अतीत में महापुरुषों की व्यथा वर्तमान की कथा , निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज

0
56
*गौरेला*। *वेदचन्द जैन*।
महापुरुषों के अतीत की व्यथा वर्तमान की कथा बन जाती है और वर्तमान युग व्यथा की कथा से लाभान्वित हो जाता है। निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने कुण्डलपुर के समीप पटेरा ग्राम में जिज्ञासा शंका समाधान करते हुये दी। महापुरुष यदि अपने अंतरंग के भावों को बाहर उद्घाटित न करे तो उनका अनुमान लगाकर व्यक्त करने का हमें न तो अधिकार है न हि ऐसी कोई चेष्टा करना चाहिए।
          मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने बताया कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन में अनेक व्यथा अनेक कष्ट आये। उनके जीवन की ये व्यथा वर्तमान में कथा के माध्यम से हमें ज्ञात होती हैं। आदिनाथ भगवान के जीवन की व्यथा को वर्तमान में कथा के रूप में हम जानते मानते और सीखते हैं। महापुरुष की व्यथा वर्तमान में कथा रूपी उपकार है। जो वर्तमान को ज्ञान ,दशा और दिशा प्रदान करती है।
        आपने कहा कि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने संपूर्ण साधना काल में अपने पदविहार की न तो कभी घोषणा की न हि कभी किसी से इस संबंध में  विचार विमर्श किया। उन्हें कब विहार करना है कहां जाना है ये या तो स्वयं आचार्य महाराज जानते थे या केवलज्ञानी,इसीलिए उन्हें अनियतविहारी कहा जाता हैं।उनके अन्तर्मन के विचार कभी कोई न जान पाया न ही उन्होंने अन्य किसी को बताया। हमारे आचार्य महाराज निज साधना के परम् मौनसाधक थे। कुछ जिज्ञासाएं सामने आती हैं कि उन्होंने अपनी सल्लेखना और समाधिमरण की सार्वजनिक अभिव्यक्ति क्यों नहीं की , जब आचार्य महाराज जीवन भर अप्रगट विहार कर अनियतविहारी रहे तो अपने अंतिम विहार को भी अनियतविहारी की ही  साधना पूर्ण की।
*वेदचन्द जैन*
*गौरेला(छ.ग.)*

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here