदेश देते हैं।
“श्री चिंतामणि पारसनाथ, चिंता दूर करें,मन चिंतित होत है काज, जो प्रभु चरण चुरे”
सेवा औरप्रबंधन
यह क्षेत्र श्री कचनेर अतिशय क्षेत्र चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा संचालित है।ट्रस्ट यात्रियों की सुविधा हेतु विशाल आवास गृह, भोजनालय और मंगल कार्यालय,वाहन सुविधा (औरंगाबाद सेक्षेत्रतक),चिकित्सा शिविर एवं निशुल्क औषधिवितरण, शिक्षा हेतु धन्नाबाई दीपचंद गंगवाल टेक्निकलस्कू ,हुकुमचंद कासलीवाल गुरुकुल, तथा
औरंगाबाद में उत्तमचंद ठोले छात्रावास का संचालन करता है।
यह सभी व्यवस्थाएँ समाजोपयोगी और लोकोपकारी हैं।
प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य ट्रस्ट द्वारा प्रारंभ किया गया है। एक अद्वितीय, विशाल और आधुनिक तीर्थ क्षेत्र के रूपमें इसका पुनर्निर्माण हो रहा है,जो श्रद्धालुओं के हृदयों में सदैव अंकित रहेगा।इस वर्ष का वार्षिक मेला , 4 ,5और 6 नवंबर 2025 को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ आयोजित किया जा रहा है।आप सभी सपरिवार, सप्रेम पधारकर पुण्यार्जन करें और अतिशय का अनुभव प्राप्त करें।
महावीर दीपचंद ठोले
महामंत्री — श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन संरक्षिणी महासभा, महाराष्ट्र
📞 75880 44495












