अटूट श्रद्धा का केंद्र अतिशय क्षेत्र कचनेरजी

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महावीर दीपचंद ठोले महामंत्री श्री भारतवर्षीय दि जैन तीर्थ संरक्षिणी महासभा (महाराष्ट्र प्रांत) छत्रपती संभाजी नगर 75880 44495
भारत भूमि पुण्य भूमि है। यहां की वसुंधरा पर अनेक साधु संतों के, ऋषि मुनियों के, तीर्थंकरों के महात्म्य, चिंतन, दर्शन हमें निरंतर होता रहे इन उद्देश्यों से तीर्थ स्थानो की निर्मित हुई ।तीर्थ तीन प्रकार है- जहां-जहा सिद्ध पुरुषोने ,मुनीराजो ने निर्वाण प्राप्त किया उन्हें सिद्ध क्षेत्र कहा जाता है। इस श्रेणी में सम्मेद शिखरजी, मांगीतुंगीजी आदि सिद्ध क्षेत्र हैं। जहां जहा जहा तीर्थंकरो के गर्भ, जन्म, दीक्षा तथा केवलज्ञान एवं पंचकल्याणक संपन्न हुए है उन्हें कल्याणक क्षेत्र से संबोधित किया जाता है। जिन क्षेत्रो पर मूर्तियों में या मंदिरों में कुछ चमत्कार या अतिशय घटित होता है ,भावीको के ह्रदय में श्रद्धा निर्माण होती है ऊन्हें अतिशय क्षेत्र के नाम से पहचाना जाता है। इस श्रेणी में कई अतिशय क्षेत्र है ।उसी में महाराष्ट्र के (औरंगाबाद ) छत्रपती संभाजीनगर शहर से 35 किलोमीटर दूरी पर श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र कचनेर जी है जहा 23 वे तीर्थंकर पारसनाथ की मूर्ति विराजमान है ।
इस तीर्थ क्षेत्र के निर्माण के बारेमें बताया जाता है कि लगभग 200 वर्ष पूर्व गांव में विचरण करने वाली एक गाय का दूध एक विशिष्ट स्थल पर स्वयं ही झर जाता था। उस गाय के मालिक संपतराव पाटील की दादी यह देखकर आश्चर्य में पढ़ती थी ।एक रात्रि में उसके स्वप्न में आए कि यहां खुदाई करने से एक भगवान की मूर्ति प्राप्त होगी जिसे निकालने से आपका कल्याण होगा। और अचरज हुआ की उसे स्थान की खुदाई करने के पश्चात वहां से पारसनाथ की शांत ,मनोज्ञ, तेजो मयी 12 इंच ऊंची संगमरमर की अतिशय कारी प्रतिमा प्राप्त हुई। उसे विराजमान करने के बाद एक रजस्वला महिला के छूने से वह मूर्ति अचानक घड से टूट कर खंडित हो गई । खंडित मूर्ति जैनागम मे पुजनीय नहीं है इसलिए उसे विसर्जित करने का निर्णय लिया गया। परंतु पुन्हः अचरज हुआ कि चिमणाराजा पिंपरी गांव के श्रेष्ठ श्रावक श्री लच्छीराम जी कासलीवाल के सपने में वह मूर्ति आई कि मुझे विसर्जित ना करें। मूर्ति को घी शक्कर में रखकर पूजा अर्चना करें ।अचरज हुआ की सात दिनों के उपरांत वह खंडित मूर्ति अपने आप जुड़ गई। जिसकी निशानियां आज भी दृष्टिगोचर होती है। तत्पश्चात मूर्ति की पुन्हः प्राण प्रतिष्ठा की गई । यह कोई अंधश्रद्धा या दंतकथा नहीं है, अपितु सत्य घटना है। तब से मूर्ति के चमत्कार और अतिशय की महिमा के कारण सभी धर्म , जाति, संप्रदाय के लोग भारी संख्या में दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने का अनुभव प्राप्त करते हैं। यहा उनका अंग अंग रोमांचित हो ऊठता है। समर्पण, श्रद्धा और विश्वास के फूल खिलते हैं। वात्सल्य की मुर्ती के साथ आने वाले भक्तों का अनबोला संवाद होता है और उन्हें आभास होता है कि समवशरण में विद्यमान तीर्थंकर के सारे अतिशय ऊसे अनुभूत हो रहे है और उसके मन में दिव्य ध्वनि का प्रसार हो रहा है ।
इस मूर्ति से समाज को एक संदेश मिलता है की खंडित हुआ निर्जीव पाषाण भी जूड कर एकजीव होकर पूजनीय बन सकता है तो हम तो मानव है हम भी सारे पंथवाद, परंपरावाद, प्रांतवाद, भाषावाद,संतवाद जैसे सामाजिक प्रश्नों को भूलकर एक क्यों नहीं हो सकते? जिसके कारण पुनः हम सब एक है का नारा गुन्ज सकता है और एकता का दर्शन हो सकता है ।
सर्व धर्म समभाव का प्रतीक यह सर्वोदय तीर्थ क्षेत्र कचनेरजी समस्त देश भर में प्रसिद्ध को प्राप्त होता हुआ अपने विकसित रूप में जन-जन का श्रद्धा का स्थान बना हुआ है ।जैसे उत्तर भारत में श्री महावीर जी संपूर्ण भारत का एक गौरव स्थल एवं श्रद्धा स्थल है वैसे ही दक्षिण भारत का यह अतिशय क्षेत्र है।जिसका वार्षिक मेला प्रतिवर्ष कार्तिक शुद्ध पूर्णिमा के पुनीत अवसर पर सदियों से संपन्न होते चले आ रहा है। तीन दिवसीय इस मेले में जिनेंद्र देव की रथ यात्रा, कलसाभिषेक, सांस्कृतिक कार्यक्रम, सम्मेलन, धर्म सभा आदि अनेक प्रभावना के कार्यक्रम संपन्न होते हैं ।
राष्ट्रीय स्थरके इस मेले में सभी समुदाय तथा वर्गों के लोग समभाव से सम्मिलित होते हैं। इसमें सांप्रदायिक, राष्ट्रीय एवं भावनात्मक एकता के प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं। अनेक भक्तजन तो हजारों मील दूरी से पैदल चले आते हैं, भगवान के समक्ष मनोकामनाओं के श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने का अनुभव प्राप्त करते हैं। इसलिए कहा गया है कि— श्री चिंतामणि पारसनाथ चिंता दूर करें ।मन चिंतित होत है काज, जो प्रभु चरण चुरे।।
श्री कचनेर क्षेत्र चैरिटेबल ट्रस्ट है। इसकी प्रबंधकारिणी कमेटी एवं विश्वस्त मंडल द्वारा क्षेत्र को आदर्श एवं अनुकरणीय तीर्थ स्थल बनाने के लिए उसके अनुरूप सेवारत हैं। यात्रियों के लिए सभी आवश्यक अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई गई है। तथा समाजोपयोगी और लोकोपकारी सार्वजनिक कार्य में भी अग्रसर है ।क्षेत्र के आसपास के ग्रामीणों के चिकित्सा हेतु समय-समय पर चिकित्सा शिविरो का आयोजन, निशुल्क दवाइयां का वितरण आदि किया जाता है ।जिसका दूर दराज के जैन अजैन भाई लाभ उठाते हैं ।
ग्राम वासियों के लिए शिक्षा की बेहतर व्यवस्था हेतु श्रीमती धन्नाबाई दीपचंद गंगवाल स्कूल का निर्माण किया गया है। विद्यार्जन हेतु श्री हुकुमचंद कासलीवाल गुरुकुल तथा औरंगाबाद में श्री उत्तमचंद ठोले छात्रावास की निर्मिती करा कर उसके माध्यम से छात्रों को धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा का भी लाभ दिया जा रहा है ।जिसमें असमर्थों को आवश्यकता नुसार आर्थिक सहायता और उदयीमान छात्रों को छात्रवृत्ति भी क्षेत्र कमेटी की ओर से एवं दानदाताओं की ओर से प्रतिवर्ष दी जाती है ।
क्षेत्र पर विशाल अतिथिगृह एवं भोजन ग्रह है। मंगल कार्यालय है जहां समाज के अनेक मांगलिक समारोह संपन्न होते है। यहा विशाल ग्रंथालय है। प्रतिदिन आने वाले यात्रियों के लिए औरंगाबाद से संस्था की ओर से एक वाहन की व्यवस्था भी की गई है। समय के प्रवाह में विकसित होता है यह तीर्थ आज संपूर्ण भारत का गौरव स्थल बन गया है ।ईसका अधिकाधिक विकास होता रहे और भक्तजनों के मानस पटल पर इसकी अमिट छाप अंकित रहे । ईस वर्ष यहां की तीन दिवसीय वार्षिक यात्रा 14 ,15, 16 नवंबर को संपन्न हो रही है ।सभी भक्तजनों का क्षेत्र पर स्वागत है। सम्पर्क सुरेश कासलीवाल, मैनेजिंग विश्वस्त–9423392460
श्री संपादक महोदय, जयजिनेद्र। कृपया यह क्षेत्र परिचय ईस सप्ताह के अंक मे प्रकाशित कर उपकृत करे ।धन्यवाद।

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