आत्म विश्वास से उठा एक कदम भी विधाता की लेखी को मिटा सकता है

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आत्म विश्वास से उठा एक कदम भी विधाता की लेखी को मिटा सकता है,                अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी                    औरंगाबाद नरेंद्र पियूश जैन अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज के संघ का वसुंधरा जैन मंदिर से नोयडा सेक्टर 50 जैन मंदिर की ओर विहार संपन्न वहां उपस्थित गुरु भक्तों को संबोधित करते हुए आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज ने कहा कि
आत्म विश्वास से उठा एक कदम भी विधाता की लेखी को मिटा सकता है,
बशर्त है – आत्म विश्वास और जीने का जुनून हो..!
जीवन का कड़वा सच है कि दुनिया एक सराय है और आप हम सब मुसाफिर है। एक दिन सबको छोड़कर, खाली करके जाना ही पड़ेगा। मगर जाकर भी यहाँ बने रहने की ख्वाहिश हर एक इन्सान की होती है। उसके लिये हर संसारी और सन्यासी अपने जीवन को दाव पर लगा देता है। संसारी – दान, सेवा, परोपकार करके और सन्यासी – मन्दिर, मठ, संस्था, अस्पताल, कॉलेज, तीर्थ बनवाकर। भले उसके लिए फिर उसे कुछ भी करना पड़े। ना कद का डर, ना पद का भय, ना समाज की चिन्ता, ना लोक लाज।
ये कैसी अमरता है मरने के बाद-? जो जीते जी सबका दुश्मन बन गया हो, वो मरने के बाद क्या याद किया जायेगा-? किसी ने पूछा – कैसे जानें कि हम मरने के बाद स्वर्ग गये या नर्क-? हमने कहा — सीधा सा फार्मूला है। जब लोग अर्थी को लेकर मुख्य मार्गो से जा रहे हों और लोग उसकी गाथा गा रहे हों, गुणानुवाद कर रहे हों, तो समझना वह स्वर्ग गया और यदि लोग कह रहे हों कि अच्छा हुआ एक पाप कटा, तो समझना कि वह नर्क गया, भटक गया।
कभी आप खुद से पूछना-? यदि आपको पता लग जाये कि मेरे पास अब जीने के लिये चन्द दिन बचे हैं, तो उस समय आप क्या करेंगे-? क्या बदलना चाहेंगे-? यदि – हाँ तो फिर इन्तजार किस बात का है-? मौत का एक दिन सबका मुकर्रर है। इसलिए जिन्दगी को जीवन्त होकर जीयें, महज इसके साथ टाइम पास नहीं करें…!!!         नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

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